लोगों की राय

उपन्यास >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2021
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14994
आईएसबीएन :9788181431950

Like this Hindi book 0

अवसर

प्रतिहारी विपुल की ओर बढ़े। विपुल प्रतिहारियों से बचता, इधर-उधर भागता रहा, साथ ही चीखता रहा, ''अब किसी को अपनी सुरक्षा के लिए राज्य के सैनिकों पर विश्वास नहीं। लोग अपनी रक्षा स्वयं करेंगे। निजी अंग-रक्षकों तथा निजी सैनिकों के युद्ध अयोध्या के हाट-बाजारों में होंगे। अयोध्या के मुख्य पथ, रक्तपात के...'' प्रतिहारियो ने उसे पकड़कर उसका मुख पट्टी से बांध दिया था; अब केवल उसकी आँखें खुली थी। प्रतिहारी सम्राट् के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे थे।

"इसे भूगर्भ कारागार में डाल दो।'' सम्राट् ने आज्ञा दी-''और आज से किसी राजकीय बंदी के विषय में अधिकारियों से पूछताछ नहीं की जा सकेगी। साम्राज्य की सुरक्षा के लिए, आवश्यक होने पर किसी भी व्यक्ति को बिना अभियोग बताए भी बंदी किया जा सकेगा।''

सम्राट् उठकर खड़े हो गए। सभा विसर्जित हो गई।

दशरथ की चिंता तनिक भी कम नही हुई थी। उन्होंने क्या करना चाहा था और क्या हुआ। अपने अंग-रक्षकों को नगर-रक्षा का दायित्व सौंपा था कि नगर में भरत की शक्ति कम हो जाए। भरत की शक्ति कम कर पाए या नहीं, कह नहीं सकते; हां पुष्कल के द्वारा वैधानिक संकट अवश्य उठा दिया गया; साथ ही खतरा उत्पन्न हो गया कि यदि कैकेयी को आभास मिल गया कि दशरथ क्या करने का प्रयत्न कर

रहे हैं तो उसकी ओर से जवाबी आघात हो सकता है; और संभव है कि वह आघात इतना भारी हो कि दशरथ उसे सभाल न पाएं। उससे बचने के लिए पुष्कल का अपहरण करवाया तो यह बवंडर मच गया क्या, हो गया है उन्हें।

क्या सचमुच दशरथ इतने बूढ़े हो चुके हैं कि अब राजनीतिक गतिविधि उनकी क्षमता से बाहर है। उनकी प्रत्येक चाल उलटी पड़ रही है। उन्होंने सत्ता को पूर्णतः हस्तगत करना चाहा था-किंतु लगता है, उनकी रही-सही सत्ता को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार का बल-प्रयोग, दमन, लोगों के अधिकारों को सीमित करना-कब तक उनकी सहायता कर पाएगा। हर बात की सीमा होती है...

इतना रोकने पर भी पुष्कल का बेटा क्या कह गया राजसभा में-किसी को दशरथ के शासन में आस्था नहीं है। अब कोई अपनी सुरक्षा के लिए राजकीय सैनिकों पर निर्भर नहीं रहेगा। सभी धनवान और शक्तिशाली लोग निजी सैनिक और अंग-रक्षक रखेंगे। स्थान-स्थान पर निजी सेनाओं में युद्ध होंगे, रक्तपात होगा...कैसा होगा, अयोध्या का शासन? और सबसे बड़ी निजी सेना आज किसके पास है। कैकय के राजदूत के पास।

अब तक निजी सेनाएं केवल अपने स्वामियों के अंग-रक्षकों का काम करने की औपचारिकता निभाती रही हैं। उनके पास किसी भी प्रकार के राजकीय अधिकार नहीं हैं, किंतु यदि निजी सेनाओं के युद्ध आरम्भ हुए तो फिर राजकीय अधिकारों की आवश्यकता किसको रहेगी? विशेष संबंधों को मान्यता देते हुए, कैकय के राजदूत को सबसे बड़ी निजी सेना रखने की अनुमति दी गई थी। वह सेना कैकेयी की निजी सेना हो जाएगी...तो कैकेयी की शक्ति कम होगी या बढ़ जाएगी?

किस झमेले में फंस गए सम्राट्...संभव है कि लड़के विपुल ने निरर्थक प्रलाप ही किया हो, उसकी बात के पीछे, कोई ठोस आधार न हो; किंतु संभावनाओं की ओर से आँखें नहीं मूंदी जा सकतीं।

अब तो एक ही रास्ता है कि साम्राज्य में निजी सेनाओं का निषेध कर दिया जाए...किंतु यह कैसे संभव है? कोसल के प्रत्येक सामंत के पास अपनी निजी सेना है, जो युद्ध के अवसर पर साम्राज्य की ओर से लड़ती है। प्रत्येक महत्वपूर्ण व्यक्ति के पास अपने अंग-रक्षक हैं। प्रत्येक राजदूत के पास अपनी निजी सेना है...उन सब पर प्रतिरोध लगाया जाएगा तो, सामंतों की सेना का व्यय, साम्राज्य पर आ पड़ेगा...अन्य निजी अंग-रक्षकों तथा सैनिकों की आजीविका का क्या होगा?-क्या साम्राज्य इतने कर्मचारियों का बोझ उठा सकेगा?...और अन्त में विभिन्न राज्यों के राजदूतों की सुरक्षा का प्रबंध, अयोध्या की सेना को करना पड़ेगा। फिर वे स्वतंत्र राज्य हैं, दशरथ का शासन उन पर नहीं है। दशरथ उन राज्यों की पूछताछ, प्रश्न-जिज्ञासा पर प्रतिबंध नहीं लगा सकते...उन्हें क्या उत्तर देंगे सम्राट्?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पंद्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book