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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास

12

 
अफ़ज़ल से महीने में सात दिन...यानी हफ्ते-भर तक मेरे सहवास का सिलसिला चलता रहा। उन दिनों मैंने हारुन को यह कहकर टाल दिया कि तबीयत ठीक नहीं है: पेट-दर्द है; सिर बेतरह घूम रहा है या नींद आ रही है। पूरे हफ्ते-भर बाद, मैं बिस्तर पर मर्दे की तरह पड़ी रहती थी। हारुन रात-भर में जितनी बार भी चाहे. मेरा अंग-सुख जीता था। अगर एक बार में सन्तुष्ट नहीं हुआ, तो दूसरी बार; दूसरी बार भी सन्तुष्ट नहीं हुआ, तो तीसरी, चौथी, पाँचवी बार! जितनी बार; उसकी मर्जी होती थी, वह अपनी हवस मिटा लेता था। हारुन जी-जान से मेरे बदन के खेत में बीज बोने की कोशिश में जुटा रहा। वीर्य की बाढ़ आ गई।

'सुनो, अब धोने-धाने मत उठ जाना। बस, इसी तरह पड़ी रहो।'

हारुन को डर था कि धोने-धाने में उसका कुछ अंश, पानी के साथ बह न जाए।

'मैं मन-ही-मन हँसती रही!

'ठीक है! मैं इसी तरह सोई रहती हूँ।'
 
'इस महीने कोई खुशखबरी जरूर मिलेगी। क्यों, तुम्हारा क्या ख़्याल है?'

हारुन के होठों पर मीठी मुस्कान उभर आई।

उसने मुझे चूमते हुए कहा, 'मेरी लक्ष्मी-बह, सोना बहू! ज़रूर आएगा हमारा बच्चा अब ज़रूर आएगा।'

'हमारा' शब्द पर उसने ख़ास जोर दिया। मैं कहता हूँ, तुम देख लेना, वह बिल्कुल तुम्हारे जैसा होगा। है न?'

हारुन ने अपनी बाँई बाँह में जकड़कर, मुझे सपनीली आँखों से निहारता रहा।

शाम को बरामदे में खड़े होते ही, अफ़ज़ल पर मेरी नज़र पड़ी। वह आँखों, बालों, माथे, ठुड्डी, छाती पर बोझिल छटपटाहट लिये, बगीचे में खड़ा था। मेरे होंठों पर चिकनी-सी हँसी, झलक दिखाकर, पल-भर में विलीन हो गई। उसने नीचे आने का इशारा किया। मैंने अस्पष्ट मुद्रा में, इन्कार में सिर हिला दिया और बरामदे से हट आई। अफ़ज़ल के पास जाकर उसके प्यार में सिक्त होने, मैथुन के उन्माद में मत्त होने का, मेरा मन नहीं हुआ। रसून अपनी किसी ख़ाला से मिलने, तेजगाँव गई हुई थी। ससुरजी नोवाखाली से लौट आए थे। नींद की कड़ी दवा लेकर, वे सो रहे थे। उन्होंने सख्त ताकीद की कि उन्हें दस बजे से पहले न जगाया जाए। चूँकि पिछली कई रातों से वे ठीक तरह सोए नहीं थे, इसीलिए यह हिदायत थी। इस वक़्त मैं बिना किसी बाधा-रुकावट के, इत्मीनान से नीचे जा सकती थी! नीचे की मन्ज़िल में अफ़ज़ल अकेला था, मेरा मिथुन-कलाकार मेरे इन्तज़ार में बेचैन हो रहा था, लेकिन मेरा यह तन-मन निश्चल था। नीचे जाने के बजाए मैंने गुनगुनाते हुए, दो-दो बार पढ़ी हुई किताब उठा ली और बिस्तर पर आराम से पसर गई। इस घर में किसी को भी किताबें पढ़ने की आदत नहीं है। यह किताब हबीब की थी। वह अपने किसी दोस्त के यहाँ से लाया था। किताब के पहले पन्ने पर नाम भर लिखा हुआ था-सइफुल! किताब पर नज़रें दौड़ाते-दौड़ाते, मुझे झपकी आने लगी। मेरी आँखें मूंदने लगीं।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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