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अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

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राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

सभा धैर्यपूर्वक सम्राट् के उत्तर की प्रतीक्षा करती रही, किंतु सम्राट् पूर्ण आत्म-संतोष के साथ, अपने अधरों की मुस्कान पीते रहे।...

अन्त में फिर महामंत्री ही बोले, 'दूत! तुम्हारा समाचार शुभ है। सम्राट् राजकुमार का कुशल समाचार जानकर सन्तुष्ट हैं। तुम जाओ। विश्राम करो।' दूत प्रणाम कर चला गया।

तब महामंत्री से संकेत पाकर न्याय-समिति के सचिव आर्य पुष्कल, उठकर खड़े हुए, सम्राट् को स्मरण होगा, कुछ दिन पूर्व सम्राट् के अंग-रक्षक दल के सैनिक विजय की, कैकय राजदूत के रथ के घोड़ों से टकराकर उनके खुरों के नीचे आकर कुचले जाने के कारण मृत्यु हो गई थी। सम्राट् ने इस घटना की जांच न्याय-समिति को सौंपी थी। न्याय-समिति ने उस दुर्घटना की सम्यक् खोज की है। अपनी खोज के पश्चात समिति इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि वह दुर्घटना, मात्र आकस्मिक थी। उसमें कैकय राजदूत की इच्छा न थी, न असावधानी। अतः समिति कैकय राजदूत को निर्दोष पाकर अभियोग-मुक्त घोषित करती है। सम्राट् से प्रार्थना है कि वे इस निर्णय को अपनी स्वीकृति दें।'

दशरथ का मस्तिष्क नामों पर अटक गया। जिस सैनिक की हत्या हुई, वह दशरथ के अंग-रक्षक दल का था। जिसने हत्या की, वह कैकय का राजदूत है, अर्थात युधाजित का राजदूत। अपराधी पर अभियोग लगाने वाले सैनिक, भरत के अधीन हैं। जांच करने वाला पुष्कल है...कैकेयी का सम्बन्धी। तो कैकय-राजदूत निर्दोष क्यों नहीं होगा...

दशरथ के होंठों के कोनों पर फिर मुस्कान उभरी : किंतु यह सन्तुष्टि की मुस्कान नहीं थी। बोले वे अब भी कुछ नहीं।

सम्राट् को मौन देख, महामंत्री ही बोले, 'न्याय-समिति की जांच से सम्राट् संतुष्ट हैं और समिति के निर्णय को मान्यता देते हैं...'

सहसा महामंत्री की बात काटकर दशरथ बोले, किंतु न्याय-समिति ने मृतक के परिवार की क्षतिपूर्ति का कोई सुझाव नहीं रखा। यह अनुचित है। सैनिक विजय के परिवार को क्षतिपूर्ति के रूप में, उसके वेतन का दुगुना भत्ता प्रति मास दिया जाए।'

महामंत्री ने आश्चर्य से सम्राट् को देखा।

आर्य पुष्कल ने भी उसी मुद्रा में सम्राट् को देखा; किंतु वे महामंत्री के समान मौन नहीं रहे, ''न्याय-समिति के सचिव के रूप में मेरा यह कर्त्तव्य है कि मैं सम्राट् को स्मरण दिलाऊं कि ऐसी स्थितियों में व्यक्ति के वेतन का आधा भत्ता देने का विधान है...।''

''किंतु न्याय-समिति के सचिव को कौन स्मरण दिलाएगा।'' सम्राट् का स्वर अतिरिक्त रूप से तिक्त था, ''कि विधान में सम्राट् के अपने कुछ विशेषाधिकार भी हैं। सम्राट् को भत्ते की राशि को घटा-बढ़ा सकने का पूर्ण अधिकार है।''

आर्य पुष्कल के मन में, अनेक आपत्तियां थीं। सम्राट् को विशेषाधिकार तो हैं, किंतु वे विशेष परिस्थितियों के लिए हैं। इस घटना में ऐसी कोई विशेष बात नहीं है।

किंतु सम्राट् की भंगिमा ऐसी नहीं थी कि आर्य पुष्कल या कोई अन्य पार्षद् कुछ कहने को प्रोत्साहित होता। सम्राट् अप्रसत्र हैं, यह साफ-साफ दीख रहा था, किंतु क्यों? किस पर? क्या वे स्वयं पुष्कल से अप्रसन्न हैं?...आर्य पुष्कल ने अपनी बात कंठ में ही रोक ली।

सभा में फिर मौन छा गया। सम्राट् के इस प्रकार खीझने के अधिक अवसर नहीं आते थे; और जब आते थे, उनका टल जाना ही उचित था। किसी का साहस नहीं था कि सम्राट् की ओर देखे।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

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