लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


इसी दौरान हारुन एक दिन दफ़्तर नहीं गया। मौलवी साहब को बुलाकर, उसने मिलाद पढ़ाने की तैयारी की। हारुन सुबह से ही व्यस्त था। पूरा कुरान-पाठ कराने के लिए, उसने तीन-तीन मौलवी साहब बुलवा लिया था। समूचे घर में इत्र और लोबान की गंध! ऐसा लग रहा था, जैसे इस घर में किसी का इन्तकाल हुआ हो। इस गंध के साथ, मौत का गहरा रिश्ता है। शाम को मिलाद की महफ़िल शुरू हो जाएगी। हारुन और हबीव, अलाउद्दीन की दुकान से दो सौ पैकेट मिठाई ले आए। ससुरजी पायजामा-कुर्ता-टोपी पहनकर समूचे घर में घूमते हुए और मौलवी साहब को कब, क्या ज़रूरत पड़ेगी। इस बारे में वे सजग थे! उन लोगों के लिए चाय-बिस्कुट, सिंवइयाँ दे जाने के लिए हाँक लगाते रहे। रसूनी और सकीना भी काफी व्यस्त थीं। सासजी अपने बदन-दर्द समेत, मुझ पर हुक्म चलाती रहीं!

'बहूरानी यह करो. ज़रा वह चीज़ ले आओ. चटाई बिछा दो: बिस्तर पर चादर बिछा दो; तकिया रख दो, गुलाबदान में गुलाब जल भर दो। मौलवी साहब कह रहे थे, उनके लिए ज़रा शरबत बना दो, और हाँ, मीठा ज़रा ज़्यादा डालना।'

मैं भी दौड़ते-दौड़ते पसीने में नहा गई। मैं दो हाथों से नहीं, दस-दस हाथों से काम कर रही थी। आज घर में ढेरों नाते-रिश्तेदार, अड़ोसी-पड़ोसी आने वाले थे। दो-दो तरह का निम्बू का शरबत बनाना पड़ा। एक, चीनी समेत, एक चीनी बिना! हारुन अपनी गृहस्थी में, माथे पर आँचल डाले, अपनी लक्ष्मी-बहू की दुनियावी व्यस्तता देखकर परम मुग्ध था। उसके ख़ुश-खुश होंठ देखकर, मैं समझ गई थी।

'नीचे वालों में किसे-किसे कहना है, बताओ तो?'

मैं ठंडे पानी में, निम्बू निचोड़ रही थी। उसका सवाल सुनते ही, निम्बू मेरे हाथ से छूटकर पानी में जा गिरा।

'उफ़! यह क्या हो गया?' चम्मच से मैंने पानी में से निम्बू का टुकड़ा निकालने की कोशिश की।

'अरे, कुछ नहीं! छानना तो है ही!'

'हाँ, यह तो है!' चम्मच रखकर, मैंने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा, 'मुझे क्या मालूम, तुम किससे-किससे कहना चाहते हो। सेवती तो घर में है नहीं। उसने कहा है कि वह अस्पताल से रात नौ बजे लौटेगी। उसके बाद, वह यहाँ आएगी। उसके लिए एक पैकेट मिठाई रख देना है।'

'उसका पति भी तो शायद घर में नहीं है।'

'वह तुम नीचे जाकर ख़ुद देख आओ।'

'सेवती ने क्या अपने पति को यहाँ, मिलाद में आने को कहा है?'

'वह तो मुझे नहीं मालूम!' शरबत छानने की छन्नी खोजते हुए मैंने जवाब दिया।

'अच्छा, मैंने तो सुना था कि उसका एक देवर भी रहता है। उसे भी तो दावत देनी चाहिए।'

'उसका देवर...?'

'हाँ, उसका अपना देवर! सगा देवर न होता, तो भी कोई बात थी।'

'अरे, हाँ, ठीक ही तो! हाँ, सेवती ने मुझे एक बार बताया ज़रूर था कि उसका कोई देवर, उसके यहाँ आया हुआ है। लेकिन, उसने तो बाद में यह भी बताया था कि उसका देवर विदेश चला गया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai