लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


कल रात तो मैंने भी नहीं खाया था। मेरे न ख़ाने के बारे में सासजी ने कोई सवाल नहीं किया। कहीं हारुन ने तो मेरे साथ झगड़ा नहीं किया, कहीं मेरा मूड तो खराब नहीं है, यह सब जानने में सासजी की कोई दिलचस्पी नहीं थी। मंरा खाना या न खाना, इस घर में कोई ख़ास बात नहीं है। हाँ, हारुन ने अगर खाना नहीं खाया, तो वह ख़ास घटना बन जाती है। मेरे कोख में हारुन का बच्चा साँस लेने लगा है, यह भी कोई अहम् बात नहीं है।

सासजी दिन भर ही मुझे बहाने-बहाने से सलाह और हिदायतें देती रहीं। हारुन मेरी किसी हरक़त से नाराज़ न हो। मैं पति को खुश रखने के लिए सदा-सर्वदा सजग रहूँ। पति के क़दमों तले, पत्नी की जन्नत है, यह बात मैं भूल न जाऊँ। अगर मैंने अपनी शौहर की सेवा नहीं की, तो अल्लाहताला मुझे दोज़ख में झोंक देंगे। वहाँ मुझे मवाद और सड़े-गँधाते खून का आहार करना होगा। मुझे नर्क की आग में जलना होगा; साँप का डंक सहना होगा।'

और-और दिनों की तरह ही, मैं दिन-भर बावर्चीखाने में खाना पकाती रही। रानू ने सब्जियाँ काट दीं। रसूनी और सकीना घर-द्वार की धुलाई-सफ़ाई में जुटी रहीं। दोपहर को सबको, हबीब, हसन, अनीस और ससुरजी को खिलाकर, जब सास जी के साथ खाने बैठी, मेरी थाली पर नज़रे गड़ाए, वे लगातार बुदबुदाती रहीं।

'हारुन बेचारा, दफ्तर में शायद बिना कुछ खाए-पीए पड़ा है!'

मुझे याद आया कि हारुन जब उपासा दफ्तर गया है, तो उसकी बीवी का घर में बैठे-बैठे, ऐश से खाना-पीना, वाकई नज़रों में चुभने वाली बात है! मुझे अफ़ाज़ा हो गया कि यही बात याद दिलाने के लिए, वे यह सब सुना रही हैं। हारुन के लिए सास के साथ-साथ, मुझे भी लम्बी-लम्बी उसाँसें भरनी पड़ीं, अपनी आधी-खाई थाली छोड़कर उठ जाना पड़ा। सासजी के सामने मुझे कहना पड़ा, 'अभी ख़ाने का मन नहीं हो रहा है, शाम को आपका बेटा आएगा, तो उसके साथ ही खा लूँगी।'

मेरे इस आचरण से सासजी काफी प्रसन्न हुईं।

दरअसल, सासजी की नज़रों के सामने, मुझसे खाया नहीं गया। मुझे अपने से ही हिकारत हो आई। जैसे सारा क़सूर मेरा ही है। मेरे ही किसी क़सूर की वजह से हारुन ने घर में खाना छोड़ रखा है, मुझसे बातचीत बन्द कर दी है। मेरे पैरों तले की ज़मीन खिसक गई थी। मैं अतल में विलीन होती जा रही थी।

बहरहाल, उसी तरह उल्टियाँ और सिर चकराने समेत, मैं गृहस्थी के कामकाज में जुट गई। ससुरजी के लिए चाय बनाकर, उन्हें दे आई, सासजी के बालों में उँगलियाँ चलाकर, जड़ों को नारियल-तेल पिलाया और बालों में कंघी करके जूड़ा भी बना दिया। जब उनकी जवान की उम्र थी, उनके बाल बेहद घने-काले थे; वे बाल पेट से भी नीचे घुटनों-घुटनों तक लहराते रहते थे। मैं चुपचाप सुनती रही। इसी में वक्त गुज़रता रहा। दिन ढलते-ढलते, हारुन के लौटने का भी वक्त हो आया। सासजी ने मुझे हिदायत दी थी कि हारुन को खुश रखने के लिए, उसका मूड ठीक रखने के लिए, मुझे हर तरह की कोशिश करते रहना है। औरत की ज़िन्दगी में यही एकमात्र आसरा-भरोसा है-उसका पति! सासजी मेरे भले के लिए ही मुझे सीख देती थीं, यह मैं समझती थी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book