उपन्यास >> अवसर अवसरनरेन्द्र कोहली
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अवसर
बारह
संध्या ढलने पर मुखर ने समाचार दिया कि उसने आश्रम के चारों ओर कई राक्षस घूमते तथा परस्पर कुछ संकेत इत्यादि करते देखे हैं। राक्षस ही थे-वनवासी नहीं। ग्रामवासी भी वे नहीं हो सकते थे, क्योंकि इधर किसी साधारण ग्रामवासी के पास, न तो वैसे भड़कीले राजसी वस्त्र थे; न कोई ग्रामवासी सोने के गहने पहनता था और न किसी के पास शस्त्र ही थे। उतना मोटा और उतना भड़कीला, निश्चित रूप से राक्षस ही हो सकता था...। सूचना सबके सामने थी। इस बात में अधिक मतभेद नहीं था कि वे लोग आश्रम पर आक्रमण की तैयारी कर रहे हैं। किंतु किस समय? यदि खुला आक्रमण करना होता, तो दिन के समय करते, किंतु उनके हाव-भाव बता रहे थे कि वे आक्रमण रात में ही करेंगे।
''आधी विजय हमारी हो चुकी,'' राम प्रसन्न मुद्रा में बोले, '"हम संख्या में केवल पाँच हैं। उनकी संख्या बहुत अधिक है, फिर भी वे छिपकर आक्रमण करना चाहते हैं, इसका अर्थ स्पष्ट है कि वे हमसे भयभीत हैं। भयभीत व्यक्ति आधा तो पहले ही हार चुका होता है।''
''फिर भी भद्र राम! हमें सावधान रहना चाहिए,'' उद्घोष बोला, ''आप तुंभरण को नहीं जानते। वह बहुत नीच और दुष्ट है!''
राम संभावित आक्रमण के विषय में गंभीरता से सोच रहे थे। उन्होंने सिर उठाकर सबको देखा, 'दैसे तुंभरण का आक्रमण बहुत गंभीर आक्रमण नहीं होगा। उसके पक्ष के किसी योद्धा के युद्ध कौशल की ख्याति इस सारे क्षेत्र में मैंने नहीं सुनी। होगा वह खिलवाड़ ही। फिर भी थोड़ी- सी सावधानी आवश्यक है। अपनी इतनी कम संख्या के कारण, आश्रम की पूरी सीमा पर पहरे की व्यवस्था हम नहीं कर सकते, इसलिए दो-दो की टोली में इस ऊंचे वृक्ष पर चढ़कर रात-भर प्रहरी का काम करना होगा। आशंका होते ही शेष लोगों को जगा देना होगा।...और आज प्रत्येक व्यक्ति बाणों का पूरा तूणीर अपने निकट रखकर सोए, कवच भी धारण कर लेने चाहिए। गोह के चमडे के दस्ताने भी पास ही रखें।...उल्काओं की व्यवस्था तो है न लक्ष्मण?''
''ढेर है पूरा।''
"तो ठीक है।''
रात के भोजन के पश्चात् पहरा आरंभ हुआ। पहली टोली लक्ष्मण और उद्घोष की थी। वे दोनों वृक्ष पर, काफी ऊंचा सुविधाजनक स्थान देखकर टिक गए। राम के निर्देशानुसार उन्होंने उल्काएं तथा तूणीर अपने पास रख लिए। कवच उन्होंने पहले से ही धारण कर रखे थे।
लक्ष्मण का विचार था कि यदि राक्षसों ने रात को आक्रमण करने की योजना बनाई है, तो वह आक्रमण दूसरे प्रहर में होना चाहिए, जब आश्रमवासियों के सो जाने की संभावना है। उस समय पहरे पर स्वयं राम और सीता होंगे।...किंतु उन्हें वृक्ष पर टिके आधा प्रहर भी नही बीता था कि आश्रम की सीमाओं पर कुछ हलचल दिखाई देने लगी। लक्ष्मण सचेत हो गए। उदघोष भी पूर्णतः सजग हो उठा।...
राक्षसों की हलचल निरंतर बढ़ती जा रही थी। लक्ष्मण ने उद्घोष को इंगित किया। उद्घोष ने मुखर के कुटीर में निश्चित लक्ष्य पर बिना फल का एक बाण मारा। यह राक्षसों के आने का संकेत था।
ऊपर, वृक्ष पर बैठे हुए लक्ष्मण और उद्घोष ने देखा कि मुखर की कुटिया का द्वार खुला और उसने राम की कुटिया के द्वार पर थाप दी। मुखर अपनी कुटिया में लौट गया; और धनुष-बाण लेकर अपनी कुटिया के गवाक्ष पर सन्नद्ध बैठ गया। दूसरी ओर ठीक उसी प्रकार सीता धनुष-बाण लेकर अपनी कुटिया के गवाक्ष पर बैठ गईं। वे दोनों इस ओर से होने वाले आक्रमण से अपनी तथा शस्त्रागार की रक्षा के लिए तैयार बैठे थे। राम अपना भारी धनुष उठाए हुए, कुटीरों तथा शस्त्रागार की दूसरी ओर से रक्षा के लिए कुटीरों के पीछे चले गए।
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