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अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

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राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

''तो ले।'' राम ने अपने तूणीर से तीखे फलक का एक बाण निकाला। जयंत ने मुख ऊपर उठाकर, राम की ओर देखा ही था कि चीख मारकर पृथ्वी पर उलट गया। वह जान ही नहीं पाया कि राम ने किस कौशल से बाण के फलक से उसकी बाईं आँख बींध दी थी।

''चले जाओ।'' राम ने आदेश दिया।

जयंत सरपट भागता हुआ आश्रम की सीमा से निकल गया। राम ने मुड़कर सीता को देखा। सीता के कंधे से बहता हुआ रक्त, उनके वक्ष पर आ गया था। ''सीते! यह क्या है प्रिये?''

सीता ने लापरवाही से कंधा झटक दिया, ''कौआ चोंच मार गया।''

राम के मन में जयंत का कर्कश स्वर तथा छोटी, गोल, तीखी आँखें कौंध गईं। वे हँस पड़े, ''ठीक कहती हो प्रिये!'' वे मुड़े, ''सुमेधा! सीता के घाव का उपचार कर दो देवी! और मुखर! तुम जाओ मित्र! कोई आशंका नहीं।''

फाटक को बंद करने की ध्वनि सुनकर राम मुड़े। लक्ष्मण कंधे पर धनुष टांगे, मस्त-से कुछ गुनगुनाते चले आ रहे थे। उनके साथ चेतन तथा वाल्मीकि-आश्रम के दो ब्रह्मचारी और थे।

''यहां कुछ हुआ है भैया?'' उन्होंने सब लोगों पर दृष्टि डाली।

''विशेष नहीं। एक धृष्ट कौआ आया था। हुश्काकर भगा दिया।'' राम मुस्कराए, ''सुनाओ चेतन! क्या समाचार लाए?''

चेतन मुसकराया, ''आर्य! यह न मान लें कि मैं केवल समाचार ही लाता हूँ; कभी-कभी वैसे भी आपसे मिलने की इच्छा होती है...।''

''किंतु आज मैं समाचार लेकर ही आया हूँ।'' लक्ष्मण बोले।

''जी!''

''क्या समाचार है?'' राम ने पूछा।

''भरत अयोध्या से चल चुके हैं। संदेशवाहक के चलने तक वे श्रृंगवेरपुर तक पहुंच चुके थे, और निषादराज गुह के अतिथि थे। उनके साथ अयोध्या की सेना के साथ-साथ मंत्रिमंडल, राजगुरु तथा आपकी तीनों माताएं भी आ रही हैं। अगले दिन उनके साथ गुह भी अपनी सेना समेत प्रस्थान करने वाले थे।''

''समाचार तो बुरा नहीं।'' राम बोले, ''यदि माताएं, मंत्रिमंडल, राजगुरु तथा गुह भी साथ हैं, तो भरत का प्रयोजन सैनिक अभियान नहीं हो सकता।''

''यह न भूलें कि भरत कैकेयी का पुत्र है।'' लक्ष्मण का स्वर तीखा था।

राम मुस्कराए, ''यह बात भी मेरे ध्यान में है।''

''किंतु राम!'' चेतन बोला, ''ऋषि भारद्वाज और कुलपति वाल्मीकि दूसरी आशंका से पीड़ित हैं।''

''वह क्या?'' सीता ने पूछा।

''यदि भरत सचमुच मनाने आ रहे हैं और राम भाई की बात मानकर लौट गए...''

राम हँस पड़े, ''ऋषि से कह देना, आशंका-मुक्त हो जाएं।''

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

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