जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
उन्नीसवीं सदी की वैज्ञानिक खोजों ने परम्परागत ईसाई धर्म में लोगों की आस्था डिगा दी थी।
लेकिन आस्था, आध्यात्मिक नहीं तो कलात्मक आवश्यकता थी ईट्स की।
उसका आधार उन्होंने देश-काल में दूर-सुदूर ज्ञात-अल्पज्ञात स्रोतों से, सभ्यता की दौड़ में पीछे रह गये, प्रकृति के निकटतम रहकर जीवन जीने वाले ग्रामीणों के अन्धविश्वासों से और कुछ अतिशय तार्किकता के विद्रोह में उग्र अतार्किकता की आग्रहपूर्ण कल्पनाओं से एकत्र किया था।
इससे उनकी कलात्मक आवश्यकता की पूर्ति हुई थी, पर क्या पूर्णतया उसी से? क्या ईसाइयत की उस परम्परा से उन्हें कोई सहायता न मिली थी, जिसमें रहकर पिछले दो हज़ार वर्षों से योरोप की साहित्य-कला-साधना होती आयी थी? क्या परम्पराएँ केवल सचेतन रूप से प्रभावित करती हैं, अचेतन रूप से नहीं ?
अपनी आस्था के नये (या नये रूप में प्रस्तुत अति प्राचीन?) आधार से कलात्मक तष्टि पाकर. जब ईटस ने उसे आध्यात्मिक तष्टि का साधन बनाने का भी अध्यवसाय किया था, तब क्या उन्हें सफलता मिली थी, या सफलता मिलने की आशा थी?
ईट्स ने सचेतन रूप से ईसाइयत की अवहेलना की थी, यह स्पष्ट है। पर ईसाई समालोचक फिर भी उन्हें ईसाई-परम्परा के घेरे से बाहर न जाने देना चाहते थे। उनका कहना था, अचेतन रूप से ईसाइयत ने ईट्स पर काफी प्रभाव डाला था, यहाँ तक कि उसके प्रभाव के बिना वे वह ऊँचाई और बड़प्पन प्राप्त ही नहीं कर सकते थे, जो उन्होंने की। वे दान्ते, मिल्टन की परम्परा (यानी ईसाई परम्परा) में हैं, उससे अलग नहीं।
इसको अनुभव करने के लिए ईसाइयत की एक सूक्ष्म समझ चाहिए, जो 'प्रोफेसर विली ऐसे ऊँचे पाये के स्कालर और अध्यापक-आलोचक ने घोषित किया था, केवल जन्मजात ईसाई में विकसित हो सकती है।
यहाँ मेरी सीमा थी।
मैं तो ईट्स को गैर-ईसाई दृष्टि से ही देख सकता था।
इससे बहुत सम्भव था कि ईट्स में ईसाई-परम्परा के अवदान की ओर मुझसे उपेक्षा हो जाये।
मुझे आगाह किया गया था कि ब्रिटिश युनिवर्सिटियाँ बहुत आधुनिक होकर भी ईसाई युनिवर्सिटियाँ हैं। उनके हर कॉलेज में चर्च है और उनके सारे पुराने कॉलेजों की स्थापना धर्मशिक्षा-संस्थानों के रूप में हुई थी। उस परम्परा से वे जुड़े ही नहीं, उसके प्रति सचेत हैं और कहीं-न-कहीं उस पर गर्व भी करते हैं। उनकी युनिवर्सिटियों में भोजन से लेकर पदवीदान तक धार्मिक कर्मकाण्ड के रूप में किया जाता है। यदि मैंने ईट्स द्वारा ईसाइयत की अवहेलना पर बल दिया तो बहुत सम्भव है, मेरी थीसिस को रिजेक्ट कर दिया जाये या मुझसे उसे संशोधित रूप में प्रस्तुत करने को कहा जाये।
विस्तार से बातें मैं जल्दी कह लेता हूँ।
संक्षेप में कहने में मुझे देर लगती है।
मुझे उपसंहार का लेख छोटा ही रखना था। मैं अपने थीसिस की शब्द सीमा पहले ही पार कर चुका था, और मैंने डिग्री कमेटी से एक-चौथाई शब्द अधिक रखने की विशेष अनुमति ली थी।
लेख मुझे बड़ी सतर्कता से लिखना था।
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