ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
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अलीमर्दान अपनी फौज लिए भांडेर में पड़ा था। दलीपनगर के दमन की प्रबल आकांक्षा उसके मन में थी। परंतु दिल्ली की अस्थिर अवस्था और इलाहाबाद के सैयद भाइयों की प्रबल हलचल उसे उग्र रूप धारण करने से वर्जित कर रही थी। कालेखाँ पालर की पुजारिन की बीच-बीच में काफी याद दिला देता था। उस विषय के लिए भी अलीमर्दान के हृदय में एक बड़ा-सा लालसायुक्त स्थान था। परंतु इस स्थान में भी उसकी इच्छाओं पर एक बड़ा बंधन कसा हआ था। वह यह था कि अलीमर्दान और उस सरीखे अन्य मनचले सूबेदार जो सिर से दिल्ली का बोझ हल्का होते ही स्वतंत्र हो जाने के मनोहर स्वप्नों में डूबे रहते थे, अपने सूबे की और पड़ोस की हिंदू जनता पर अधिनों और सैनिकों के लिए बहुत नि रहते थे, इसलिए यथासंभव उसे व्यर्थ नहीं “चिढ़ाते-छेड़ते थे। दिल्ली में कमनोर न और प्रांतों में महत्त्वाकांक्षी सूबेदार होते थे, उस समय यह बात बहुत स्पष्ट रूप में दिखाई पड़ती थी।
धीरे-धीरे भांडेर में भी यह खबर पहुँच गई कि विराटा में एक देहधारिणी देवी
है,जो अपने वरदानों से निस्सहायों को समर्थ कर देती है। यदि अलीमर्दान चढ़ाई
के साथ अनुसंधान करता, तो पालर और विराटा की देवी की समानता उसे कदाचित्
शीघ्र मालूम हो जाती। उसने इस विषय को किसी शीघ्र आनेवाले अनुकूल समय की आशा
से प्रेरित होकर स्थगित कर दिया और केवल ऐसी साधारण ढूँढ़-खोज को, जो आसानी
से दूसरों पर प्रकट न हो पाए, जारी रखा। इस साधारण ढूँढ़-खोज से शीघ्र पता
इसलिए
और न लगा कि लोग सहज और स्पष्ट का शीघ्र विश्वास नहीं करते, दूर के कारणों का
आविष्कार करने में निकट की वस्तुस्थिति दृष्टि से लोप होने लगती है। विराटा
में पालर की सुंदरी भांडेर के इतने नजदीक! असंभव!! अनुसंधानकर्ता उस देवी की
उपस्थिति को भांडेर के इतने पास भान नहीं कर सकते थे। इसके अतिरिक्त
अलीमर्दान की इस विषय की ओर कोई प्रबल रुचि प्रकट न होती देखकर उन लोगों ने
ढूंढ-खोज का सिलसिला ढीला रखा।
भांडेर के आस-पास के राजा और राव अलीमर्दान को भांडेर में उपस्थित देखकर जरा चौकन्ने थे, किसी भी प्रबल व्यक्ति का अपने पड़ोस में जरा देर तक टिका रहना देखकर उन्हें मन-ही-मन अखरता था। उनका अपना स्वच्छंद वन-पर्वत किसी अस्पष्ट आतंक के विरुद्ध-सा दिखाई पड़ता था और वे उससे शीघ्र छुटकारा पाने के लिए व्याकुल से थे। उदाहरणों की उनके सामने कमी न थी।
रामनगर का राव पतराखन इस बीच में कई बार भांडेर गया-आया। वह यह बात जानना
चाहता था कि अलीमर्दान क्यों यहाँ पड़ा हुआ है और कब तक इस तरह पड़ा रहेगा।
साथ ही वह अलीमर्दान को मौका मिलने पर यह विश्वास दिलाना चाहता था कि भांडेर
में और अधिक ठहरना बेकार है। एक दिन अलीमर्दान से अकेले में बातचीत हुई।
अलीमर्दान ने पूछा, 'सुना है रावसाहब, आपके पड़ोस में देवी का कोई अवतार हुआ
है।'
'जी हाँ। कोई नई बात नहीं है, हमारे धर्म में ऐसा होता रहता है।' 'कब हुआ था?' 'बरसों हो गई हैं। हमेशा से उसकी बावत सुनता आया हूँ।' 'हाँ साहब, अपने-अपने मजहब की बात है। मुझे उसमें दखल देने की कोई जरूरत नहीं है। वैसे ही पूछा है।'
परंतु रामनगर लौट आने के कई रोज पीछे भी पतराखन ने सुना कि अलीमर्दान भांडेर में ही है।
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