जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
मैं दस वर्ष तक प्रधानमन्त्री के मन्त्रालय से सम्बद्ध था। जब कभी इलाहाबाद के किसी आदमी की नियुक्ति या पदोन्नति केन्द्र से होने की होती थी तो उसके विरुद्ध वहाँ से पच्चीस-तीस गुमनाम पत्र ज़रूर आ जाते थे और आश्चर्य है, देखे जाते थे और उनका असर भी पड़ता हो तो कोई आश्चर्य नहीं !
तेजी अद्भुत मनोशिराओं की महिला हैं।
यदि सामान्य परिस्थितियों में वे फूलमाला के समान कोमल हो सकती हैं तो चुनौती मिलने पर लौह-दण्ड के समान कठोर भी हो सकती हैं।
गुमनामी पत्रों में जब तक धमकियाँ उनके लिए थीं, तब तक वे अविचल रहीं, पर जब उनके बच्चों को भगा ले जाने और राजन को, जिनको उन्होंने अपने बेटे-सा मान रखा था, जान से मार देने की धमकियाँ आने लगी तो वे कुछ घबरायीं।
एक बार तो उन्होंने बच्चों को राजन के साथ बाँदा भेजकर अकेले इस तूफान का सामना करने का भी इरादा किया था।
मैं उनको बार-बार समझाता कि वे इन पत्रों की बिल्कुल परवाह न करें। 'जो गरजते हैं बरसते नहीं।' जो ऐसे जघन्य इरादे कर सकता है, उसमें इतनी भलमन्सी नहीं हो सकती कि अपने दुश्मन को पहले आगाह करे। अगर उनमें कुछ करने की हिम्मत होती तो कर ही डालते, कहते नहीं। बगैर कहे करना शायद ज़्यादा आसान होता है। यह कोरी बँदरभबकियाँ हैं कि तुम डरो, घबराओ, अव्यवस्थित हो कि राक्षस को कुछ सन्तोष हो कि उसे जो मुँहतोड़ उत्तर मिला है, जो आँख न उठा सकने वाली लज्जा, भर्त्सना मिली है, उसका कुछ बदला उसने तुमसे ले लिया।
यह सब लिख ज़रूर देता, पर मैं कितनी बार सोचता कि अगर यह तूफान ही है तो मुझे तेजी के साथ खड़े होकर उसका सामना करना चाहिए, गो मैं जानता था कि मेरे घर पहुँचते ही यह तफान हवा हो जायेगा। और मेरे दो वर्ष के धन-श्रमव्यय और सौ तरह की उठाई मुसीबतों की व्यर्थता पर वे गुमनाम गीदड़ छिपकर हँस सकेंगे।
इसको मुझसे अधिक तेजी समझती और बार-बार आग्रह करती, कसमें दिलाती कि मैं अपना काम सरंजाम किये बगैर न लौटूं। मि० हेन द्वारा सुझाये दूसरे रास्ते की बात मैंने उनको लिख दी थी और वे अपने चारों ओर सारी प्रतिकूलता के बावजूद इसके लिए तैयार हो गयी थीं कि मैं ढाई महीने और रुककर कान्वोकेशन में डिग्री लेकर ही लौटू-जैसे उनको दृढ़ विश्वास हों कि मुझे डिग्री मिल ही जायेगी, मुझे तो नहीं था।
इतना ही नहीं वे जानती थी कि इसके लिए अतिरिक्त खर्चे की आवश्यकता होगी, थीसिस टाइप कराने के लिए, थीसिस-परीक्षा के और डिग्री-सर्टिफिकेट के लिए, रहने-सहने के खर्च के अलावा। न जाने किस बल पर उन्होंने मुझे लिख दिया था कि नये वर्ष के आरम्भ में वे मुझे 5000/= और भेज सकेंगी। उनके पास जो था और जो उनका खर्च आ सकता था, उसके किसी अनुमान से मैं यह कल्पना नहीं कर सकता था कि उनके पास इतना बचा होगा कि वे मुझे 5000/= भेज सकेंगी, सिवा इसके कि अपने ज़ेवरों को बेचकर, अगर वे पहले ही नहीं बिक चुके होंगे।
राक्षस के क्रियाकलाप गुमनामी पत्रों तक ही सीमित नहीं थे। एक दिन मौका पाकर उसने एक सनसनीखेज़ घटना की भूमिका रच डाली, पर तेजी ने मुझसे इसकी साँस तक न ली। और इसका पता मुझे तब लगा जब मैं घर लौटा।
तो उसकी चर्चा कालक्रम में।
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