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अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

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राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

कोसल की सेनाएं राजगृह में जा घुसी थी। राजप्रासादों को घेर लिया गया था और कैकय के राज-परिवार का प्रत्येक सदस्य, बांधकर दशरथ के सम्मुख लाया गया था। कैकय का राज-परिवार दुर्बल था, इसलिए दशरथ ने उन्हें बांधकर अपने सम्मुख मंगवाया था...पर कैकेयी को देखते ही दशरथ दुर्बल पड़ गए थे; और तब कैकेयी ने उन्हें बांध लिया था। दशरथ कैकेयी की प्रसन्नता पाने के लिए, कुछ भी देने को तैयार थे, कुछ भी कर गुजरने को...और तब दशरथ को कैकय-नरेश ने बांधा था; ''कैकेयी का पुत्र ही कोसल का युवराज होगा..." दशरथ बंधे थे, प्रसन्नतापूर्वक। पर तब दशरथ ने इस पक्ष पर विचार नहीं किया था।

कैकय-नरेश अपनी पराजय को कभी न भूले होंगे। युधाजित को अपनी किशोरावस्था की एक-एक बात याद होगी। उसने उन बातों को सायास याद रखा होगा। अपने मन में दशरथ के विरुद्ध विष को जीवित रखने, उसे पोषित और विकसित करने का प्रत्येक प्रयत्न किया होगा। उसने वर्षों स्वयं को उसी ताप में तपाया होगा, ताकि अवसर आते ही वह दशरथ को अपमानित करे...

आज अयाध्या में कैकेयी महारानी है। भरत युवराज न सही युवराज-प्राय है। सेना की अनेक महत्त्वपूर्ण टुकड़ियां उसके अधीन हैं। कैकेयी का सम्बन्धी पुष्कल सचिव है। कैकय का राजदूत, अयोध्या में विशेष आदर-सम्मान तथा स्थिति का स्वामी है। उसके पास सम्राट् की अनुमति से, अंग-रक्षकों की विशाल सेना है...कितनी शक्तिशाली है कैकेयी...! उसकी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष छाया मात्र पाने वाला सैनिक भी, दशरथ के नायक को रात-भर अयोध्या के बाहर रोके रख सकता है...

ऐसा नहीं है कि दशरथ ने आज पहली बार कैकेयी की शक्ति का अनुभव किया हो...उसका आभास उन्हें विवाह के पश्चात अयोध्या लौटते ही मिलने लगा था। और वह शक्ति क्रमशः बड़ी ही है, कम नहीं हुई। अनेक बार दशरथ को अपने सम्मुख ही नहीं, दूसरों के सम्मुख भी अपमानित होना पड़ा है...किंतु उन्होंने आज तक कैकेयी की शक्ति को अपनी पत्नी की शक्ति मानने का भ्रम पाला है...पर आज वे देख रहे हैं, कैकेयी की शक्ति युधाजित की बहन है; भरत की शक्ति दशरथ के पुत्र की नहीं, युधाजित के भानजे की शक्ति है-और युधाजित को अयोध्या में इतना शक्तिशाली नहीं होना चाहिए...

युधाजित से उनका सम्बन्ध कैकेयी से सम्बन्ध होने से पहले का है। वह सम्बन्ध राजनीतिक सम्बन्ध है-विजयी की लौह-श्रृंखलाओं और पराजित की कलाइयों का सम्बन्ध। बंधे हुए हाथों और झुके हुए सिर वाले अपमानित किशोर युधाजित को दशरथ भूल गए-? वे कैसे भूल गए कि नये सम्बन्धों के बन जाने से पुराने सम्बन्ध मिट नहीं जाते। कैकेयी से दाम्पत्य का नया सम्बन्ध हो जाने से, युधाजित से पुराना सम्बन्ध कैसे समाप्त हो सकता है। दशरथ भूल भी जाएं, पर युधाजित कैसे भूलेगा-?

दशरथ को पहले देखना चाहिए था कि अयोध्या में उनकी आँखों के सम्मुख सत्ता हथियाने का कैसा खेल खेला जा रहा है। वे कैकेयी के सौंदर्य और यौवन सम्पदा की ओर लोलुप दृष्टि से देखकर अपना विवेक खो बैठे हैं। वे कैसे देखते कि कैकेयी को प्राप्त करने की प्रक्रिया में उनके हाथों में से क्या खिसकता जा रहा है-

और अभी तो दशरथ सम्राट् हैं-चाहे कटे हुए हाथों वाले। पर कैकेयी के पिता को दिए वचन के अनुसार यदि उन्होंने आधिकारिक रूप से सत्ता भरत को सौंप दी; तो? भरत की शक्ति का अर्थ है युधाजित की शक्ति...जब शक्ति दशरथ के हाथ में थी और युधाजित बांधकर उनके सामने लाया गया था, तो दशरथ ने उसके कंठ पर खड्ग रखकर, उससे अभद्र व्यवहार किया था-यदि उनकी इच्छा हुई होती तो वे खड्ग दबाकर युधाजित के कंठ में छिद्र भी कर सकते थे। यदि भरत के हाथों में सत्ता आने पर युधाजित भी उतना ही शक्तिशाली...

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

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