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अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

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राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

"क्या बात है?'' लक्ष्मण का स्वर आशंकित उत्कंठा से पूर्ण था।

"ऋषि ने बार-बार मुखर से मिलने आने की अनुमति देने में कोई आपत्ति की है?'' सीता ने वातावरण हलका करना चाहा।

"नहीं देवि!'' चेतन बुदबुदाते-से स्वर में बोला, "ऋषि ने मुझे एक दुखद सूचना देने के लिए भेजा है।''

क्या हुआ?'' राम का स्वर गंभीर किंतु स्थिर था, "क्या किसी सैनिक अभियान की सूचना है?''

"नहीं आर्य! ऋषि भारद्वाज के आश्रम से संदेश आया है कि अयोध्या में सम्राट् दशरथ का देहान्त हो गया है...''

सबकी दृष्टि चेतन पर टिक गई। बोला कोई नहीं।

राम ने क्षण-भर के लिए आँखें मूंदी, जैसे अपने मन में झांका हो, और वैसे ही निष्कंप स्वर में पूछा, ''और?''

''गुरु वसिष्ठ ने दुतगामी दूत, राजगृह भेजे हैं ताकि वे भरत और शत्रुघ्न को शीघ्रातिशीघ्र अयोध्या लौटा लाएं।''

एक संक्षिप्त से मौन के पश्चात राम बोले, "चेतन रात को यही विश्राम करो। प्रातः अपने आश्रम लौटना।'' और वे सीता की ओर मुड़े, 'प्रिये! मैं आज भोजन नहीं करूंगा। कुटिया में जा रहा हूँ बहुत आवश्यक काम होने पर मुझे बुलाया जा सकता है। ध्यान रखना मेरे कारण अन्य लोग भूखे न रहें...।''

राम कुटिया के फर्श पर सुखासन में बैठ गए। थोड़ा-सा समय मन को स्थिर करने में लगा। फिर, अपने शैशव से देखे पिता के अनेक रूप, उनकी आँखों के सम्मुख तिर गए। पिता की उपेक्षा, पिता का प्यार, उनकी कामुकता, उनकी वीरता...और अंत में राम के युवराज्याभिषेक के लिए उनकी आतुरता। उनका कहना, कि उनकी अपनी सुरक्षा के लिए राम का अभिषेक बहुत आवश्यक था...और अब पिता नहीं रहे...क्या सचमुच उनका भय उनके लिए प्राण-घातक सिद्ध हुआ? दशरथ ऐसे व्यक्ति नहीं थे, जो किसी के वियोग में प्राण दे दें...ऐसा प्रेम करने की क्षमता ही उनमें नहीं थी। उन्होंने कभी प्रेम किया तो मात्र अपने-आपसे-अपने सुख से, अपनी इच्छाओं से, अपनी सत्ता और सुविधा से...कभी-कभी उन्होंने अपने पुत्रों के लिए भी विह्लता दिखाई है। राम सिद्धाश्रम गए थे तो पिता विचलित हुए थे; अपने लिए या राम के लिए,...किंतु इस बार...क्या सचमुच पिता उनसे प्रेम करने लगे थे...।

हो सकता है कि प्रेम भी रहा हो। किंतु जीवन के आधार ही खिसक जाना...उनके कारण और ही होंगे। सत्ता का हाथ में न होना, कैकेयी का क्रूर रूप...भरत का राज्य...।

अब राम को माता कौसल्या और माता सुमित्रा की सुरक्षा और

कुशलता की चिंता करनी होगी...। उन्हें भरत की प्रत्येक गतिविधि की सूचना मिलती रहनी चाहिए। प्रातः चेतन के हाथ, ऋषि वाल्मीकि के लिए संदेश भेजना होगा-वे त्रिजट तक संदेश भिजवा दें, कि भरत की प्रत्येक महत्त्वपूर्ण गतिविधि की सूचना तत्काल भेजी जाए...। एक दुर्घटना हो गई, किंतु दूसरी दुर्घटना नहीं होनी चाहिए...।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

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