लोगों की राय

उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

Like this Hindi book 0

दीक्षा

तीन

 

कौसल्या को सूचना मिली। वह धक्-सी रह गई : यह कैसे हुआ? यह कैसे संभव है? मेरा राम...पच्चीस वर्षों का नवयुवक राम राक्षसों से लड़ने के लिए विश्वामित्र के साथ जाएगा? किसकी बुद्धि ऐसी दुष्ट घटनाओं की सर्जना कर रही है? कौन राम को वन भेज रहा है?

वसिष्ठ? दशरथ? कैकेयी? कौन...पर ऋषि विश्वामित्र इस षड्यंत्र में सहयोगी कैसे हो गए?

राम राक्षसों से लड़ने के लिए सिद्धाश्रम जाएंगे. तो लक्ष्मण पीछे रह पाएगा क्या? कुल तेरह वर्षों का बालक है लक्ष्मण। पर उसे कोई रोक नहीं सकेगा। वह राम के बिना रह ही नहीं सकता।

कौसल्या का मन रह-रहकर आज वापस लौट रहा है। वह किसी भी प्रकार स्वयं को रोक नहीं पा रही हैं। वे सारी घटनाएं आज फिर से आकार ग्रहण कर उनकी आंखों के सम्मुख धूम रही हैं...सजीव, जीवंत...

पिता भानुमान ने अपने ही वंश के श्रेष्ठ युवक दशरथ के साथ अपनी बेटी का विवाह किया था। किसी भी कन्या के पिता को और किस बात की इच्छा हो सकती है...और कन्या स्वयं ही इससे बढ़कर क्या कल्पना कर सकती है; अज; रघुवंश के प्रसिद्ध सम्राट् थे और दशरथ युवराज! अयोध्या का राज्य सब ओर से शक्तिशाली. सम्पन्न, सम्मानित तथा यश से भरा-पूरा था। ऐसे राज्य के युवराज थे दशरथ! फिर स्वयं दशरथ में क्या कमी थी : बलिष्ठ, लम्बे-ऊंचे. सुन्दर युवक। समस्त आर्य राजकुमारों में सर्वश्रेष्ठ योद्धा, ज्ञानी तथा आकर्षक दशरथ।

और क्या चाहते भानुमान? और कौसल्या स्वयं और क्या मांगती?

श्वसुर अज उनका कितना मान करते थे। वह बार-बार याद दिलाते थे; ''बेटी! हम मानव-वंशी मनु की संतान हैं। आर्य राजा, सम्राट् तथा विभिन्न प्रकार के शासक तो और भी अनेक हैं, किंतु वैवस्वत मनु का सीधा, प्रत्यक्ष उत्तराधिकार केवल हमारे पास है। हम उनके रक्त, उनकी परम्पराओं, उनके चिंतन और विधान के सीधे अधिकारी हैं। इसीलिए पुत्री, मैंने स्वयं भानुमान से तुम्हें मांगा। मानुमान भी मानववशी हैं। सम्राट् और भी हैं, उनकी राजकुमारियां भी हैं; किंतु मैं नहीं चाहता कि दूसरे वंशों की भिन्न चिंतन, परम्पराओं तथा संस्कारों में पली कन्याएं मेरे घर में आकर, मेरी अगली पीढ़ियों को ऐसे संस्कार दें, जो मानव-वंश के अनुकूल न हों। पुत्री! तू केवल दशरथ की पत्नी ही नहीं है, अज की पुत्र-वधू ही नहीं है-तेरे ऊपर मनु की महान परम्परा तथा संस्कारों को स्थिर रखने का गुरु उत्तरदायित्व भी है...।''

और श्वसुर की आशाओं तथा इच्छाओं का अक्षरशः पालन करने का प्रयत्न किया था कौसल्या ने। वह जानती थी, मानव-वंश में नारी पूर्णतः पति के अधीन है। उसका कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व नहीं है। यह वंश समाज में पितृ-सत्ता को उसकी पराकाष्ठा तक ले गया था। कौसल्या ने अपने मायके में भी यही देखा था, और ससुराल में भी वही देख रही थीं। वह व्यक्ति नहीं थी, वह उस वंश की पुत्र-वधू थी और उन्हें वही रहना था। परिवार के लिए, उसकी सुख-सुविधा के लिए, उन्हें अपने व्यक्तित्व का बलिदान करना था। और कौसल्या ने वही किया था। तभी राम का जन्म हुआ था। अज के लिए राम कोसल के साम्राज्य का उत्तराधिकारी था, मानव-बंश की अगली पीढ़ी का प्रतिनिधि था; किंतु दशरथ के लिए वह मात्र कौसल्या का पुत्र था। इससे अधिक महत्त्व दशरथ ने उन्हें कभी नहीं दिया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai