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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


मुर्गी के अंडे भी मँगाए गए हैं। हर रोज़ नियम से चार अंडे। नियमितरूप से आधा सेर दूध! हारुन खुद अपने हाथों से दूध पिलाता था। अगर मैं मुँह फेर लूँ तो वह मुझे–'मेरो सोना, मेरी लक्ष्मी...थोड़ा-सा, बस, थोड़ा-सा दूध पी लो! डॉक्टर ने कहा है न, ज़्यादा ज़्यादा दूध पीया करो।' वगैरह कह-कहककर, मेरी मनुहार करता है।

इन दिनों यह नियम भी लागू नहीं है कि घर के मर्द खाना खा लें, तभी मैं खाऊँ। मेरा खाना-पीना सबसे पहले ही हो जाता है। रात का खाना तो हारुन मुझे साथ बिठाकर ही खाता है। मेरी प्लेट में वह सबसे बेहतरीन खाना डाल देता है।

इतना खा-खाकर, मुझे बखूबी पता है कि मेरा वज़न बढ़ जाएगा। वजन बढ़ भी गया है। वैसे इतना-इतना खाना, मेरे प्रति प्यार में आकर नहीं खिलाया जा रहा है। जब तक मेरी कोख में बच्चा नहीं आया था, मैंने क्या खाया, नहीं खाया, उसने किसी दिन भी जानने की कोशिश नहीं की। मुझे कौन-कौन-सा खाना पसन्द है, वह तो वह आज भी नहीं जानता। हालांकि मुझे सारा कुछ रटा हुआ था-हारुन को क्या खाना पसन्द है। क्या नहीं है। सिर्फ खाना-पीना ही नहीं, उसे क्या पहनना पसन्द है, यहाँ तक कि वह क्या सोचता रहता है, मुझे इसकी भी खबर है।

रात को हारुन मेरे अंग-प्रत्यंग पर हाथ फेरता रहता है। वह इतना खूबसूरत प्यार भी कर सकता है, यह मैं नहीं जानती थी। मुझे तो ऐसा अहसास हो रहा था, जैसे अभी तक हमारा ब्याह भी नहीं हुआ।

हारुन के प्यार में डूबे-डूबे मैंने पूछा, 'एजी, बताओ न, तुम्हें क्या चाहिए?

बेटा या बेटी?'

हारुन ने मुझे हौले-से जकड़कर कहा, 'तुम मुझे जो भी उपहार दोगी, मुझे क़बूल है। मेरे बेटा हो या बेटी...मुझे मन्जूर!'

मैंने मन-ही-मन कहा-असल में, हारुन जुबान से चाहे जो भी कहे, वह बेटा ही चाहता है। बेटा और सिर्फ बेटा! क्योंकि बेटा होने का सुख, वह जानता है। जैसी ज़िन्दगी वह जीता रहा है, वह ज़रूर यही चाहता होगा कि उसका बेटा भी वही-वही सुख जिए। बेटी होने के दुःख का अहसास, उसे मुझसे कम नहीं है। बेटा या बेटी, मैं कुछ भी नहीं चाहती। सच तो यह है कि मेरी कोख में जो सन्तान है, वह मेरा नहीं है। यह मेरे प्रतिवाद, मेरे प्रतिशोध की सन्तान है। यह मेरे सपनों का भ्रूण नहीं है। मेरे क्षोभ और यन्त्रणा का भ्रूण है। यह मेरा सुख नहीं है, शान्ति भी नहीं है, यह मेरे दुःख का और एक नाम है, यह मेरे कष्ट-तकलीफ़ की दुनिया है!


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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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