लोगों की राय

उपन्यास >> शोध

शोध

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3010
आईएसबीएन :9788181431332

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

362 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का एक और पठनीय उपन्यास


शरबत की ओर ध्यान लगाते हुए, मैंने देवर का प्रसंग नज़रअन्दाज़ कर दिया। किसी के देवर के बारे में सोचने की मुझे बिल्कुल गरज़ नहीं! किसी का भी देवर हो, मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैंने अपनी निर्विकार मुद्रा के जरिए, हारुन को यही समझाने की कोशिश की।

मैंने गौर किया, हास्न ने हबीब को नीचे भेजा है। मैंने यह भी गौर किया कि निचली मन्ज़िल से लौटकर, हबीब ने हारुन को बतया कि नीचे, दरवाज़े पर ताला पड़ा है। घर में कोई नहीं है। मैंने राहत की सांस ली।

शाम को समूचा घर मेहमानों से भर उठा। अल्ला हुम्मा सलअल्लाह की गूंज से समूचा घर काँपने लगा। मेरे समूचे तन-बदन में नाव की थरथराहट दौड़ गई। हारुन ने भी लम्बी उसाँस छोड़ी।

मिलाद के लिए सारे के सारे मर्द मेहमान, बैठकघर और बरामदे में खड़े थे। वहाँ औरतों के खड़े होने का नियम नहीं था। औरतें सासजी के कमरे में कुँसी खड़े थीं। सबके सिर पर आँचल या दुपट्टा! सभी बुदबुदा रही थीं-अल्लाहुम्मा सलअल्लाह!

इस वक्त सिर्फ मैं ही इन सबसे बाहर थी। मुझे कुरान पढ़ने का हक़ नहीं था; मेरा मिलाद पढ़ना भी नहीं चलेगा, क्योंकि नापाक़ देह से, पाक़ चीजें नहीं छुई जाती, कोई भी पाक़ काम नहीं किया जाता।

घर की भीड़ कम होते-होते, नाते-रिश्तेदारों को जाते-जाते रात के दस बज गए। हारुन जब सोने के लिए कमरे में आया, उसने इसकी भी परवाह नहीं की कि मुझे माहवारी हुई है। जाने कहाँ से तो वह सुन आया था कि माहवारी के दौरान भी माँ गर्भवती हो सकती है। इसलिए वह इस कोशिश में भी कोई कोर-कसर उठा नहीं रखना चाहता था। वह हर तरह की कोशिश किए जाएगा। मैंने भी उसे नहीं रोका। आखिर वह मेरा पति था! मेरी देह पर जितना हक़ उसका है, उतना तो मेरा भी नहीं है।



...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पाँच
  6. छह
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. बारह
  13. तेरह
  14. पन्द्रह
  15. सोलह
  16. सत्रह
  17. अठारह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book