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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


नहीं मुझे बेहोश नहीं किया गया। मेरा गुप्ताँग कुरेद-कुरेदकर, अन्दर का सारा कुछ बाहर निकाल लिया गया। एक तरोताज़ा शिशु का चेहरा, जमे हुए, खून की शक्ल में बाहर निकाल लिया गया। किसी मासूम शिशु के नन्हें-नन्हें हाथ-पाँव, सुर्ख-लाल धारा की शक्ल में बाहर निकाल दिया गया। मैं खून के उस पिण्ड को अवाक् निगाहों से देखती रही। दिल को कुरेदा जाए, तो शायद ऐसा ही रक्तपिण्ड बाहर बह निकलता है।

गर्भपात हो जाने के बाद, डॉक्टर ने आश्वस्त किया कि अब मेरी कोख खाली हो चुकी है। अब वहाँ कुछ भी नहीं है। वहाँ भ्रूण का एक कण भी नहीं बचा है। हारुन हँस पड़ा। उसने डॉक्टर के रुपए चकाए और मेरे बिस्तर के सिरहाने आ बैठा और मेरे सिर पर हाथ फेरने लगा। करीब दो घंटे बाद, मुझे लगभग गोद में उठाए-उठाए उसने मुझे गाड़ी में ला बिठाया। घर पहुँचकर, उसने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरे मुँह में फलों का रस डूंस दिया। उसने घरवालों को यही सूचना दी कि मैं बीमार हूँ। मुझे नियमित रूप से फलों का रस, गर्म दूध वगैरह दिया जाए। बीमारी की ख़बर पाकर, घर के सभी लोग एक-एक करके मेरे सिरहाने आ बैठे।

हारुन ने उन्हें आश्वस्त किया, 'कोई ख़ास बात नहीं है। पेट में दर्द है। दवा लेने से ठीक हो जाएगा।'

दफ्तर जाते वक्त उसने हौले-से मेरे होंठों को छूकर प्यार आँक दिया।

काफ़ी लम्बे अर्से से उससे ऐसा प्यार नहीं मिला था। अर्से से मुझे यह अहसास नहीं हुआ था कि वह मुझे सच ही प्यार करता है। हारुन को भी ज़रूर यह अहसास है कि मुझमें थोड़ी-बहुत सच्चाई और ईमानदारी ज़रूर है, वर्ना वह मुझे प्यार क्यों करता? खैर, अगर वह मानता है कि मुझमें कहीं ईमानदारी मौजूद है, तो वह, ऐसा क्यों सोचता है कि मैंने उसे धोखा दिया? मैंने किसी और का बच्चा, अपनी कोख में लेकर, उसे हारुन के लिए मढ़ दिया है। तब तो म जुआचोर हूँ! चालबाज़ है! धरन्धर मक्कार हैं। चलो. मान लिया कि मैं ऐसी ही हैं। लेकिन अगर मैं ऐसी औरत हूँ, तो वह मुझे घर से बाहर निकल जाने को क्यों नहीं कहता? वह मुझे गर्दनिया देकर, सड़क के कूड़ेदान में क्यों नहीं फेंक देता? वह जुबान से क्यों नहीं कहता-तलाक़! तलाक़ !! तलाक़!!!? तलाक़ का इन्तज़ाम करने के बजाए, उसने दवा-दारू का इन्तज़ाम किया। दिन-भर में चार बार, मुझे कौन-कौन-सी दवा लेनी है, डॉक्टर की हिदायत मुताबिक वह ख़रीद लाया और मेरे बिस्तर के साइड-टेबल पर उसने सजाकर रख दिया। उसने कई-कई बार मुझे आगाह किया कि मैं ठीक वक़्त पर दवा लेती रहूँ। दवा लेने में कहीं, कोई भूल न करूँ। इस तरह सेवा-जतन करके, हारुन क्या मुझे यह समझाना चाहता है कि उसने मेरे सारे गुनाह माफ़ कर दिए? मैंने बेहद गम्भीरता से गौर किया, हारुन के होंठों की कोरों में लिपटी वह रहस्यमय हँसी, अब ग़ायब हो चुकी है। उसकी जगह एक किस्म का अहंकार आ बैठा है! उसके होठों पर ऐसा अहंकार मैं पहले भी देख चुकी थी, जब उसके कारखाने का एक मज़दूर, चोरी-चोरी कुछ यंत्र-पाती हटाते हुए, रंगे हाथों पकड़ा गया था, लेकिन हारुन ने उसे माफ़ कर दिया था।

बहरहाल. घरवालों को यही जानकारी दी गई कि मझे पेट का रोग हुआ है।

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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