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उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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दीक्षा

दशरथ की आंखों में बेतरह भावुकता के आंसू उमड़ आए थे। फिर बहुत थोड़े-से अन्तराल के साथ भरत और लक्ष्मण, शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। शायद तब पहली बार सम्रा़ट् तथा उनके शुभाकांक्षी मंत्रियों ने यह समझा था कि सम्राट् क्रमशः बूढ़े और दुर्बल होते जा रहे हैं। उनके पश्चात युवराज-पद के लिए सम्राट् के पुत्रों में संघर्ष हो सकता है। फिर सम्राट् को अपने लिए यश भी चाहिए था। प्रजा की आंखों में मन में सम्राट् के चरित्र का बिंब खंडित नहीं होना चाहिए था। कामुकतावश किए गए सम्राट् के अनेक विवाहों के लिए किसी सार्थक व्याख्या की आवश्यकता का अनुभव किया गया। सम्राट् के दरबारी कवियों और इतिहासकारों ने दशरथ के पुत्रहीन होने, पुत्र की कामना से अनेक विवाह करने तथा अन्त में पुत्रेष्टि यश के माध्यम से चार पुत्रों की प्राप्ति की कथा बनाकर ग्राम-ग्राम में प्रचारित कर दी। पर क्या ऐसी कपोल-कल्पनाओं से तथ्य मिटाए जा सकेंगे? कौन नहीं देख सकता कि राम तथा अन्य भाइयों की आयु में कितना अंतर है। क्या लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, राम को अपने बराबर का भाई मान सकते हैं? वे लोग राम को पिता, तुल्य बड़ा भाई मानते हैं। राम ने उन्हें गोद में खिलाया है, आज भी प्यार में भरकर राम यदा-कदा उन्हें अपनी गोद मैं बैठा लेते हैं।

और आज राम को ताड़का से लड़ने के लिए वन भेजा जा रहा है। क्या इधर राम के प्रति दशरथ का बढ़ता हुआ मोह मात्र आडंबर था? क्या वह नाटक मात्र था? या यह कैकेयी के द्वारा वसिष्ठ को अपनी ओर मिलाकर रचा गया कोई नया षड्यंत्र है?

संभव है, कैकेयी ने ही ऐसा कोई षड्यंत्र किया हो!

अपने बचपन से ही लक्ष्मण राम के अनन्य अनुरागी हैं। सुमित्रा ने सदा लक्ष्मण को राम के पीछे चलने का उपदेश दिया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कैकेयी राम को इस प्रकार मृत्यु के मुख में ढकेलने का प्रयत्न कर रही है? वह जानती है कि राम को जाते देख, लक्ष्मण पीछे नहीं रहेंगे। वह भी तो साथ जाएंगे। इन दोनों की वहां हत्या हो जाएगी और कैकेयी के बेटे का राज्य निष्कंटक हो जाएगा...।

पर विश्वामित्र इस षड्यंत्र में कैसे सम्मिलित हो गए?

विश्वामित्र बसिष्ठ से भिन्न हैं। वह किसी प्रलोभन में, किसी के दबाव में कोई गलत काम नहीं कर सकते। उन्हें धन का, पद का, भोग का मोह नहीं हो सकता। नहीं हो सकता...विश्वामित्र किसी षड्यंत्र में सम्मिलित नहीं हो सकते। अवश्य ही वह राम के हाथों राक्षसों का नाश करवाना चाहते हैं...।

तो क्या कौसल्या के राम इतने समर्थ हैं? वह जानती थी कि राम वीर हैं, सक्षम हैं...पर क्या वह इतने सामर्थ्यवान है? कौसल्या का मन सहज ही विश्वास नहीं करता; पर वह विश्वामित्र पर विश्वास कर सकती हैं...।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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