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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


'रो क्यों रही हो, दोलन?'

रुलाई थम गई। काफी देर तक उसने कोई जवाब नहीं दिया।

'क्यों रो रही हो? क्या हुआ है?'

दोलन ने उसी तरह लेटे-लेटे ही जवाब दिया, 'सुमइया के अब्बू के लिए दिल बेतरह परेशान है।

'क्यों?'

'अकेले-अकेले पड़ा है। मेरे बिना उसका मन नहीं लगता। अब कौन उसे पका-पकाकर खिलाता होगा। मेरे हाथों पकाया खाना न हो, तो उससे खाया नहीं जाता। मैं अगर बग़ल में न सोऊँ, तो उसे नींद नहीं आती।'

दोलन के बदन पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा, 'अनीस से कहो, वह भी यहाँ आ जाए, या फिर तुम ही चली जाओ उसके पास!'

दोलन एक झटके से उठ बैठी, क्या कहती हो, भाभी? भला मैं कैसे जा सकती हूँ? हसन को इस हालत में छोड़कर कैसे जाऊँ? तुम्हारा क्या ख्याल है, हसन की देखभाल, रानू अकेली कर पाएगी? वह धान-पान-सी लड़की भला कुछ कर पाती है? तुमने कभी देखा है? वह तो सिर्फ टेसुए बहा सकती है। अरे, यूँ रोने से क्या हसन अच्छा हो जाएगा?'

'रानू भले न देखभाल कर पाए, हमलोग तो हैं न! घर में इतने सारे लोग मौजूद हैं, सभी लोग तो उसकी देखभाल में जुटे हैं। मैंने दोलन को दिलासा दिया।

दोलन फफक-फफककर रो पड़ी।

उसने बताया कि हसन ने उसे खुद बुलाया है और बताया कि उसकी देखभाल बिल्कुल नहीं हो रही है। उसे बिल्कुल नहीं लगता कि उसके फेफड़े में जमा पानी सुखाया गया है। उसे यह भी नहीं लगता कि उसके बाएँ पैर की हड्डी कभी जुड़ पाएगी। अन्दर-ही-अन्दर घाव हो गया।'


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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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