ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
:४६ :
संध्या हो चुकी थी। रामनगर की गढ़ी के फाटक बंद होने में अधिक विलंब न था।
पहरेवालों ने फाटकों को अधर्मंदा रख छोड़ा था। उनका कोई साथी गाँव में तंबाकू
लेने गया था। इतने में गढ़ी के नीचे, जो बेतवा-किनारे एक ऊँची टौरिया पर बनी
थी, दस-बारह घुड़सवार आकर रुक गए। और सवार तो वहीं रहे, एक उनमें से फाटक पर
आया। पहरेवाले ने फाटक को जरा और खोलकर पूछा, 'आप कौन हैं?' ।
'दलीपनगर से आ रहा हूँ। महारानी और कुछ सरदार नीचे खड़े हैं, बहुत शीघ्र और आवश्यक काम से मिलना है।' आगंतुक ने उत्तर दिया।
पहरेवाले ने नम्रतापूर्वक कहा, 'आपका नाम?' 'रावसाहब को मेरा नाम रामदयाल बतला देना।' उत्तर मिला।
पहरेवाला भीतर गया। राव पतराखन आ गया। अँधेरा था, नहीं तो रामदयाल ने देख लिया होता कि पतराखन के चेहरे पर इस आगमन के कारण प्रसन्नता के कोई चिह्नन थे। रामदयाल से प्रयासपूर्वक मीठे स्वर में बोला, 'महारानी को ऐसे समय यहाँ आने की क्या आवश्यकता पड़ी?'
रामदयाल ने कहा, 'कालपी के नवाब अलीमर्दान को कर्तव्य-पथ पर सजग करने के लिए
आई हैं। दलीपनगर की दूरी से यह काम नहीं बन सकता था। इस समय नवाब
साहब भांडेर में हैं। यहाँ से सब काम ठीक हो जाएगा।'
पतराखन ने पूछा, 'महारानी कहाँ हैं?' रामदयाल ने इशारे से बतला दिया। कुछ सोचता-विचारता पतराखन गढ़ी से उतरा और नीचे से दलीपनगर के सवारों को गढ़ी पर लिवा लाया। कशल-मंगल के बाद जब सब लोगों को डेरा दे दिया तब रामदयाल से बातचीत हुई।
पतराखन ने कहा, 'अब की बार बड़ी रानी ने भी छोटी रानी का साथ दे दिया।'
रामदयाल ने जवाब दिया, 'साथ तो वह सदा से हैं, परंतु कुछ लोगों ने बीच में
मनमुटाव खड़ा कर दिया था।'
'परंतु बड़ी रानी के साथ हो जाने पर भी फौज-भीड़ तो कुछ भी नहीं दिखाई पड़ती।
इतने आदमियों से देवीसिंह का क्या बिगड़ेगा?"
'ये सब सरदार हैं। इनके साथ की सेना पीछे है और फिर नवाब साहब की मदद होगी। आप भी सहायता करेंगे?'
