उपन्यास >> अवसर अवसरनरेन्द्र कोहली
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अवसर
दूसरा राक्षस आगे बढ़ आया। उसने मुनि को जोर का धक्का दिया। मुनि पृथ्वी पर लोट गए। उसने मुनि की दाहिनी टांग पकड़ी और घसीटता हुआ कुटिया में ले आया। हवन-कुंड के पास मुनि को पटककर बोला, ''चल आग जला।''
मुनि की नंगी पीठ भूमि पर रगड़ खाती, कंकड़-पत्थरों पर घिसटती आई थी। वह लहूलुहान हो गई थी और बुरी तरह जल रही थी।
''रक्त-स्नात मुनि हवन नहीं करता।'' मुनि बोले।
''करता है बे!'' राक्षस ने मुनि की गर्दन में पंजा फंसाकर ठेला, ''करता है, या मैं करूं तेरा हवन!''
मुनि समझ गए कि निस्तार नहीं है। अपनी शारीरिक और मानसिक पीड़ा से लड़ते वे उठे और उन्होंने अग्नि प्रज्वलित की।
एक राक्षस ने सुक और सुवा उठाकर अग्नि में झोंक दिए।
''क्या कर रहे हो?'' मुनि ने क्रोध से उनकी ओर देखा।
''हवन!'' वे दोनों हँस पड़े।
मुनि आँखों से अग्नि-वर्षा करते, हवन-कुंड के पास बैठे रहे।
''अब बता।'' एक राक्षस मुनि के पास आ, अपने जूते से उनके शरीर को कोंचता हुआ बोला, ''तू किसी आश्रम में क्यों नहीं रहता। यहां कुटिया क्यों बनाई?''
''यह कुटिया मेरे दादा ने बनाई थी, मैं तब से यहीं रहता हूँ।'' मुनि पीड़ित स्वर से बोले।
''तू गधा है, मुनि नहीं।'' दूसरा राक्षस हँसा, ''तुमसे पूछा जा रहा है, यहां क्यों रहता है, किसी आश्रम में क्यों नहीं जा मरता?''
''पर आज क्यों पूछा जा रहा है?'' मुनि हठ पर उतर आए थे।
''बकवास मत कर।'' राक्षस ने मुनि के पेट पर ठोकर मारी, ''जो पूछते हैं, बता। तुझे राम ने भेजा है?''
''राम तो यहां अब आए हैं!'' संकल्प मुनि ने उत्तर दिया, ''मेरे तो बाप-दादा भी यहीं जन्मे थे।''
''राम से तो तेरा कोई संबंध नहीं है?''
''है क्यों नहीं?''
''क्या संबंध है?''
''वह हमारे मित्र हैं। वह सज्जन हैं, न्यायी हैं, वीर हैं...।''
''तू राम को इस क्षेत्र की सूचनाएं नहीं देता? हमारे विरुद्ध भड़काता नहीं है? हमसे हमारे अधिकार नहीं छीनना चाहता?''
मुनि की पीड़ा, उनकी आत्मा का दमन नहीं कर सकी; वह तेजोमय स्वर में बोले, ''यह वन-प्रांत है! यहां किसी का राज्य नहीं है। तुम्हारा कौन-सा अधिकार है यहां-निरीह प्राणियों के दमन का, उनके शोषण का, उनके रक्तपात का, पराई स्त्रियों से बलात्कार का?...''
''बकवास मत कर!'' एक राक्षस ने खड्ग उठाया, ''बोटी-बोटी काट थाली में सजाकर ले जाऊंगा। तुम जैसे प्राणी हैं किसलिए? आज हमारा आहार...उठकर हमसे विवाद करता है! और तेरी स्त्री तो हम इसलिए उठाकर ले गए थे कि तू कहीं से और कोमलांगी, षोडशी मुनिकन्या ब्याह कर लाए और हम उसे उठा ले जाएं। पर तू ऐसा गधा निकला कि षोडशी छोड़ कोई खूंसट भी नहीं लाया।''
''नीच! कुछ तो लज्जा कर।'' मुनि मौन नहीं रहे, ''हम भी मनुष्य हैं चैतन्य प्राणी। हमें जीने का, सम्मानपूर्वक जीने का पूरा अधिकार है। संसार में सब मनुष्य समान हैं...''
''व्यर्थ है।'' एक राक्षस हँसा, ''यह अब हमें प्राणियों की समता का सिद्धांत पढ़ाएगा। इससे विवाद करने से अच्छा है कि इसकी वे दोनों टांगें काट ली जाएं, जो इसने हमारी इच्छा के विरुद्ध बढ़ाई हैं।''
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