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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास

17


हारुन ने मुझे धानमंडी में नहीं, गुलशन के एक अस्पताल में भर्ती कराया। अपने दफ्तर से उसने अनिश्चित समय तक छुट्टी ले ली। चौबीसों घंटे वह मेरे क़रीब बना रहा। एक पल के लिए भी वह मेरे पास से नहीं टला। हारुन देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे बच्चा वही प्रसव करेगा। वह हर पल मुझे ही खिलाने-पिलाने, बैठाने-उठाने, चलाने-फिराने-लिटाने में व्यस्त रहा। बच्चे के लिए कथरी, कपड़े, दूध की बोतल वगैरह इकट्ठे करता रहा। बात-बात में वह डॉक्टर-नर्स बुला लाता था। क्लिनिक में नाते-रिश्तेदारों की भीड़ लगी हुई थी। सोहेली फूफी मुझे प्रसव का दर्द सहने के बारे में तरह-तरह की हिदायतें देती रहती थीं। सासजी मेरी बाँह में ताबीज़ बाँध गईं। वे एक पर्जे में दरूद भी लिखकर दे गई. ताकि मैं उसे पढ़ती रहूँ। मैंने गौर किया सासजी काफी परेशान थीं। उन्हें देखकर. मैं मन-ही-मन पलक उठी। अब तक उन्हें सिर्फ़ हबीब, हसन और दोलन के लिए ही परेशान देखती आई थी, सिर्फ उन्हीं लोगों की खैरियत के लिए दुआएँ करती थीं। मुझे पक्का विश्वास था, यह ताबीज़ और दरूद भी मेरी मंगल-कामना के लिए नहीं, हारुन के बच्चे के लिए था। मैंने यह भी गौर किया वे मेरी जितनी भी सेवा-जतन करती थीं, हारुन के सामने ही करती थीं। मेरा ख्याल है, उनके अन्दर कोई आशंका भी पल रही थी। हारुन कहीं अपने बच्चे के आकर्षण में, बीवी का गुलाम न बन जाए। हारुन कहीं अपने माँ-बाप, भाई-बहन के बारे में उदासीन न हो जाए।

इन दिनों हारुन का झुकाव जिस किसी भी तरह हो सकता था, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। भले अब वह मेरी निर्जनता, मेरे असहनीय अकेलेपन पर नज़र न डाले, अब मेरी समूची दुनिया में, मेरा बच्चा घुटनों के बल चला-फिरा करेगा। अब मैं हारुन की मामूली-सी हमदर्दी की उम्मीद में बेचैन नहीं रहूँगी। अब इसकी ज़रूरत है? प्यार अगर ठीक वक़्त पर हाज़िर न हो, तो उस प्यार में उतना मज़ा नहीं आता। अब हारुन का अन्धाधुन्ध प्यार देखकर, मुझे निरा नाटक लगता है। उम्र पार हो जाने के बाद, ढेरों साल गुज़र जाने के बाद, अचानक वह घुटनों के बल बैठकर कहे-मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, झूमर, तो मैं भौंहें क्यों न चढ़ाऊँ? उसका जुमला मुझे अजीब क्यों न लगे? हारुन मुझे अनज़ान-अपरिचित क्यों न लगे?

शाम को जिस वक़्त डॉक्टर राउण्ड पर आता था, हारुन की वदहवासी बढ़ जाती थी-बच्चा ठीकठाक तो है न? कहीं कोई परेशानी तो नहीं है? कहीं सिजेरियन की ज़रूरत तो नहीं पड़ेगी?-ऐसे ही सैकड़ों सवाल करते-करते, उसके मुँह में झाग भर जाता था। डॉक्टर को लाचारी में, उसके वदहवास चेहरे के सामने हतवुद्ध की तरह खड़ा रहना पड़ता था।

डॉक्टर जब चलने लगता था, हारुन भी उसके पीछे-पीछे हो लेता था।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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