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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


ऐन्डरसन ने मुझे अपने परिवार का पुराना अलबम दिखाया। उसमें ईट्स के भी कई चित्र थे। ईट्स किसी भी कम्पनी में कवि ही लगते। माडगान के यौवन की एक बहुत ही सुन्दर तस्वीर थी। सम्भव है, बर्टी ने भी अपने यौवन में उस पर तबीयत फेंकी हो। कहते थे, 'माडगान की आँख बड़ी पैनी थी। उसने ताड़ लिया था कि लेडी ग्रिगोरी भी ईट्स को प्रेम करती थी और वे भी उससे किसी रूप में सम्बद्ध थे. बस उसने ईटस से शादी करने से इनकार कर दिया।'

जार्ज की उन्होंने बड़ी तारीफ की-'वह लाखों में एक स्त्री है। वह जानती थी कि ईट्स माडगान को नहीं भूले, लेडी ग्रिगोरी से उनका कोई सम्बन्ध है, फिर भी उसने ईट्स के साथ अपना वैवाहिक जीवन गरिमा के साथ बिताया। ईट्स तो अपनी वृद्धावस्था में भी एक नवयुवती के प्रेम में थे-डोरोथी के; जार्ज यह जानती थी, पर उसने इसे कभी पारिवारिक कलह का कारण नहीं बनाया।'

बर्टी सचमुच बड़े आशावादी थे। ईट्स जन्मशती आने को अभी बारह वर्ष थे, पर वे तभी से उनकी शती-जयन्ती स्लाइगो में मनाने का सपना देख रहे थे। वे बड़े गर्व से कहते थे, 'ईट्स ने अपनी अस्थियाँ हमें सौंपी हैं तो हम भी उनकी कीर्ति की रक्षा करने का दायित्व निभाएँगे।'

मुझे खबर मिली थी कि ईट्स की जन्मशती स्लाइगो में मनाई गयी थी और मि० हेन प्रमुख वक्ता के रूप में वहाँ गये थे, पर बर्टी ऐन्डरसन तब मौजूद थे या नहीं, मैं नहीं कह सकता। न रहे होंगे तो भी, मुझे विश्वास है, वे जन्मशती मनाने की सारी तैयारी कराके गये होंगे। रहे हों तो आश्चर्य नहीं, तब वे 92 वर्ष के होंगे। मेरे एक चाचा, मेरी बुआ दादी के पुत्र, 97 वर्ष की अवस्था में भगवान् की दया से अभी मौजूद हैं-बाबू हरनारायण लाल-अकोढ़िया, रायबरेली में। अभी तक अपने हाथ से मुझे पत्र लिखते हैं। चार वर्ष पहले उन्होंने मुझे लिखा था, 'सुना है कि तुम्हारा लड़का अमिताभ फिल्म अभिनेता हो गया है, मैं कभी लखनऊ जाकर उसकी फिल्म देखूँगा।' ये पुराने लोग जीवन से अपने को कितना जुड़ा रखते हैं, तभी शायद वे बहुत दिन जीते भी हैं।

डबलिन लौटकर केम्ब्रिज जाने के पहले मुझे सिर्फ दो काम करने थे, एक किलार्नी देख आना; दूसरे श्रीमती ईट्स और डबलिन के मित्रों को भोज देना। जब से वहाँ पहुँचा था, हर एक ने मुझे लंच या डिनर पर बुलाया था-लौटने के पहले मुझे भी एक दिन सबको खाने पर बुलाना था-'मित्र के जेंयिये तो आप हू जेंवायिये।'

किलार्नी के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन हर आयरी ने मुझसे इस तरह किया था जैसे वह वहाँ का कश्मीर हो। और हर एक का आग्रह था कि उसे देखे बगैर मैं इंग्लैण्ड न लौटूं।

मैंने टूरिस्ट ट्रेन से जाने के लिए टिकट ले लिया; साथ चलने को नैनसी तैयार हो गयी, मेरी ही डिग में रहती थी, किसी पास के कस्बे की लड़की, शहर की किसी लाइब्रेरी में काम करती थी। मैंने सोचा, चलो साथ रहेगा। प्रकृति का सौन्दर्य घूरते अकेले बौंडियाते फिरने में मुझे विशेष रस नहीं।

टूरिस्ट ट्रेन सुबह-सुबह डबलिन से चली थी-सीटें हर यात्री के लिए अलग, कुशादह, आरामदेह। रास्ते में जिस प्रदेश से हम गुज़र रहे होते उस पर कमेन्ट्री होती चलती थी, कमेन्ट्री एक डिब्बे से होती पर लाउडस्पीकरों से हर डिब्बे में साफ सुनाई पड़ती। कुछ जगहें केवल ट्रेन से देखने की होती, ट्रेन यथावश्यकता रोक दी जाती या धीमी कर दी जाती। कुछ जगहें ट्रेन से उतरकर देखने की होती। ट्रेन रुकती, मुसाफिर उतरते, जगह लाइन से करीब होती तो हम वहाँ तक पैदल जाते-आते, दूर होती तो टूरिस्ट विभाग की बसें खड़ी मिली।

सबको जगह दिखला, फिर ट्रेन पर छोड़ जाती। इतने गढ़, गिरजों, खण्डरातों की कथा-व्यथा कौन याद रखे। नज़र से हटे, ध्यान से हटे, आगे जाने वालों के लिए कौतूहल।

पैक लंच ट्रेन में मिल गया था।
अपराह्न में हम किलानी पहुँच गये।

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