लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास

4


हारुन इस बारे में पूरी तरह निश्चित हो चुका था कि हमारे तन-बदन में जो लक्षण नज़र आ रहे हैं, वह मेरे गर्भवती होने के निशान हरगिज़ नहीं हैं। इतनी जल्दी, कुल डेढ़ महीनों में ऐसी कोई घटना घटे, इसकी कोई वजह नहीं थी। मैं मन-ही-मन इस आशंका से नीली पड़ती रहो कि अगर मेरी कोख में बच्चा होने की कोई वजह नहीं है, तो मुझे क्या हुआ है। मुझे क्या किसी रोग ने धर दबोचा है? किसी असाध्य रोग ने?'

हारुन चोर-निगाहों से मेरा नीला पड़ना देखता रहा।

मुझे नीली पड़ते देखकर, वह मुझे डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर कहीं दूर नहीं बसा था। घर के क़रीब ही, धानमंडी में उसकी क्लिनिक थी। हारुन में दुश्चिन्ता का लेशमात्र भी नहीं था। उसका समूचा चेहरा परम निर्लिप्त! डेढ़ महीने के अन्दर ही, कोख में बच्चा नहीं आता, हारुन को यही जानकारी थी। वैसे रोग-बीमारी भुगतना मेरे लिए शायद उचित नहीं है। घर का कोई भी मर्द, मेरी बीमारी को शायद नेक नज़र से नहीं देखेगा। ब्याह से पहले, मुझे माहवारी कब हुई थी, मुझे याद नहीं है! मैं माहवारी का हिसाब-किताब कभी नहीं रख पाती। खून देखकर, मैं हर महीने ही अचकचा जाती हूँ। इस बारे में, मैं कभी निश्चिन्त नहीं हुई कि मेरी माहवारी कौन-सी तारीख को शुरू होगी। खैर, जव होनी होगी हो जाएगी। यह कोई ऐसी सुखद चीज़ नहीं है कि इसे याद रखने का मन करे। ब्याह के बाद, मुझे माहवारी हुई ही नहीं। विवाह के डेढ़ महीने बाद सिर घूमना और उल्टियाँ शुरू हो गईं। मुझे तो सिर्फ़ इतना मालूम है कि ऐसी तकलीफ़ मुझे कभी नहीं हुई। इस बारे में, मैं अपनी सास या दोलन या अपनी माँ या नूपुर से बात कर सकती थी, मगर मैंने नहीं की। मुझे लगा, यह ख़बर और किसी को देने से पहले, हारुन को ही देना चाहिए। मेरा मन हुआ, कि कहीं अकेले में उससे इस बारे में बात करूँ।

मैं और हारुन जव डॉक्टर सोफ़िया मजुमदार की क्लिनिक में बैठे हुए थे, मेरी छाती बेतरह धड़क रही थी, जुबान सूखने लगी। में गिलास पर गिलास पानी पिए जा रही थी। हारुन इत्मीनान से कोई पत्रिका उलट-पुलट रहा था। वैसे पत्रिका मैंने अपने हाथों में भी उठा रखी थी, लेकिन पढ़ नहीं रही थी। मुझसे पढ़ा ही नहीं जा रहा था। हारुन तिरछी निगाहों से मेरी घबराहट देखता रहा, लेकिन एक बार भी उसने नहीं पूछा कि कहीं मेरी तबीयत तो ख़राब नहीं हो रही है। डॉक्टर के चेम्वर में जव हमारा बुलावा आया, हारुन ने पत्रिका एक ओर रख दी और मेरे साथ डॉक्टर के चेम्बर में दाखिल हुआ। लेकिन वह पत्रिका छोड़कर उठने का उसका ज़रा भी मन नहीं था।

'धत्तरे कि! अच्छी-सी एक रचना पढ़ रहा था-'

मानो उसे अगर डॉक्टर के चेम्बर में न आना पड़ता, तो उसकी जान बच जाती। सारा झमेला मुझे लेकर था। मैं अकेली ही डॉक्टर से मिल आती, तो वह राहत की साँस लेता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai