ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
|
364 पाठक हैं |
वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
:५०:
सवेरे कुंजरसिंह नरपति के साथ विराटा के राजा सबदलसिंह के पास गया। राजा ने स्पष्ट इनकार तो नहीं किया, परंतु नरपति के बहुत हठ करने पर कहा, 'देवीजी की कृपा से काम बनने की आशा करनी चाहिए, परंतु भरोसा पक्का उस समय दिला सकूँगा, जब यह निश्चय हो जाए कि कालपी के नवाब की सहायता बिना आपके कुमार दलीपनगर के राजा की शक्ति का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं। यदि दिल्ली का पाया लौट गया और कालपी की नवाबी खतम होगई, तो मझे आपके राजा का साथ देने में बिलकुल संकोच न होगा। अथवा यदि आप लोग किसी तरह कालपी के नवाब को अपने पक्ष में कर लें, तो कदाचित् मुझे अपना सिर खपाने में ऊँच-नीच का विचार न करना पड़ेगा।'
कुंजरसिंह बोला,'कालपी का नवाबदलीपनगर पर धावा अवश्य करेगा। परंतु वह . . अपने स्वार्थ के लिए करेगा।'
'तब ऐसी दशा में आपको कुछ दिन बल एकत्र करने और चुपचाप परिस्थिति के अध्ययन करने में बिताने पड़ेंगे। अनुकूल स्थिति होने पर हम और आप दोनों मिल-जुलकर काम कर सकते हैं।'
नरपति बोला, 'हाँ, ठीक है। जरा देश-काल को परखकर काम करने में ही लाभ है। फिर दुर्गा सहायता करेंगी। आप तब तक रहेंगे कहाँ?'
'कुछ निश्चय नहीं।' कुंजर ने सोचकर कहा, 'चाहे कुमार कुंजरसिंह के पास चला जाऊँ, चाहे इधर-उधर सैन्य-संग्रह के लिए दौड़-धूप करता फिरूँ। आजकल हम लोगों के ठौर का कुछ ठिकाना नहीं।'
नरपति ने आग्रहपूर्वक कहा, 'तब आप हमारे राजा के यहाँ ठहर जाएँ।' और जरा
निहोरे के साथ सबदलसिंह की ओर देखने लगा।
सबदल ने पूछा, 'आपका नाम?' बिना किसी हिचकिचाहट के कुंजर ने उत्तर दिया, 'अतबलसिंह।'
सबदल ने कहा, 'आप यहाँ ठहर सकते हैं, यदि आपकी इच्छा हो तो। परंतु आपको रहना
इस तरह पड़ेगा कि आपका पता किसी को न लगे, अर्थात् जब तक आपका
अभिप्राय सिद्ध न हो जाए।'
कुंजर बोला, 'यह जरा मुश्किल है। ऐसा स्थान कहाँ है, जहाँ मैं बिना टोका-टाकी के बना रहूँ, स्वेच्छापूर्वक जी चाहे, जहाँ आ-जा सकूँ।'
'ऐसा स्थान है।' नरपति ने बात काटकर कहा, 'ऐसा स्थान देवी का मंदिर है। एक तरफ कहीं, जब तक चाहो तब तक पड़े रहो। तैरना जानते हो?'
'हाँ।' कुंजर ने उत्तर दिया। तब नरपति बोला, 'डोंगी की सहायता बिना भी
स्वेच्छापूर्वक चाहे जहाँ आ-जा सकते हो।'
'परंतु।' सबदलसिंह ने जरा जल्दी से कहा, 'डोंगी मिलने में अधिक अड़चन न हुआ करेगी। हाँ, किसी समय उसका प्रबंधन हो सके, तो आप यों भी तैरकर पार जा सकते हैं। इस ओर की धार भी छोटा-सी ही है। मंदिर में आने-जानेवाले लोग आपकी रोक-टोक भी न करेंगे।'
एक धीमी, अस्पष्ट आह भरकर कुंजर बोला, 'देखें कब तक वहाँ इस तरह टिका रहना
पड़ेगा।' फिर तुरंत भाव बदलकर उसने कहा, 'सैन्य-संग्रह शीघ्र हो जाएगा और
देवीजी की कृपा होगी, तो बहुत शीघ्र सफलता भी प्राप्त हो जाएगी।'
|