लोगों की राय

पौराणिक >> अवसर

अवसर

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2884
आईएसबीएन :81-8143-195-2

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

19 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित श्रेष्ठ उपन्यास....

''तुमने बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछा है पुत्र! मैं स्वयं इस विषय में, एक लंबे समय तक सोचता रहा हूँ। सौमित्र! हम तपस्वियों ने अन्याय विरोध और न्याय-रक्षा का व्रत लिया है। हम दलित, दमित, पीड़ित प्रजा को जाग्रत करने, उसे उसके अधिकारों के प्रति सचेत कराने, उसे पशुता के धरातल से उठाकर मनुष्य के धरातल पर लाने का कर्म करते हैं। उसके लिए हम तपस्या और साधना करते हैं; संयम और तप का अनुष्ठान करते हैं। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अनेक मार्ग हैं पुत्र! एक वह है, जो तुम लोगों ने चुना है : शस्त्रों से अन्यायी का दमन। और एक मार्ग वह है जो मैंने चुना है : कला की साधना; काव्य और संगीत की साधना ताकि शब्द की शक्ति से लोगों के मन में अन्याय का विरोध जगाया जा सके। न्याय का पक्ष समझाया जा सके। यदि प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारे समान अन्याय का सशस्त्र विरोध करेगा और कोई भी व्यक्ति मेरे समान शब्द शक्ति से, न्याय और अन्याय का भेद, उचित और अनुचित का अन्तर नहीं बताएगा, तो अन्याय का विरोध धीरे-धीरे शस्त्र शक्ति के कारण केवल 'विरोध' में बदल जाएगा। इसीलिए यह आवश्यक है पुत्र! कि हम जन-सामान्य को उसके अधिकारों के प्रति सचेत बनाएं, उसे उसके शत्रु, शोषक-वर्ग की पहचान कराएं, उसे मानवता के उच्चादर्शों का ज्ञान दें, और साथ-ही-साथ उनमें अन्याय विरोध की भावना जाग्रत करें, ताकि जब कभी वह विरोध करें मात्र विरोध न होकर, अन्याय और शोषण का विरोध हो। कौन जाने कि कहां शक्ति शस्त्र और हिंसा का प्रयोग करना है, कहां उसका प्रयोग अनुचित है। हमें उन्हें समझाना पड़ेगा पुत्र! कि दस्यु और सैनिक में क्या भेद है। निःस्वार्थ होकर जन-कल्याण के लिए शस्त्र का प्रयोग करने वाला वीर सैनिक है; अन्यथा वह दस्यु है।...इसीलिए मैंने कला के माध्यम का आश्रय लिया है।''

मुखर बड़ी तन्मयता से गुरु की बात सुन रहा था, किंतु उसकी भंगिमा कह रही थी कि उस बात से सहमत नहीं है। अपने संकोच को बड़ी चेष्टा से भंग कर वह बोला, ''गुरुवर! एक शंका मुझे भी है।''

''बोलो वत्स!'' ऋषि मुस्कराए, ''एक साहसी प्रश्न, अनेक दमित,

संकुचित जिज्ञासाओं को उठाकर, उनके पैंरों पर खड़ा कर देता है। लक्ष्मण के प्रश्न ने तुम्हारे साथ यही किया है। मैं जानता हूँ, तुम्हारी इस विषय में पर्याप्त रुचि है; और जब कभी ऐसा विवाद उठ खड़ा होता है, तुम्हारे मन में भी उथल-पुथल मच जाती है। पूछो!''

मुखर ने अपनी तन्मयता को समेटा; अपनी शक्तियों में सामंजस्य स्थापित किया और बोला, ''गुरुवर! मुझे ऐसा लगता है कि हम कला की साधना तो करते हैं, उसके माध्यम से जन-सामान्य तक पहुंचते भी हैं, उनमें न्याय के पक्ष और अन्याय के विरोध का प्रचार भी करते हैं; किंतु जब कभी आत्म-रक्षा की आवश्यकता पड़ती है, तब हम अपने शस्त्रधारी शत्रुओं का विरोध नहीं कर पाते, और अपनी कला के साथ नष्ट हो जाते हैं। हम अपनी कला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करें।''

सीता को लगा, मुखर के चेहरे का आवेश असाधारण था। बोलीं, ''ऋषिवर! इस ब्रह्मचारी का प्रश्न मात्र सैद्धांतिक विवाद नहीं है। वह संवेदनात्मक धरातल पर भी इन प्रश्नों में उलझा हुआ है। यह उसके मस्तिष्क का विवाद नहीं, उसके हृदय की उलझन भी है।''

ऋषि उल्लसित हो उठे ''तुमने ठीक पहचाना पुत्रि। मुखर के चिंतन की पृष्ठभूमि में, उसके अपने जीवन की घटनाएं हैं। यह बालक सुदूर दक्षिण से मेरे पास आया। इसके पिता बहुत अच्छे कवि तथा सगीतज्ञ थे। खर के राक्षस सैनिकों ने इनके कुटुंब को नष्ट कर डाला...''

''सुदूर दक्षिण से यहां तक के बीच, अनेक आश्रम पड़ते होंगे; मुखर सबको छोड़कर, इतनी दूर क्यों चला आया?'' लक्ष्मण ने ऋषि की बात के बीच में ही पूछा।

''संगीतकार पिता का प्रभाव! वह कला की साधना से शून्य किसी आश्रम में टिक नहीं सका। किंतु कुटुंबियों के बध को भी मुखर भुला नहीं पाता। यह प्रति क्षण शस्त्र के आकर्षण का अनुभव करता है। तुम्हारे शस्त्रों से भी यह अभिभूत हो उठा है : और शस्त्र-विद्या तथा शस्त्र प्रशिक्षण की बात सोच रहा है।''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. चौदह
  15. पन्ह्रह
  16. सोलह
  17. सत्रह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai