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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


निर्जनता का मौका पाते ही, मैं बरामदे में खड़ी-खड़ी बग़ीचा निहारने लगी, कहीं अफ़ज़ल दिख जाए! अभी तक उसके हाथों का स्पर्श मेरी हथेली में लगा हुआ है। अँधेरा बूंद-बूंद पानी की तरह मेरे बदन पर बरसता रहा और मन नीचे की मंज़िल पर जा पहुंचा। अफ़ज़ल किसकी तस्वीर आँक रहा है? उस नंगी औरत की तस्वीर? जिसे वह अपने सपने की औरत बताता है, जिसे वह कभी प्यार करता था? कभी वे दोनों बारिश में भीगे थे। मुझे अपने पर अचरज़ हो आया। अफ़ज़ल से महज एक दिन की जान-पहचान है और मैंने अभी से उसकी पेंटिंग की औरत से ईर्ष्या शुरू कर दी। मेरे अन्दर तीखी चाह जाग उठी। अँधेरे पर टप-टप झरती बूंदों की तरह, मैंने चाहा, मेरे मन-प्राण पर यह चाह बूंद-बूंद टपकती रहे और अफ़ज़ल मुझे निरावृत्त करके, मझे निहारता रहे। जब उसके सामने एक जीती-जागती औरत बैठी थी, वह उस तस्वीर को क्यों निहार रहा था? तस्वीर की उस औरत में ऐसा क्या है, जो मुझमें नहीं है? अगर मेरे वश में होता, तो मैं खुद अपने कपड़े उतारकर, उस तस्वीर की बग़ल में जा खड़ी होती और तब देखती कि अफ़ज़ल की निगाहें किस पर आ टिकती हैं! मेरे दिल में यह तीखी चाह जाग उठी कि किसी कलाकार की प्यासी आँखें, किसी तन-बदन को निरखती-परखती हैं, मैं भी तो देखूँ!

मैं अँधेरे में अकेली-अकेली भींगती रही। अँधेरे में अकेली खड़ी मैं, उस तस्वीर की औरत की तरह!

इसके बाद, मुझे होश नहीं है कि कौन मुझे बाथरूम में खींच ले गया, सचमुच मेरे सारे कपड़े उतारकर, उसने मुझे निरावृत्त कर डाला। उसने मुझे नल के नीचे, स्थिर खड़ा कर दिया। जाने कौन तो मेरी ही नज़र से मेरे तन-बदन की पोर-पोर में रुपहले जल में हीरक-कण की चमक बिखेरता रहा। जाने किसने मेरे उभार की बुंदकियों पर दो बूंद पानी टपकाया। उसने मुझे दिखाया कि मैं उस तस्वीर की औरत से ज्यादा खूबसूरत लगती हूँ या नहीं। ना, मैं नहीं, कोई और मुझे अपने को दिखाता रहा। मैं नहीं. कोई और शख्स मेरे अन्दर टप-टप पानी टपकाने जैसा. मेरे अन्दर जागी ईर्ष्या मिटाता रहा। बेजान-निष्प्राण एक औरत की देह के साथ, मेरी खून-मांस की देह की एक अद्भुत प्रतिद्वन्द्विता शुरू हो गई। इन अनुभूतियों का अनुवाद, मेरी क्षमता से बाहर की बात है! मुझे इनका अनुवाद करना, सच ही, नहीं आता।



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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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