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उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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दीक्षा

द्वितीय खंड

एक

 

सिद्धाश्रम से चलकर विश्वामित्र के पग जितनी तेजी से आगे बढ़ रहे थे, मन उतनी ही तीव्रता से पीछे की ओर लौट रहा था। पच्चीस वर्ष हो चुके थे; पर आज भी वे उन घटनाओं को भुला नहीं पाए थे। वे समस्त घटनाएं, आज भी उनके मन में उतनी ही जीवन्त हैं, जैसे अभी कल की बात हो। मन के स्थिर होने पर, समय तनिक-सी विस्मृति की काई बिछाता भी है तो घटनाओं का कोई न कोई झकोरा आकर, उस काई को छेद जाता है। अतीत, जैसे फिर से वर्तमान बनकर मन पर छा जाता है-फिर से छिल गए, पुराने घाव के समान। इन दिनों उन पुरानी घटनाओं की, विश्वामित्र ने बार-बार जुगाली की है; पर वनजा ने अपनी पीड़ा से जैसे उन घटनाओं को फिर से आकार देकर, उनके सामने साक्षात खड़ा कर दिया था। बाहर की घटनाओं की पीड़ा ने उनके अपने मन में जमी पीड़ा के साथ स्वयं को एकरूप कर दिया है। जैसे किसी और व्यक्ति के मृत शिशु को देखकर, मां को अपने शिशु की मृत्यु की याद आ जाए, और उसे सांत्वना देते-देते, वह स्वयं अपनी पीड़ा से रो पड़े।

विश्वामित्र की दृष्टि बहिर्मुखी हुई। उन्होंने राम की ओर देखा।

''राम!''

राम की आंखें गुरु की ओर घूमीं। गुरु बड़े उत्साह शून्य से लग रहे थे।

''पुत्र! आज एक पुरानी कथा सुनाने को मन हो रहा है।'' यांत्रिक ढंग से आगे बढते हुए, लक्ष्मण के पग एकदम रुक गए, ''गुरुदेव! कथा मैं भी सुनूंगा। मुझे कथाएं बहुत अच्छी लगती हैं। पर, वैसी कथा तो नहीं सुनाएंगे न जैसी दासी वामा सुनाया करती है। मुझे पशुओं-वशुओं की कथाएं एकदम अच्छी नहीं लगतीं।''

राम स्नेह-भरी आंखों से लक्ष्मण को देखकर मुस्कराए।

''तुम्हें कैसी कथाएं अच्छी लगती हैं लक्ष्मण?'' विश्वामित्र का अवसाद कुछ क्षीण हुआ।

''मुझे ऐतिहासिक कथाएं अच्छी लगती हैं, विशेषकर न्यायी पुरुषों के वीरतापूर्ण युद्धों की।'' लक्ष्मण का स्वर उत्साह से भरा-पूरा था, ''मेरी मां कहती हैं, क्षत्रियपुत्र को वीरता की कथाएं ही सुननी चाहिए।''

''पर सौमित्र।'' विश्वामित्र की वाणी कुछ शिथिल हो गई, ''जो कथा मैं सुनाना चाह रहा हूं वह किसी विजयी वीर की नहीं है, हां वह ऐतिहासिक अवश्य है।''

''तो ठीक है।'' लक्ष्मण के चेहरे का द्वंद्व छंट गया, ''शत्रुघ्न सदा परियों की कहानियां सुनता है, इतना बड़ा होकर भी। मुझे वे एकदम अच्छी नहीं लगतीं। ऐतिहासिक कथा ठीक है...।''

विश्वामित्र ने राम की ओर देखा। लक्ष्मण ने बीच में राम को बोलने का अवसर नहीं दिया था। वैसे भी राम कुछ बोलने को उत्सुक नहीं लग रहे थे। पर, जिस ढंग से वे उन्हें देख रहे थे, उस दृष्टि में मानो अनेक प्रश्न थे : ऐतिहासिक कथा क्यों सुनाना चाहते हैं ऋषिवर। इतिहास ही क्यों नहीं सुनाते?...कथा ही सुनानी है, तो इतिहास बीच में आवश्यक क्यों है...?

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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