'सो तो है ही। इसमें संदेह ही क्या है। यदि नवाब साहब ने सहायता कर दी, तो बहुत काम बनने की आशा है। मैं भी जो कुछ सहायता बनेगी, करूँगा ही। विराटा का दाँगी भी अपने भाई-बंदों को लाएगा। आजकल उसे जरा घमंड हो गया है।'
'किस बात का?' 'अपनी संख्या का। उसके गाँव में देवी का अवतार हुआ है। उसका
भी उसे बहुत भरोसा है।'
'देवी का अवतार? हाँ, हो सकता है, होता ही रहता है। उसका पालर में हुआ था,
परंतु-'
'परंतु क्या? सुनते हैं, वही यहाँ चली आई है। एक दिन अलीमर्दान ने मुझसे
पूछा था। लोग कहते थे, उनके कारण ही देवी को पालर से भागना पड़ा। यह सब गलत
है। नवाब कहता था कि अवतार सबकौमों में होते हैं और उसे किसी धर्म में दखल
देने की जरूरत नहीं है और मैं इन विषयों पर बहुत कम बहस करता हूँ।'
'नवाब साहब कहते थे!' रामदयाल ने प्रकट होते हुए आश्चर्य को रोककर कहा, 'जरूर
कहते होंगे। वह तो बड़े उदार पुरुष हैं। उन्होंने पालर में जाकर देवी की पूजा
की थी। मूर्तियों को छुआ तक नहीं, तोड़ने की तो बात क्या।'
किसी कल्पना से विकल पतराखन बोला, 'हमारी गढ़ी की बहुत दिनों से मरम्मत नहीं
हुई है। दीवारें गोलाबारी नहीं सह सकतीं। फाटक भी नए चढ़वाने हैं, गोला-बारूद
की भी कमी है। इस गढ़ी में होकर युद्ध करना बिलकुल व्यर्थ होगा। वैसे मैं और
मेरे सिपाही सेवा के लिए तैयार हैं।'
रामदयाल समझ गया। बोला, 'यहाँ से युद्ध कदापि न होगा। आप गढ़ी की मरम्मत चाहे
कल करा लें, चाहे दस वर्ष बाद। यह स्थान छिपा हुआ है और सुरक्षित है, इसलिए
महारानी को पसंद आया-'
पतराखन ने रोककर कहा, 'सो तो उनका घर है, चंपतराय कई बार ठहरे हैं, परंतु
ठहरे वह थोड़े-थोड़े दिन ही हैं। खैर उसकी कोई बात नहीं है। विराटा की गढ़ी
देखी
'नहीं तो।' 'बहत सुरक्षित है। दाँगी को उसी का तो बड़ा गर्व है।' 'मैं कल ही
जाकर देगा। 'परंत मेरी ओर से वहाँ कुछ मत कहना।' 'नहीं, मैं तो किला देखने और
देवी के दर्शनों को जाऊँगा, किसी से वहाँ बातचीत करने का क्या काम? इसके
पश्चात् परसों नवाब साहब के पास जाऊँगा। देवीसिंह से जो लड़ाई होगी, उममें
महागनी आपमे वहन आशा करनी हैं और आपको पुरस्कार भी बहुत देंगी।'
पतराखन ने उत्तर दिया, 'वैसे तो मैं किमी का दबा हुआ नहीं हूँ। दलीपनगर के राजा से कोई संबंध नहीं। कालपी के नवाब और दिल्ली के बादशाह से हमारा ताल्लुक है, इसलिए जिस पक्ष में नवाब होंगे, उसी का समर्थन में भी करूंगा।'
पतराखन को रामदयाल रानियों के डेरे पर ले गया। दोनों आड़-ओट से वार्तालाप करने लगीं।
छोटी रानी ने कहा, 'बड़ी महारानी ने भी अब की बार हम लोगों का साथ दिया है। चोर-डाकू एक अधर्मी ब्राह्मण की सहायता से हमारे पुरखों के सिंहासन पर जा बैठा है। कुछ दिनों तो वह बड़ी महारानी और क्षत्रिय सरदारों को भुलावे में डाले रहा, परंतु अंत में भंडाभोड़ हो गया। अब की बार बहुत-से सामंत हमारे साथ हैं। आशा है, विजय प्राप्त होगी। आपको हम धन-धान्य और जागीर से संतुष्ट करेंगे। टेढ़े समय में जो हमारी सहायता करेगा, उसे सीधे समय में हम कभी नहीं भूल सकेंगे।'
पतराखन ने बड़ी रानी के सिसकने का शब्द सुना। बोला, 'मुझसे शक्ति-भर जितनी सहायता बनेगी, करूँगा। यह टूटी-फूटी-सी गढ़ी आप अपनी समझें।'
बड़ी रानी ने करुण कंठ से कहा, 'राव साहब, हम आपको इसका पुरस्कार देंगे।'
राव पतराखन में अदृष्ट को, अनिवार्य को सिर-माथे लेकर सोचा-यदि इन दो निस्सहाय स्त्रियों की रक्षा में इस गढ़ी को धूल में मिलाना पड़ा, तो कुछ हर्ज नहीं। किसी और गढ़ी को ढूँढ़ लूँगा।
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