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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


दफ्तर से लौटकर, हारुन का रंग-ढंग आम दिनों की तरह ही! उसके हाव-भाव में कहीं ऐसा कोई लक्षण नहीं था कि उससे मेरी उल्टियों और सिर घूमने की जानकारी है। खाना खाते हुए भी वह आराम से गपशप में जुटा रहा। कोई कोरियन बन्दा आज उसके दफ्तर में आया था, जो न अंग्रेजी जानता था, न बँगला! पूरे एक घंटे तक लगातार कोरियन जुबान में बकबक करता रहा! हारुन का ख्याल है, कोरियन दरअसल कोई भाषा ही नहीं है। आगे बताया कि कल वह अनीस को लेकर, उस कोरियन शख्स के पास जाएगा। कल ही वह किसी दुभाषिए का भी इन्तज़ाम करेगा। खा-पीकर वह टेलीविजन पर कोई नाटक देखने बैठ गया। मुमताजुद्दीन अहमद का कोई नाटक चल रहा था। उस नाटक में मुमताजुद्दीन ने खुद भी एक मस्तमौला टीचर की भूमिका निभाई थी। उसे देखकर हारुन ने कई-कई बार ठहाके लगाए। सोफे पर बैठी-बैठी मैं नाटक से ज़्यादा हारुन को ही देखती रही। नाटक खत्म होने से पहले ही, सिर घूमने की वजह से, मुझे बेडरूम में चला आना पड़ा। हारुन सोने के लिए कमरे में आया, तब भी उसने मुझसे नहीं पूछा कि पूरा नाटक देखे बिना ही मैं क्यों चली आई। उसने चुटकी बजाते हुए मुमताजुद्दीन के विलक्षण अभिनय का गुणगान शुरू कर दिया।

मैंने खुद ही कहा, 'सिर बुरी तरह घूम रहा था, इसलिए मुझे उठ आना पड़ा।' मैं जान गई थी कि उसके पूछने का इन्तज़ार करने से कोई फायदा नहीं होगा।

'अच्छा, अच्छा! मैंने तो सोचा, अब फिर क्या हो गया!' हारुन ने जवाब दिया।

जब सिर चक्कर दे रहा था, तो नाटक देखने का तो सवाल ही नहीं उठता! उठ आना, स्वाभाविक ही है। मैंने कोई गलत काम नहीं किया। अगर हारून और उसके घरवाले मुझे पसन्द नहीं होते, नाटक देखते हुए उनलोगों के सुख या शोक प्रकट करने का ढंग मुझे भला न लगता और उस वजह से अगर मैं नाटक छोड़कर चली आती, तब शायद उसे नाराज़ होने का मौका मिलता और सवाल करने की भी वजह होती। मैंने ख़ामोशी से लम्बी उसाँस भरी। जब मैंने ख़ामोशी से उसाँस भरी, उसने आगे बढ़कर मेरे बदन पर लिपटी साड़ी खोल डाली और अन्य दिनों की तरह, मेरे बदन से खेलते हुए, सम्भोग में जुट गया। अपना मनचाहा काम ख़त्म करके उसने अन्य दिनों की तरह ही सिगरेट सुलगा ली।

सिगरेट के धुएँ का कश छोड़ते हुए उसने कहा, 'देखा, दिन-भर की सारी थकान, पल-भर में कैसे फुर्र में गई? समूचे तन-बदन में कैसी अद्भुत प्रशान्ति और खुमार छा गया।

मुझे पक्का विश्वास हो गया कि हारुन मेरे प्यार में आकर मेरी देह के गहरे पानी में तैरने को नहीं उमड़ा, बल्कि दिन-भर की अपनी थकान मिटाने के लिए, उसने मुझे इस्तेमाल किया है।

कमरे में जुड़े बाथरूम में जाकर, हारुन का तैरा हुआ गैंदला-धुला पानी धोकर, जव मैं कमरे में लौटी, तब तक उसका सिगरेट फूंकना खत्म हो सका था। वह मेरी तरफ़ पीठ किए लेटा हुआ था।

मैं उसकी बग़ल में आ लेटी।

एक हाथ उसके बदन पर रखकर, मैंने लजाए-लजाए अन्दाज़ में कहा, 'पता है, मेरा ख्याल है, यह उल्टियाँ होना, सिर घूमना किसी और ही बात का लक्षण है!'

जवाब में हारून के गहरे खर्राटों के अलावा कहीं से कोई आवाज़ नहीं आई।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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