ऐतिहासिक >> विराटा की पद्मिनी विराटा की पद्मिनीवृंदावनलाल वर्मा
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वृंदावनलाल वर्मा का एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक उपन्यास...
६०:
रामदयाल राव पतराखन से बातचीत करने के उपरांत रानियों के पास गया। छोटी रानी
से बोला, 'नवाब साहब आए हैं।' छोटी रानी ने पूछा, 'सेना लेकर या अकेले ही?'
रामदयाल ने जवाब दिया, 'अपने सेनापति के साथ, अकेले आए हैं। आपका आशीर्वाद
लेकर इसी समय भांडेर चले जाएँगे।'
'अभी क्या सीधे भांडेर गे आ रहे हैं?' बड़ी रानी ने प्रश्न किया। 'नहीं
महाराज।' उसने बिना कुछ सोचे-समझे उत्तर दिया, 'विराटा होकर आए हैं?
छोटी रानी बोली, 'विराटा के राजा से कोई बातचीत हो आई है?' रामदयाल ने कहा, 'वहाँ वह देवी का दर्शन करने गए थे।' यह बात कहने के बाद रामदयाल मन में पछताया। बड़ी रानी बोलीं, 'दर्शन करने गए थे! वहाँ मंदिर के भीतर कैसे जाने पाए होंगे?'
रामदयाल ने बात बनाई, उन्होंने दर्शन करने की उत्कट अभिलाषा प्रकट की, तो
मैं उन्हें वेश बदलवाकर लिवा गया। चढ़ौती चढ़ाकर वह तुरंत वहाँ से चले आए।'
बड़ी रानी ने कहा, 'विराटा की वह देव-कन्या वहाँ है?'
रामदयाल झूठ न बोल सका, 'हाँ महाराज, वह वहीं है।' फिर तुरंत एक क्षण बाद उसने कहा, 'परंतु जैसा कुंजरसिंह राजा और देवीसिंह राजा ने झूठमूठ उड़ा रखा, नवाब वैसा आदमी नहीं है। वह हमारे लोगों की तरह ही देवी-देवताओं को मानता है।'
बड़ी रानी चप हो गई। छोटी रानी ने कहा, 'विराटा के राजा से बातचीत हुई या नहीं?' 'अवसर नहीं मिला महाराज।' रामदयाल ने उत्तर दिया, 'उन्हें भांडेर लौटने की जल्दी पड़ रही है। यदि विराटा का राजा हमारा साथ देने से नाहीं भी करेगा, तो इसमें हमारी कुछ हानि नहीं हो सकती। अपना बल बहुत अधिक है! मैं नवाब की पूरी सेना देखकर चकित हो गया हूँ।'
छोटी रानी ने कहा, 'नवाब को बुला ला। जल्दी बातचीत करके लौट जाएँ और तुरंत कार्यक्रम का निर्णय करके दलीपनगर से उस डाकू को भगा दें।'
रामदयाल परदे का प्रबंध करके अलीमर्दान और कालेखाँ को लिवा लाया। वे दोनों
अपने उसी अधुरे वेश में थे। दोनों रानियों ने ओट से उन दोनों को देखा।
छोटीरानी को हँसी आई। बड़ी रानी के मन में संदेह जगा।
रामदयाल के मार्फत बातचीत होने लगी।
छोटी रानी, अब क्या किया जार पही के भरोसे इतनी हिम्मत करके और कष्ट उठाकर दलीपनगर को छोड़ा।'
अलीमर्दान, 'मैं तुरंत हमला करने के लिए तैयार हूँ। दिल्ली से एक संदेशा आनेवाला है। उसी की बाट देख रहा हूँ। केवल आठ-दस दिन का विलंब है। तब तक आप अपने सरदार भी इकट्ठे कर लें।'
छोटी रानी, 'यह हो रहा है। विराटा का राजा किस ओर रहेगा?' अलीमर्दान, 'वह यदि आपके पक्ष में न होगा, तो मैंने उसे चकनाचूर करने की ठान ली है।'
छोटी रानी, 'आप पहले दलीपनगर या सिंहगढ़ पर आक्रमण करेंगे?' अलीमर्दान,
'दोनों ठिकानों पर एक साथ धावा बोला जाएगा। आप क्या बात पसंद करती हैं?''
छोटी रानी, 'ठीक है। मैं स्वयं दलीपनगर पर चढ़ाई करूंगी। आप हमारी सेना के साथ रहें। अपने सेनापति को सिंहगढ़ की ओर भेजें।'
अलीमर्दान, 'यही मैंने सोचा है। यदि कार्य-विधि में कोई तबदीली हुई, तो आपको
मालूम हो जाएंगा।'
छोटी रानी, 'अब की बार तोपों की संख्या बढ़ा दी गई या नहीं?' अलीमर्दान,
'पहले से कहीं अधिक, कई गुनी।' छोटी रानी, और सैनिक?' अलीमर्दान, 'सैनिक भी
बढ़ा दिए गए हैं।' बड़ी रानी ने धीरे से छोटी रानी के कान में कहा, 'बदले में
नवाब क्या लेंगे?' 'कुछ नहीं।' छोटी रानी ने कान ही में उत्तर दिया, 'वह मेरे
राखीबंद भाई हैं।'
बड़ी रानी ने कहा, 'पहले तय कर लेना चाहिए। पीछे पैर फैलावेंगे, तो बहुत
गड़बड़ होगी।'
'क्या गड़बड़ होगी?' रानी ने पूछा।
बड़ी रानी ने उत्तर दिया, 'दलीपनगर को अपने अधिकार में कर लेंगे।' 'कर लें।' छोटी रानी ने तीव्रता के साथ, परंतु बहुत धीरे से कहा, 'देवीसिंह डाकू से तो दलीपनगर का छुटकारा हो जाएगा। चाहे प्रलय हो जाए, परंतु देवीसिंह को दलीपनगर से निकालना और जनार्दन को प्राणदंड देना है।'
छोटी रानी ने अलीमर्दान को कहला भेजा, 'बड़ी महारानी आशीर्वाद देती हैं कि
आपको विजय-लाभ हो।'
अलीमर्दान ने चरण छूना कहा। इसके बाद थोड़ा-सा खा-पीकर वे दोनों वहाँ से चले
गए।
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