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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास

18


वक़्त पलक झपकते, पंछी की तरह, पंख फैलाए उड़ता रहा। वक़्त जो पीछे छूटता जाता है, वह कभी लौटकर आने का नाम नहीं लेता। वक़्त कोई औरत तो है नहीं, कि उसके पैरों में जन्जीर डाल दिया जाए या चहारदीवारी मैं कैद रखा जाए।

अर्ध जगी नींद में मैंने हाथ बढ़ाकर टटोला और एकदम से सजग हो गई। मेरा हाथ शून्य को छूकर वापस लौट आया। आनन्द कहाँ है? हारुन मेरी बगल में ही सोया हुआ था। मैंने उसे झकझोरकर जगाया और उससे पूछा, आनन्द यहाँ क्यों नहीं है?' मैंने अपना हाथ समेट लिया। अचानक मुझे होश आ गया। साल भर से ऊपर हो गए, आनन्द सासजी के कमरे में, अगल बिस्तर पर सोता है। बड़ा होते-होते, अब वह इतना बड़ा हो गया है कि घर के करीब ही, उसे बच्चों के एक स्कूल में भर्ती करा दिया गया है। आनन्द अब पहले जैसा नन्हा-सा शिशु नहीं रहा। अब वह चलना सीख गया है, दौड़ने भी लगा है। अब उसे बोलना, ड्रॉइंग बनाना, यहाँ तक कि किताब के अक्षरों पर उँगली रखकर पढ़ना भी आ गया है। लेकिन आनन्द के प्रति हारुन के आह्लाद-उल्लास में कभी, कोई कमी नहीं आई। आनन्द के जन्मदिन से ही वह उसे 'अब्बू' कहना सिखाने लगा था। बच्चा 'अम्मी' पुकारने से पहले ही ‘अब्बू' कहना सीख गया। वह सिर्फ़ 'अब्बू' ही नहीं कहता था, साथ में एकाध शब्द और जोड़ देता था-अब्बू, खाना! अब्बू घूमी-घूमी! अब्बू, गोदी! अब्बू, झूला! हारुन अक्सर कहा करता है, आनन्द की जुबानी अब्बू बुलाने की अदा ने उसे जितना सुख दिया है, उतना दुनिया की किसी चीज़ ने नहीं दिया। वह इतना-इतना ख़ुश हुआ है कि उसने अपनी कम्पनी का नाम तक बदलकर, मॉर्डन ट्रेडर्स से, आनन्द ट्रेडर्स कर दिया है।

पिछले तीन सालों में सिर्फ़ आनन्द ही बड़ा नहीं हुआ, बल्कि इस गृहस्थी में और भी ढेर सारी घटनाएँ घट गईं। हृदयगति रुक जाने की वजह से ससुरजी का इन्तकाल हो गया। हसन और रानू सउदी अरब चले गए। गाने-बजाने के ग्रुप से निकलकर, हबीब ने अपने लिए एक अदद नौकरी जुटा ली थी। अनीस को तलाक़ देकर, दोलन अब यहीं टिक गई थी। धीरे-धीरे वह विक्षिप्त भी होती जा रही थी।

अब वह अकेली-अकेली ही अपने से बातें करती रहती थी। सुमइया की किताब-कापियाँ फाड़कर पानी भरी वाल्टी में डुबाए रखती थी; आनन्द अगर अकेला मिल जाता था, तो उसे एकाध थप्पड़ जमा देती थी; आनन्द के गले की चेन उतारकर एक दिन उसने खिड़की से बाहर, सड़क पर फेंक दिया था। सासजी दोलन के लिए अक्सर ही सस्वर रोती-बिलखती रहती हैं। नमाज़ के दौरान मोनाजत में वाँहें उठाए देर-देर तक वक़्त गुज़ारती हैं।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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