लोगों की राय

उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

Like this Hindi book 0

दीक्षा

''जनक ने उसी धनुष को लेकर, सीता के विवाह की युक्ति सोची है। उसने यह प्रण किया है कि जो कोई उस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा, अर्थात उस यंत्र को संचालित कर देगा, सीता का विवाह उसी के साथ होगा। पुत्र! जनक ने यह सोच रखा है कि कोई भी देवता, राक्षस, नाग, गंधर्व, किन्नर उस धनुष का संचालन नहीं कर सकेगा। अतः सीरध्वज जनक यह कह सकेगा कि उसकी परीक्षा पर कोई पुरुष पूर्ण नहीं उतरा, अतः सीता अविवाहित रहेगी। तब यह आर्य राजकुलों में जामाता न पा सकने की अक्षमता के आरोप से बच जाएगा और सीता अज्ञातकुलशीलता के कारण अविवाहित रह जाने के आक्षेप से मुक्त रहेगी।''

''अद्भुत स्थिति है ऋषिवर!'' राम के मुख से अनायास ही निकल गया, ''मैं चकित हूं कि एक असाधारण रूपवती युवती राजकुमारी के साथ विवाह करने के लिए, कोई आर्य राजकुमार प्रस्तुत नहीं है। यदि वह अज्ञातकुलशीला है तो उसमें उस कन्या का क्या दोष? हमारा समाज कैसा जड़ है गुरुदेव! किसने बनाए हैं ये नियम? कौन है इन सामाजिक मूल्यों के पीछे? वनजा बिना अपने किसी दुष्कर्म के पीड़ित है, अहल्या बिना अपराध के दंडित है, सीता बिना दोष के अपमानित है। ऐसा क्यों है गुरुदेव?''

''इन्हीं नियमों के विरुद्ध लड़ने के लिए तुम्हें मैं यहां लाया हूं राम!'' गुरु के स्वर में संघर्ष की इच्छा और सफलता का उल्लास, दोनों थे, ''वैसे जनक का प्रण हमारे अत्यंत अनुकूल है। यदि सीधे-सीधे जनक के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा जाता कि दशरथ के राजकुमार राम के साथ सीता का विवाह कर दो, तो कदाचित जनक यह स्वीकार नहीं करता, क्योंकि आज तक अयोध्या और मिथिला के सम्राटों के सम्बन्ध कभी मैत्रीपूर्ण नहीं रहे, इस मैत्रीशून्य इतिहास के कारण अयोध्या के राजकुमार के साथ अपनी कन्या का विवाह करते हुए, सीरध्वज अवश्य ही स्वयं को हेठा अनुभव करेगा। इसलिए, यदि तुम अजगव-संचालन कर, इस प्रतिबंध पर पूर्ण उतरते हो, तो निश्चित रूप से सीरध्वज इस विवाह में संकोच नहीं करेगा पुत्र! इससे एक ओर जहां सीता जैसी गुणशीला रूपवती, सुन्दरी युवती की जाति-विचार के पिशाच के हाथों हत्या नहीं होगी, और उसका विवाह अपने योग्य वर के साथ होगा; दूसरी ओर अयोध्या और जनकपुरी की परंपरागत शत्रुता, वैमनस्य, तथा एक-दूसरे के प्रति उदासीनता समाप्त हो जाएगी। और राम! दो प्रमुखतम आर्य सम्राटों को मिलाकर एक कर देने, उनकी सम्मिलित शक्ति को राक्षसों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार कर देने का जो स्वप्न मैंने वर्षों से देखा है, वह भी पूर्ण हो जाएगा...।''

गुरु रुक गए, किंतु जब राम ने कोई उत्तर नहीं दिया तो गुरु पुनः बोले, ''मैं अभी तुमसे कोई वचन नहीं चाहता राम, तुम इस विषय में सोच लो, विचार कर लो। अभी थोड़ी देर का समय तुम्हारे पास है। जल्दी में कोई निर्णय लेना अच्छा नहीं होता पुत्र!''

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai