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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


किसी ने बताया, अगर कोई हिन्दुस्तानी यहाँ 'स्टैंडेड' हो जाये, यानी अगर उसके पास न यहाँ रहने का खर्च रह जाये, न भारत वापस जाने का, तो 'इण्डिया हाउस' उसे 'लोन' देता है।

इण्डिया हाउस से पूछा कि 'लोन' लेने की प्रक्रिया क्या है तो इतने तरह के फार्म आये कि उन्हें भरने और भरे वक्तव्य की प्रामाणिकता के लिए उचित अधिकारियों के समुहर हस्ताक्षर लेने में महीनों लगते, फिर फार्म दिल्ली जाते, वहाँ से पलिस की तफतीश के लिए इलाहाबाद जाते और जो कुछ लिखा था, सब कुछ ठीक पाये जाने पर सरकार निर्णय देती कि मुझे लोन मिल सकता है या नहीं। - नाम, बाप का नाम, जिन्दा हैं कि मुर्दा, जिन्दा हैं तो उनकी आमदनी कितनी, चल-अचल सम्पत्ति कितनी, किसी के नाम तय हुई कि नहीं,लोन वापस न दे सकने की हालत में गारन्टी देने वाले का नाम पता, जो उसकी जगह लोन अदा करेगा, उसके बाप का नाम, उसकी आमदनी, जमा, जायदाद और गारन्टी लेने वाले की गारन्टी देने वाले का अता-पता वगैरह-वगैरह-वगैरह। अपने से तो यह झंझट न सपरेगा। किसी ने ठीक आगाह किया था कि 'इण्डिया हाउस' से कुछ प्रत्याशा न करनी चाहिए, वह किसी का काम नहीं करता।

देस चोरी परदेस भीख।

देस यह है नहीं, और इस परदेस में भीख माँगना अपराध है। कोशिश करने पर जेल पहुँच जाऊँगा।

पर वापस जाने की चिन्ता में घुला करूँगा तो थीसिस को सही, साफ-सुथरे रूप में कैसे प्रस्तुत करूँगा?

बहुत काम है : अपने पास चार महीने से ज़्यादा नहीं।
शायद तेजी कुछ भेज ही दें।
शायद यहीं किसी से कर्ज़ मिल जाये।

चार महीने भूत की तरह काम करना पड़ा। मूल पाठ को दुहरा-तिहरा कर अन्तिम रूप दिया, एक-एक कामा, फुलस्टाप ठीक जगह पर लगाये, उद्धरणों को मूल पुस्तकों से चेक किया, फुटनोट में पुस्तक, लेखक, प्रकाशक, प्रकाशन वर्ष, प्रकाशन स्थान, उद्धरण की पृष्ठ संख्या सब कुछ एक-एक पुस्तक से चेक करके लिखी, प्रयुक्त सामग्री की तालिका बनाई, पुस्तकों की, पत्र-पत्रिकाओं की, अप्रकाशित लेख आदि की। 18 घण्टे रोज़ काम करना पड़ता-कई घण्टे नीची मेज़ के सामने बैठकर. कई घण्टे ऊँची मेज़ के सामने खडे होकर।

मार्च का अन्त आ गया है।
थीसिस की मास्टर कापी तैयार हो गयी है।
तीन कापियों में टाइप कराने को दे देता हूँ।

टाइप पृष्ठों का मूल कापी से मिलान करता हूँ-मैगनीफाइंग ग्लास लगाकर स्पेलिंग जाँचता हूँ-हेन ने कहा था स्पेलिंग, पंक्चुएशन की गलतियाँ शोधार्थी की लापरवाही बताती हैं। ऐसा अवसर क्यों देना!

टाइप किये पृष्ठ जिल्दसाज़ को दे देता हूँ।

अप्रैल का अन्तिम सप्ताह आ गया है। थीसिस की तीन कापियाँ जिल्द बँधकर आ गयी हैं।

मेरे दो वर्षों का अध्ययन, चिन्तन, मनन, मंथन, लेखन स्थूल रूप में।

देखने में सुन्दर। भीतर की सामग्री भी अधिकारी विद्वानों द्वारा सुन्दर समझी जाये, तब तो सम्यक सुन्दरता सिद्ध हो। हेन ने मुझसे कहा था, जब थीसिस तैयार हो जायेगी, तब वे एक बार शुरू से आखिर तक पढ़ेंगे। उसके बाद ही उसे डिग्री कमेटी में परीक्षण के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

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