लोगों की राय

पौराणिक >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

19 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

चौदह


सीता अपनी कुटिया से निकलकर, टीले की ओर आईं।

पूरी ढाल हरी-भरी हो गई थी। पिछले कई महीने के कठिन परिश्रम से यह भूमि खेतों में बदली जा सकी थी। खेत भी कैसे, जैसे समतल भूमि को उठाकर खड़ा कर दिया गया हो। सीता ने अपने हाथों से इस दाल को खोदा-गोड़ा था; मंदाकिनी से पानी ला-लाकर उसे सींचा था। पहले तो पानी कहीं ठहरता ही नहीं था; मंदाकिनी की धारा में पुनः मिलने के लिए, किसी विरहिणी के समान भागता चला जाता था। सीता ने बड़े धैर्य और परिश्रम से क्यारियां बनाई थीं; और पानी को रोकने

का प्रबंध किया था। समय मिलने पर राम और लक्ष्मण भी उनकी सहायता कर दिया करते थे। मुखर तथा सुमेधा भी यथासंभव सहयोग किया करते थे; किंतु मूल रूप से यह सीता का ही दायित्व था।

सीता ने अपने परिश्रम के फले फल को बड़ी तृप्ति से देखा; किंतु एक आश्चर्य भी था उनके मन में। जाने चित्रकूट की मिट्टी में कोई ऐसी बात थी, या मंदाकिनी के जल में कोई ऐसी विशेषता थी-फलने को तो सब कुछ फलता था, किंतु जिस वैभव के साथ बैंगन फलता था, न कोई अन्य सब्जी फलती थी, न फल, न फूल।

''क्या बात है सीते?'' राम आकर उनके पास खड़े हो गए, ''अपना बैंगन-परिवार देख रही हो।''

सीता मुस्कराईं, ''यहां तो स्थिति यह है कि आम के वृक्ष पर भी बैंगन ही फलेंगे।''

''फिर खेती पर अधिक परिश्रम क्या करना।'' राम मुस्कराए, ''आओ, तनिक नाव खेने का अभ्यास हो जाए।''

राम नीचे उतरते चले गए; जाकर मंदाकिनी के तट पर रुके। खूंटे से बंधी नाव उन्होंने खोल ली, और सीता की ओर परीक्षा भरी दृष्टि से देखने लगे। सीता का शस्त्राभ्यास काफी आगे बढ़ गया था। राम नये-नये शस्त्रों के साथ, अन्य प्रकार के शारीरिक व्यायाम भी जोड़ते जा रहे थे। तैरने और नाव चलाने का साधारण ज्ञान, सीता को पहले से ही था। किंतु राम अब उन्हें अकेले बड़ी नौका खेने, उसकी गति बढ़ाने, किसी भागती हुई नाव का पीछा करने इत्यादि का अभ्यास करा रहे थे...

सीता नाव में बैठीं। राम ने चप्पू थमा दिए, ''चलाओ।''

सीता ने चप्पू थाम लिए। नाव चल पड़ी।

''आप नौका-प्रशिक्षण पर इतना बल देते हैं'' सीता बोलीं, ''पर्वतारोहण इत्यादि का भी अभ्यास करना चाहिए। पिछले सप्ताह जब वर्षा में भीगते, चट्टानों पर फिसलते हम चित्रकूट की विभिन्न चोटियों पर घूमते फिरे थे, तो कितना आनन्द आया था।''

''नौका-प्रशिक्षण आनन्द के लिए नहीं है देवी!'' राम मुस्कराए, शत्रु से बचने के लिए, किसी अत्यन्त भयानक स्थिति से निकल भागने के लिए तुम्हारे पास एक मार्ग है-मंदाकिनी। तुम्हें इससे पूरी तरह परिचित होना चाहिए।''

''आपको लगता है कि हम अब भी सुरक्षित नहीं हैं?'' सीता ने राम को देखा, ''यहां आए दस मास हो चुके हैं। आस-पास शांति ही लगती है। हां, कभी-कभार जयंत जैसा कोई दुष्ट आ जाए...''

''भली कही जयंत की,'' राम मुस्कराए; ''उनके परिवार की तो पीढ़ियों से यही परम्परा है। पर मैं देख रहा हूँ कि यहां नित नये रावण, इंद्र और जयंत पैदा हो रहे हैं। मैंने सुना है कि जयंत कई दिनों से इस क्षेत्र में घूम रहा था, और विभिन्न आश्रमों और गांवों में दुष्टता दिखाने का प्रयत्न कर चुका था।''

''हां! आज सुमेधा भी कुछ ऐसे ही समाचार लाई थी।''

''पर मैं कुछ और ही सोच रहा हूँ सीते!'' राम गंभीर हो गए, ''भरत ससैन्य आ रहा है। कह नहीं सकता, ऊंट किस करवट बैठेगा। संभावना कम दीखती है, पर यदि भरत के मन में खोट हुआ तो हमें उसका तो सामना करना ही होगा; यहां के दमित राक्षस भी हमारे विरुद्ध उठ खड़े होंगे हू!... इस समय मेरा समस्त ध्यान उस ओर लगा हुआ है। जाने क्या हो! भरत क्या करे, और उसकी प्रतिक्रिया यहां क्या हो...।''

''आप ठीक कहते हैं राम!'' सीता दूर क्षितिज को देख रही थीं, ''हमें प्रत्येक स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai