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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


तब से वह शाम मुझे जितनी बार याद आयी, मैंने वह बदली हुई पंक्ति मन में दुहराई है।

कान्वोकेशन की तारीख नज़दीक आ रही थी।

नियमानुसार डिग्री लेने के लिए फीस के रूप में पाँच पौण्ड कॉलेज और छह पौण्ड युनिवर्सिटी को देने थे। यह भी बावा ने मेरे लिए चुकाये।

कान्वोकेशन के अवसर पर डिग्री लेने वालों को एक खास तरह की पोशाक पहननी पड़ती है। कॉलेज से आदेश उसके लिए आ गया-काला जूता, काला मोजा, काला डिनर-जैकेट-सट, सफेद कमीज़, सन्ध्या को बाँधी जाने वाली सफेद टाई, सबके ऊपर एम० ए० का गाउन और सिर पर पी-एच० डी० की कालीचौखंटी-चोटीदार टोपी।

नये स्नातक बड़े उत्साह से नया सूट सिलवाते हैं; उनके जीवन का एक महत्त्वपूर्ण अवसर होता है, फिर-फिर तो नहीं आने वाला है। केम्ब्रिज भर के दर्जी व्यस्त।

मैं तो नया बनवाने की स्थिति में नहीं था।

पर कपड़ों के सम्बन्ध में युनिवर्सिटी के नियम की अवहेलना नहीं की जा सकती थी।

किसी से मँगनी माँगने पड़े।
पहनकर चार्ली चेपलिन लगता हूँ।
अपने पर ठठाकर हँसता हूँ।
रुदन कभी-कभी हँसी का बाना भी धारण करता है। छिपता है क्या?

केम्ब्रिज युनिवर्सिटी का कान्वोकेशन बड़ा चित्रात्मक अवसर होता है।

वाइस चांसलर का जलूस चलता है, कॉलेजों के सामने के मार्ग के बायें फुटपाथ पर, सेनेट हॉल की ओर, जो बार्टी ही तरफ पड़ता है। दर्शक दाहिने फुटपाथ पर लाइन लगाकर देखने को खड़े हो जाते हैं।

आगे-आगे खास तरह की काली वर्दी, काली टोपी में प्राक्टर और उसके दो सहायक चलते हैं, काँधों पर चाँदी की चमकती गदा रखे, गदा अपने हनुमानजी की-सी नहीं, मोटे डण्डे-सी, एक सिरे पर कुछ ज़्यादा मोटी। वाइस चांसलर काला, ऊपर कुछ चमकीले काम का, लम्बा गाउन पहनते हैं, दो 'पेज ब्वाइज़' काली वर्दियों में उसे पीछे से उठाये रहते हैं, फिर कोर्ट के सदस्य, बड़े अध्यापक अपनी-अपनी डिग्री के अनुरूप रंग-बिरंगे गाउनों में।

वाइस चांसलर सेनेट हॉल में आकर एक सिरे पर ऊँचे डायस पर बीचोंबीच में रखी एकमात्र कुर्सी पर बैठ जाते हैं। प्राक्टर-पेज ब्वाएज़ पीछे खड़े हो जाते हैं।

कार्रवाई सब लैटिन में होती है। अपने पल्ले कछ नहीं पडती। संस्कृत में जैसे अनुस्वार-मकार की ध्वनि बहुतायत से आती है वैसे ही लैटिन में भी। ध्वनि से लगता है जैसे कोई बड़ी गम्भीर बात कही जा रही है। वातावरण गम्भीरता का होता ही है। ऊँची छत से आवाज़ प्रतिध्वनित होती गूंजती है।

स्नातक वाइस चांसलर के सामने जाकर घुटनों के बल बैठ जाता है, अपना हुड उतारकर दाहिनी तरफ रख देता है। बिल्कुल भारतीय पद्धति से हाथ जोड़कर बैठता है। वाइस चांसलर उसका जुड़ा हुआ हाथ अपने दोनों हाथों में लेते हैं, लैटिन में कुछ कहते हैं, स्नातक दाहिने हाथ से हुड उठाकर सिर पर रखता है, खड़ा होता है और बायीं ओर को मुड़ जाता है, जहाँ दरवाजे पर उसकी डिग्री का कागज़ी सर्टिफिकेट उसे दिया जाता है, जिसे लेकर वह हॉल से बाहर निकल जाता है। अभी तक वह युनिवर्सिटी के सामान्य विद्यार्थी का गाउन ही पहने रहता है, बाहर निकलने पर वह अपनी विशेष डिग्री का गाउन पहन सकता है।

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