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शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

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तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


माँ के जाने के बाद, काफ़ी देर तक मैं कॉरीडोर में ही खड़ी रही। बैठक-घर के किनारे से जुड़े इस कॉरीडोर में खड़े हों, तो सामने के चार मकानों के पीछे खड़ी दीवार पर आँखें टिक जाती थीं। दीवार से लगे हुए, सुपाड़ी के दो-दो पेड़ नज़र आते थे, और कुछ नहीं। दोपहर के खाने के बाद, घर के सभी लोग सो गए। रसूनी भी बावर्चीखाने में लेट गई। घर के जिस शख्स से मेरी सबसे कम बातचीत होती थी, वही अनीस कॉरीडोर में एक की पर आकर बैठ गया। मैं वहाँ से जाने ही वाली थी कि अनीस ने आवाज़ दी।

'भाभी, बैठिए न!'

मैं जहाँ की तहाँ खड़ी रही।

'दोलन सो रही है? सुमइया भी?' मुझे मालूम था कि वे दोनों सो रहे हैं, फिर भी मैंने अनीस से पूछा। अनीस से बात करने लायक, मेरे पास कुछ भी नहीं था। लेकिन उससे बात न करना अशोभन होता। उसके सामने से हट आना भी अभद्रता होती, क्योंकि वह इस घर का अहम् फ़र्द था। अनीस के लिए सास-ससुर तो क्या, हारुन भी काफ़ी फ़िक्रमन्द था।

मुझे पूछना ही पड़ा, 'आपके नए कारोबार की कोई जुगत बनी? बात आगे बढ़ी? किसी कोरियन कम्पनी से बात चल रही थी न? कोई संयोग बना?'

'वह तो ख़ारिज हो गया। अब चटगाँव में नया कारोबार शुरू करने का मौका मिल रहा है, लेकिन आपके शौहर ही जानें, कि वे कब, क्या करेंगे!'

मुझे अन्दाज़ा हो गया कि अनीस मुझसे शायद यह जानना चाहता है कि हारुन उसे रुपए-पैसे कब देगा। मैं अजब संकोच में पड़ गई। हारुन कब तक उसकी समस्या का समाधान करेगा, इसकी तो मुझे कोई जानकारी नहीं थी। लेकिन अनीस को यह बात बताने का मन नहीं हुआ। पति अगर अपने कामकाप, अपनी योजनाओं के बारे में, अपनी पत्नी को न बताए, तो पति-पत्नी के रिश्ते पर लोगों को शक होना नितान्त स्वाभाविक है!

अनीस को किसी तरह से शक का मौक़ा दिए बिना, मैं मौन हो गई, मानो वह इस मौन भंगिमा का यह अनुवाद कर ले कि उसकी समस्या का समाधन बहुत जल्दी ही हो जाएगा।

लेकिन मेरी मौन मुद्रा पर कंकड़ फेंकते हुए, अनीस ने बिल्कुल और ही प्रसंग छेड़ दिया, 'आप इतना उदास क्यों रहती हैं, झूमुर भाभी?'

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    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

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