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शोध
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प्रकाशक :
वाणी प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2014 |
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 3010
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आईएसबीएन :9788181431332 |
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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास
उस रेस्तराँ में खाना-पीना निपटाकर, जब वह गाड़ी हँकाकर मुझे घर छोड़ने आ रहा था, तब गाड़ी के अन्दर छिपाकर रखा हुआ एक पैकेट उसने मेरे हाथ में सौंप दिया। पैकेट में खूबसूरत-सी काँचीपुरम साड़ी थी। हारुन आज भी ज़रूर सोनार गाँव ले-जाकर मुझे चौंकाना चाहता है। उसने ज़रूर कोई उपहार भी कहीं छिपा रखा होगा, वाद में थमा देगा।
हारुन ने जब गाड़ी का रुख घर की तरफ़ मोड़ लिया, मैंने दरयाफ्त किया, 'क्या बात है? तुम कोई बात क्यों नहीं कर रहे हो?'
उसने कोई जवाब नहीं दिया। उसका चेहरा पढ़ते हुए अचानक मेरे मन में सवाल उठा, वह क्या अभी बच्चा नहीं चाहता? हो सकता है! व्याह के फ़ौरन बाद, कई-कई लोग बच्चा नहीं चाहते। वे लोग साल-दो साल मौज-मज़ा करते हैं, मनचाहे ढंग से सैर-सपाटे करते हैं, उसके बाद बच्चे के लिए तोड़जोड़ करते हैं। लेकिन मुझे यह भी लगा कि हारुन अगर बच्चा नहीं चाहता था, तो वह गर्भ-निरोधक इस्तेमाल करता। उसने तो मुझे भी निरोधक इस्तेमाल करने की हिदायत नहीं दी। मैं काफ़ी देर तक उस चेहरे की तरफ़ नज़रें गड़ाए देखती रही, जो मुझे नहीं देख रहा था। हारुन का बिल्कुल भावलेशहीन चेहरा! निस्पृह चेहरा! पथराया-सा चेहरा! मैंने उसके चेहरे से निग़ाहें हटाकर, सीधी सड़क पर टिका दीं। इन रास्तों पर कितने दिनों से मैं नहीं चली। कोलतार की इन सड़कों से मेरा रिश्ता-नाता अब जन्मभर के लिए चुक गया था। मेरा मन हुआ कि मैं सड़क पर नंगे पाँव दौड़ जाऊँ। पहले की तरह ही खेल-कूद में मगन होकर, मारे उल्लास के इस उत्ताल हवा में बहती-तैरती हुई समूची रात गुज़ार दूँ।
घर पहुँचकर, हारुन, बेहद गम्भीर चेहरा बनाए, बैठा रहा। वह कभी अपने दोनों हाथों से अपने बाल नोंच रहा था। कभी दोनों हाथ अपने गाल पर रखता था। कभी अपनी दोनों हथेलियों से अपना चेहरा ढंक लेता था। उसकी असम्भव खूबसूरत आँखों में एक अनपहचाना-सा संशय! यह उसकी बनावटी गम्भीरता नहीं थी। वह सचमुच गम्भीर था। मैं यह सोच-सोचकर अवाक होती रही कि अभी तक उसने मुझे चौंकाया क्यों नहीं। मुझे हारुन का यह हाव-भाव ठीक-ठीक समझ में नहीं आया। वह कुछ बोल क्यों नहीं रहा है? आज जैसा खुशीभरा दिन, हारुन की ज़िन्दगी में पहले कभी नहीं आया होगा। बीवी की कोख में अगर बच्चा हो, तो कोई पति भला यूँ मुँह फुलाए बैठा रहता है भला? उसपर से हारुन जैसा पति! मेरे अन्दर तीखी चाह जाग उठी कि हारुन के मन में क्या चल रहा है? वह क्या सोच रहा है?
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अनुक्रम
- एक
- दो
- तीन
- चार
- पाँच
- छह
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- बारह
- तेरह
- पन्द्रह
- सोलह
- सत्रह
- अठारह
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