लोगों की राय

उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

Like this Hindi book 0

दीक्षा

''आर्य शासन-पद्धति से मैं परिचित हूं तात्,'' राम बोले, ''पर राक्षसी तंत्र का ज्ञान मुझे नहीं है।''

''यह वसिष्ठ की शुद्धतावादी प्रणाली का परिणाम है पुत्र!'' विश्वामित्र शून्य में घूरते हुए बोले, ''रावण ने आर्यावर्त से बाहर या तो राजाओं को मार डाला है, या उनसे मित्रता कर ली है। कोई भी महाशक्ति रावण का विरोध करने नहीं आएगी। दुर्बल जन-समुदाय रावण के अत्याचारों से पीड़ित होता रहेगा। वह एक बार आर्यावर्त में घुस आया तो समानता के सिद्धांत पर खड़ा शासन-तंत्र समाप्त हो जाएगा और उसके स्थान पर धन तथा पशु-शक्ति पर आश्रित शासन-तंत्र का आरंभ होगा, मदिरा की अबाध धारा बहेगी...''

विश्वामित्र की आकृति किसी भी संभावित भय से एकदम पीली पड़ गई, वह जैसे उस भयंकर शासन-तंत्र में जी रहे थे।

राम एकदम उद्विग्न हो उठे। उनके सहज सलोने चेहरे पर क्षोभ की परत जम गई, ''तात्! इसका विरोध क्यों नहीं किया जाता?''

''कौन करे पुत्र?''

''आर्य सम्राट्।''

''आर्य सम्राट् के गुरु के पद पर वसिष्ठ बैठा है, जो मानव-मात्र को समान नहीं मानता है। वह अन्य जातियों से आर्यों को श्रेष्ठ मानता है, आर्यों में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ मानता है और पुरुषों को नारियों से श्रेष्ठ समझता है। वह शबरों, किरातों, निषादों, वानरों, ऋक्षों, कोल-भीलों जैसी अनेक आर्येतर जातियों तथा दूर-दूर तक फैले हुए वसिष्ठ दर्शन को न मानने वाले आर्य ऋषि-मुनियों पर होने वाले अत्याचारों से पीड़ित नहीं होता। फिर आर्य सम्राटों में मतभेद है। जनक और दशरथ साथ मिलकर कभी नहीं लड़ेंगे...''

राम कुछ उत्तेजित हो उठे, ''आर्य लोग मृत्यु के अपने घर में घुसने की प्रतीक्षा कर रहे हैं गुरुदेव!''

विश्वामित्र मुग्ध नेत्रों से राम को ऐसे तन्मय होकर देख रहे थे, जैसे समाधिस्थ हो गए हों। फिर उस तन्मयता से बाहर आ, गदगद होकर बोले, ''तुम सच्चे क्षत्रिय हो राम! तुम धन्य हो पुत्र! प्रण करो कि अपने विरुद्ध हुए अत्याचारों का तो प्रतिकार करोगे ही, अन्य जनों की पीड़ा भी मिटाओगे...।''

''मैं प्रण करता हूं, गुरुदेव!''

'मैं आश्वस्त हुआ पुत्र! अब तुम्हें अयोध्या लौटने को नहीं कहूंगा।''

''मैं भी प्रतिज्ञा करूं गुरुवर?'' लक्ष्मण चहककर बोले, ''मेरी मां कहती हैं-ऐसी प्रतिज्ञा रोज किया करो...''

''तुम्हारी मां ठीक कहती हैं लक्ष्मण!'' विश्वामित्र अत्यन्त प्रसन्न थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai