लोगों की राय

पौराणिक >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

19 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

पर यह संभव कैसे हुआ? कैकेयी राक्षसी है या देवी-? क्या समझें राम? क्या सचमुच कैकेयी की वर्षों से संचित पीड़ा, आज घृणा और प्रतिहिंसा बनकर फूट पड़ी है? वह अपनी प्रतिहिंसा के हाथों अवश पिशाची हो गई है? या यह केवल नाटक है-केवल एक आड़। और सच यह है कि कैकेयी का बर्बर कैकय रक्त, अपने अवांछित, अनाकांक्षित पति, अपनी सपत्नी, अपने सौतेले पुत्र-सबके प्रति शत्रुता का निर्वाह कर रहा है? क्या कैकेयी मात्र भरत को राज्य दिलवाने के लिए रघुकुल परंपराओं को खंडित कर, उसकी मर्यादाओं को नष्ट कर, अपने पति को असहनीय यातना, अकल्पनीय पीड़ा दे रही है...? क्या सम्राट् की आशंकाएं सत्य हुईं...?

क्या यह कैकेयी की योजना है कि राम वन चले जाएं तथा उनकी अनुपस्थिति में असुरक्षित-असहाय दशरथ हताशा में प्राण त्याग दें? क्या कैकेयी तैयार है कि स्वार्थ अथवा प्रतिहिंसा के हाथों अपने सौभाग्य को अग्निसात हो जाने दे? या वह मात्र विवेकहीन कर्म कर रही है? भविष्य की बात सोचने के लिए उसके पास बुद्धि ही शेष नहीं है?

राम निर्णय नहीं कर पाए : कैकेयी का कौन-सा रूप वास्तविक है...। पर इस समय तो कैकेयी वही चाह रही है जो राम के मन का अभीष्ट है। उनका मन अज्ञात ही, उसके प्रति आभार से आप्लावित हो उठा...उनकी दुश्चिंता मिट गई। वह तैयार थे कि मुक्त मन से पिता से आग्रह करें कि पिता अपने वचन का पालन करें। राम चौदह वर्षों तक तपस्वी वेश में वनवास करेंगे...

पर चौदह वर्ष तक वनवास क्यों? वर्ष, दो वर्ष का क्यों नहीं? क्या कैकेयी समझती है कि चौदह वर्षों का समय इतना लंबा है कि इस बीच सम्राट् का देहावसान हो जाएगा और भरत अयोध्या में अच्छी तरह अपने पैरा जमा लेगा तथा अयोध्या के लोग राम को भूल जाएंगे...हां, इतना समय पर्याप्त था...

कैकेयी की मुद्रा कुछ और कोमल हुई, ''पुत्र! तुम्हारे प्रेम के कारण, सम्राट् कभी अपने मुख से तुम्हें वन जाने के लिए नहीं कहेंगे। दूसरी ओर, अपने सत्य के मुखौटे के कारण, वह वरदानों का तिरस्कार भी

नहीं करेंगे। अब निर्णय तुम्हारे ऊपर है।''

राम क्या कहते? महत्त्वपूर्ण यह नहीं था कि वे पिता के वचन की पूर्ति के लिए वन जा रहे हैं, या कैकेयी की इच्छा पूर्ति के लिए। बात केवल इतनी थी कि उनके पास यही अवसर था...यदि वे चूक गए तो फिर यह अवसर कभी नहीं आएगा। पिता में यदि रंचमात्र भी आत्मबल जाग उठा और उन्होंने कह दिया कि वे कैकेयी को वरदान नहीं देंगे राम वन नहीं जाएं-तो फिर राम की चिंता पुनर्जीवित होकर पिशाची-सी उनके मार्ग में आ खंड़ी होगी।

राम बोले, ''मां! मैं आज ही वन की ओर प्रस्थान करूंगा।''

कैकेयी के चेहरे पर हर्ष और आँखों में पीड़ा उभरी, ''दंडक वन!''

राम पुनः चौंके। विश्वामित्र भी यही चाहते थे। वहीं से राम अपना अभियान आरंभ कर सकते हैं। कैकेयी स्वार्थ के लिए वन भेज रही है या ऋषि कार्य के लिए? दंडकारण्य भयंकर राक्षसी सेनाओं, हिंस्र पशुओं तथा अनेक अत्याचारियों से भरा है। वहीं ऋषि-आश्रमों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। क्या कैकेयी इसलिए भेज रही है कि वे जाकर ऋषियों की रक्षा करें; या इसलिए भेज रही है कि राम राक्षसी तथा हिंस्र पशुओं द्वारा मारे जाएं, वे कभी लौटकर न आएं और अयोध्या में भरत का राज्य चिरस्थायी हो...? दंडक क्षेत्र में ही शंबर से युद्ध करते हुए, दशरथ की रक्षा कैकेयी ने की थी। वह राम को वहीं भेज रही है-शंबर के वंशजों के हाथों राम की हत्या करवाने अथवा राम के हाथों शंबर के वंशजों का नाश करवाने।

किंतु इन प्रश्नों का उत्तर कैकेयी ही दे सकती थी और कैकेयी से ये बातें पूछी नहीं जा सकती थीं...राम को उत्तर पाए बिना ही जाना होगा। अंततः राम बोले, ''माता! वल्कल का प्रबंध कर दें। मैं बंधु-बान्धवों से विदा लेकर आता हूँ।''

राम चले गए। कैकेयी के मुख पर विजयिनी मुसकान उभरी, किंतु उसकी आँखों में गहरी व्यथा के चिह्न थे।

''सर्वनाश।'' दशरथ संज्ञा-शून्य हो गए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai