पौराणिक >> अवसर अवसरनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....
दस
प्रातः भारद्वाज-शिष्य अपने आश्रम लौट गए।
एक-एक धनुष, तूणीर और खड्ग साथ ले, शेष शस्त्रों की सुरक्षा का समुचित प्रबंध कर राम, लक्ष्मण और सीता अपने आश्रम के लिए स्थान चुनने निकले। स्वयं वाल्मीकि अपने शिष्यों को ले, उनके साथ-साथ मंदाकिनी के किनारे-किनारे घूमे। मंदाकिनी की गति, अपने नाम के अनुरूप इतनी मंथर थी कि कहना कठिन था कि उसमें प्रवाह था भी या नहीं। पानी की गहराई भी अधिक नहीं थी। बिना घाट के भी, किसी भी स्थान पर जल भरने अथवा स्नान करने में कोई जोखिम नहीं था। मंदाकिनी के दोनों ओर ऊंचे कगार थे, किंतु पर्वत की चोटियों की ऊंचाई अधिक नहीं थी। पर्वत पथरीला भी नहीं था। ऊंचे-नीचे मिट्टी के ढूह जैसे अनेक टीले थे। आसपास घने वन थे।
राम ने मंदाकिनी, पयस्विनी और गायत्री के संगम से थोड़ा इधर कगार से हटकर, एक दीर्घ वृत्ताकार टीले को आश्रम के लिए पसंद किया। स्थान चुन लिए जाने पर कुटिया-निर्माण का वास्तविक कार्य आरंभ होना था, जिसका दायित्व लक्ष्मण पर था।
वाल्मीकि कुछ शिष्यों को पीछे छोड़, स्वयं लौट गए। उन्हीं शिष्यों के नेतृत्व में राम, लक्ष्मण और सीता वन के भीतर गए। और तब लक्ष्मण ने नियंत्रण संभाल लिया। उन्होंने अपनी आवश्यकता बताई और लकड़ी के लिए स्वयं देख-भाल कर वृक्ष चुने। कटाई आरंभ हुई। सीता के हाथ में एक कुल्हाड़ी देकर, राम ने भी एक कुल्हाड़ी उठा ली। शिष्यों के चेहरों पर हतप्रभ, विरोध और संकोच प्रकट हुए।
राम हँस पड़े, ''मित्रो। वनवासी का जीवन बिताना है तो वनवासी के समान काम भी करना पड़ेगा।''
''किंतु आर्य! देवी वैदेही!''
''वे भी वनवासिनी हैं...। वैसे भी परिश्रम शरीर और मन को स्वस्थ और संतुलित रखता है।''
लक्ष्मण इस बीच कुछ नहीं बोले। वे जानते थे, राम एक नवीन जीवन पद्धति की ओर बढ़ रहे थे। उन्हें रोकना व्यर्थ था : रोकने की आवश्यकता भी क्या थी...। वैसे भी लक्ष्मण के मन में अनेक प्रश्न तथा उनके समाधान के लिए अनेक योजनाएं उथल-पुथल मचा रही थीं। आश्रम कैसा होगा...? एक कुटिया भैया और भाभी के लिए। एक कुटिया स्वयं लक्ष्मण के लिए। दोनों कुटीरों के बीच एक शस्त्रागार। शस्त्रागार के दो द्वार, जो दोनों में खुलते हों। एक कुटिया अग्निशाला के रूप में। एक कुटिया रसोई के लिए। एक कुटिया अकस्मात् आ जाने वाले किसी अतिथि के लिए। बीच में एक खुला क्षेत्र, जहां वे इच्छुक वनवासियों को शस्त्राभ्यास करा सकें। थोड़ी-थोड़ी भूमि प्रत्येक कुटिया के पास, साक भाजी तथा फूलों की क्यारियों के लिए...
आश्रम के चारों ओर बाड़ की भी आवश्यकता थी जंगली पशुओं और शत्रुओं से सावधान रहने के लिए। फिर, उनके पास अस्त्र थे जिनके कारण वे सुरक्षित थे, किंतु शस्त्रों के कारण ही उनके लिए जोखिम भी बढ़ गया था। शस्त्रों को छीनने, अथवा उन्हें नष्ट करने के लिए भी उन पर आक्रमण हो सकता था...।
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