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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


सेवती उन औरतों के भविष्य के बारे में इतनी चिन्तित नहीं होती, जितनी उन लोगों की शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर परेशान रहती है! मुझे इन अभागी औरतों के लिए बेहद फ़िक्र होने लगी है। मैं अपनी कल्पना में उन्हें अपने पीहर लौटते हुए देखती हूँ। वहाँ लौटकर भी उन लोगों को चैन नहीं मिलता, क्योंकि उठते-बैठते उन लोगों को गाली-गलौज सुननी पड़ती है, थप्पड़-तमाचे की मार सहनी पड़ती है, उन्हें गर्दनिया देकर धक्का दिया जाता है! मैंने वारी में अपने बग़ल के मकान की पारुल की जिंदगी देखी है। पति द्वारा तलाक दे दिए जाने के बाद, वह पीहर पहुँची। वहाँ उसे दिन-रात लानत-मलामत सहनी पड़ती थी। नाते-रिश्तेदारों ने उसे ही दोष देना शुरू कर दिया कि ज़रूर दोष उसी का है, तभी तो पति ने तलाक़ दे दिया। वैसे पाठल ने ख़ुद मुझे बताया था कि उसका पति किसी दूसरी औरत के इश्क में पड़ गया है। उससे विवाह करने के इरादे से ही पति ने उसे खदेड़ दिया। करमजली पारुल अब अपने पीहर में नौकरानी की तरह जी रही है। गृहस्थी के कामकाज़ में पारुल अपने को जबरन व्यस्त रखने की कोशिश करती है ताकि उसके माँ-बाप, भाई-बहन कम-से-कम यह तो स्वीकार करें कि उनकी गृहस्थी में उसकी ज़रूरत है। तलाक़शुदा औरत से कोई भी शरीफ़ आदमी निक़ाह के लिए राजी नहीं होगा, पारुल की माँ इस बारे में काफ़ी कुछ निश्चित थीं। व्याह से पहले का जीवन, व्याह के बाद का जीवन और तलाक़ के बाद का जीवन-पारुल इन तीनों तरह की ज़िन्दगी गुज़ार चुकी है। पारुल एक ही है, मगर उसे इन्सानों की तरफ़ से तीन तरह का व्यवहार मिला।

अब तक मैंने जितनी औरतों को देखा है, उसमें सेवती को छोड़कर, सबकी सब मर्यों पर निर्भर नज़र आई हैं। एकमात्र सेवती के घर में ही मैंने देखा है कि मर्द होकर भी, सेवती का पति खाना पकाता है, घर की देखरेख करता है! मियाँ-बीवी दोनों बाहर नौकरी करते हों और तब पति गृहस्थी के किसी काम में हाथ बँटाता हो, ऐसा हरगिज़ नहीं है। नादिरा की बड़ी बहन और उसका पति, दोनों प्राणी बैंक में नौकरी करते हैं। शाम को बैंक से लौटने के बाद, बीवी बावर्चीखाने में और पति महोदय, आराम से सोफे पर बैठे-बैठे टेलीविजन देखते हैं। दोनों की तनख्वाह बराबर, गृहस्थी में ख़र्चा-पानी बराबर। लेकिन बच्चा सम्हालने, घर-द्वार की साफ-सफ़ाई, बर्तन माँजने-धोने, कपड़े धोने, खाना पकाने और परोसने की ज़िम्मेदारी, अकेली नादिरा की बहन को निभाना पड़ता है, उस पर से नौकरी भी करो। सेवती का घर ही एकमात्र व्यतिक्रम था। एक दोपहर, अचानक उस घर में जा पड़ी। मैंने देखा सेवती का पति खाना पकाकर, मेज पर लगा रहा है और सेवती सो रही है। यह देखकर, पहले तो मुझे अपनी आँखों पर ही विश्वास नहीं आया।

बाद में सेवती ने ही बताया, 'रात की ड्यूटी से लौटकर, मेरा खाना पकाने का मन नहीं होता। वह गृहस्थी जितनी मेरी है, उतनी अनवर की भी! इसलिए, मैं ही अकेली घर का कामकाज़ क्यों करूँ, बताओ?'

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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