लोगों की राय

उपन्यास >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14994
आईएसबीएन :9788181431950

Like this Hindi book 0

अवसर

''वे लोग भीत कुत्ते के समान दुम दबाए हुए गांव में आए थे।'' धातुकर्मी बोला, ''गांव का विप्लव देखकर, उसी प्रकार दुम दबाए हुए वन की ओर भाग गए।''

''वे लोग अपने मित्र राक्षसों के पास सहायता के लिए गए होंगे,'' उद्घोष बोला, ''वे अवश्य लौटकर गांव में आएंगे; और फिर पहले से भी अधिक अत्याचार करेंगे।''

''इसीलिए तो हम आपके पास आए हैं।'' झिंगुर उत्साह के साथ बोला, ''अब हमारे मन में से राक्षसों का भय समाप्त हो गया है। वे लौटेंगे तो हम प्रतिरोध करेंगे। उसके लिए आवश्यक है कि आप हमें शस्त्र और शस्त्र-शिक्षा दें। हम उनसे युद्ध कर उन्हें भगा देंगे अथवा मार डालेंगे।''

''आपका प्रस्ताव श्लाध्य है आर्य झिंगुर!'' राम बोले, ''और यही राक्षस-समस्या का समाधान भी है। आप लोगों को सशस्त्र होना भी चाहिए। इस नई-नई स्वतंत्रता की रक्षा के लिए, आप लोगों को सैनिक शिक्षा अवश्य प्राप्त करनी चाहिए। इन सारे कामों के लिए हम पूरी तरह से आपकी सहायता करेंगे। किंतु, उसके साथ एक अन्य मोर्चे पर भी आप लोगों को लड़ना होगा। आपको अपने गांव में मानव-समता पर आधृत, समान अधिकारों वाला समाज बनाना होगा, जिसमें उत्पादन के साधनों पर सबका समान अधिकार हो। नये समाज की नई नैतिकता स्थापित करनी होगी, अन्यथा आपके अपने ग्रामवासियों में से ही, गलत व्यवस्था के कारण, अनेक राक्षस जन्म लेंगे; जो आज आपके मित्र हैं, वे कल आपके स्वामी बन जाएंगे। अतः आपका प्रशिक्षण लंबा है...''

''तो?''

भीड़ के चेहरों पर अनेक आशंकाएं थी।

''तो आप सबका इस आश्रम में रहना व्यावहारिक नहीं है। अब, जब आप अपने गांव के स्वामी स्वयं हैं, इस आश्रम में नया ग्राम बनाने की आवश्यकता नहीं है। हमारे पास जितने शस्त्र हैं, वे आप सबके लिए पर्याप्त भी नहीं हैं। अतः आपको अपने शस्त्रों का निर्माण भी स्वयं ही करना होगा। आप लोग अपने गांव में लौट जाएं। उद्घोष आपके साथ जाएंगे, और शस्त्र-निर्माण की व्यवस्था करेंगे। लक्ष्मण के कहे अनुसार आपके मित्र धातुकर्मी अब शस्त्रकार बनें। वे तथा उनके सहयोगी आपकी धातुओं को शस्त्रों में ढाल देंगे। प्रशिक्षण, सहायता, निरीक्षण तथा निर्देशन के लिए सौमित्र प्रतिदिन आपके गांव जाएंगे। स्त्रियों के प्रशिक्षण के लिए आवश्यकतानुसार सीता भी जाएंगी। मुखर भी आवश्यकता पड़ने पर जाएंगे; और इसके पश्चात् भी आवश्यकता हो तो यह आश्रम आपका है। मैं आपकी सहायता के लिए प्रस्तुत हूँ।''

राम मौन हो गए। कुछ क्षण के लिए भीड़ पर, चमगादड़ के समान अनिश्चय आ टंगा; किंतु धीरे-धीरे वायुमंडल की धूल के समान वह भूमि पर बैठ गया।

''ठीक है।'' उद्घोष ने कहा, ''मैं गांव जाऊंगा।''

''कोई असुविधा तो नहीं बंधुओ?'' राम ने पूछा।

''नहीं। आप ठीक कह रहे हैं।'' झिंगुर बोला, ''हमारा अपने घरों में अपने परिवारों के साथ रहना, अधिक सुविधाजनक है। अब देखिए न! सुमेधा की मां इस बार फिर मेरे साथ नहीं आई।''

''चलो मित्रो!'' धातुकर्मी बोला, ''चलो गांव की ओर।''

उन लोगों ने हाथ जोड़, नमस्कार किया और लौट चले।

''जा रही हो सुमेधा?'' सीता बोलीं।

''हां दीदी!'' सुमेधा मुस्कराई, ''अब तो उद्घोष भी गांव लौट रहा है। तुम कब आओगी हमारे गांव दीदी?''

''तेरे विवाह पर!''

''धत्!'' सुमेधा ठिठककर खड़ी हो गई, पर फिर गतिमान हो उठी, ''अब तो मैं प्रतिदिन आऊंगी दीदी! प्रतिदिन!''

वह भी भीड़ के पीछे भाग गई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पंद्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book