लोगों की राय

पौराणिक >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

19 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

तुंभरण को खदेड़कर उद्घोष लौटा तो अकेला नहीं था। उसके साथ वाल्मीकि आश्रम के चार ब्रह्मचारी थे जिनका नेता चेतन था। ''चेतन तुम!'' मुखर सबसे पहले बोला, ''आधी रात को।''

''आवश्यक समाचार है।'' चेतन बोला, ''किंतु यहां क्या हो रहा है? आप लोग जाग ही नहीं रहे, पर्याप्त सक्रिय और स्फूर्त लग रहे हैं? फाटक भी जला पड़ा है।''

''यहां एक मजेदार घटना घटी है।'' राम बोले, ''वह कहानी

तुम्हें सवेरे सुनाएंगे। तुम समाचार कहो! ऐसा क्या है, कि ऋषि ने तुम्हें आधी रात को भेज दिया?''

''भद्र! अयोध्या का समाचार है।''

''क्या?''

''भरत लौट आए हैं। उन्होंने अपने अभिषेक का विरोध किया है और आपको मना कर वापस अयोध्या ले जाने के संकल्प की घोषणा की है। किंतु... ''

''किंतु क्या?'' लक्ष्मण बोले।

''उन्होंने सेना को प्रस्तुत होने का आदेश दिया है। वे चतुरंगिणी सेना के साथ मनाने आएंगे। '' चेतन के मुख पर वक्र मुस्कान थी।

''धोखा!'' लक्ष्मण बोले, ''मनाने के नाम पर सैनिक अभियान!''

''अभी चलकर सब सो रही।'' राम बोले, ''शेष बातें कल होंगी।'' राम अपनी कुटिया में चले आए, पीछे-पीछे सीता आईं।

''क्या सोच रहे हैं?'' सीता उत्कंठित राम की ओर देख रही थीं।

''निश्चित रूप से कुछ नहीं कह सकता।'' राम स्थिर वाणी में बोले, ''सौमित्र की आशंका भी ठीक हो सकती है; और भरत की घोषणा भी सत्य हो सकती है।'' सहसा वे मुस्कराए. ''तुम परेशान मत हो सीते!

आशंका की कोई बात नहीं है। जो आशंका सौमित्र के मन में है, वह सुयज्ञ, चित्ररथ, त्रिजट तथा गुह के मन में भी होगी। भरत की सेना आएगी तो मेरे मित्र भी अपने सैनिक-असैनिक योद्धा साथ लेकर आएंगे। फिर, यदि भरत यह समझता है कि वह चित्रकूट में युद्ध करेगा, तो मानना पड़ेगा कि वह सैनिक अभियानों में कच्चा है। यहां का भूगोल सैनिक अभियान के उपयुक्त नहीं है। वह हार जाएगा...वैसे ऐसी आशंका होने पर हमें उसके पहुंचने से पूर्व ही उसकी मनःस्थिति की सूचना मिल जाएगी...।''

''आप पूर्णतः आश्वस्त हैं?''

''पूर्णतः।''

प्रातः एक असामान्य-से कोलाहल से राम की नींद टूटी। उषा में सुनहली आभा नही फूटी थी। अभी तो आकाश पर के अंधकार की घनी परत में कोई दरक भी नहीं पड़ी थी; अभी पक्षियों का संगीतमय कोलाहल भी आरंभ नहीं हुआ था। पर राम की नींद टूट गई थी। दूर कहीं हल्का-सा कोलाहल सुनाई पड़ रहा था, जो क्रमशः आश्रम की ओर बढ़ रहा था। राम उठकर बैठ गए। सीता को जगाया और कुटिया से बाहर निकल आए। अगले ही क्षण, वे पाँचों कवच धारण कर कमर में खड्ग बांधे हाथों में धनुष-बाण लिए, अपने शस्त्रागार और कुटीरों को घेरे सन्नद्ध खड़े थे। चेतन तथा उसके साथी अतिथिशाला के भीतर ही रहे। आश्रम के जले हुए फाटक में से पहले कोलाहल भीतर आया और उसके बाद एक भीड़।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai