उपन्यास >> दीक्षा दीक्षानरेन्द्र कोहली
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दीक्षा
गौतम की आंखें नींद से बोझिल हो रही थी। मन अहल्या की सहायता के लिए आतुर था। शत अकेली अहल्या को तो थका मारेगा। अहल्या को भी आराम चाहिए था। पर वे क्या करते, शरीर एकदम साथ नहीं दे रहा था। इस उधेड़-बुन में ही बिस्तर पर लेटे हुए जाने कब वे सो गए।
प्रातः गौतम की नीद उचटी तो उन्होंने अपनी चेतना केन्द्रित की। रात्रि प्रायः व्यतीत हो चुकी थी। उषा आया ही चाहती थी। उन्हें अब शयन त्याग देना चाहिए। तनिक भी शिथिलता दिखाई, तो उजाला हो जाएगा; और फिर नित्य कर्मों के पश्चात् ठीक समय पर वे यज्ञशाला में नहीं पहुंच पाएंगे। विलम्ब, किसी ऋषि के दैनिक कार्यक्रम में भी उचित नहीं है, और, जिस आश्रम में ज्ञान-सम्मेलन हो रहा हो, उसके कुलपति का व्यवहार तो अत्यन्त लज्जाजनक माना जाएगा।
निकट ही, शत को अपने शरीर से चिपकाए, सोई हुई अहल्या को उन्होंने देखा। आज वह गहरी नींद में थी। रोज इस समय तक उसकी नींद प्रायः पूरी हो चुकती है। एक हलकी-सी आहट से वह जाग जाती है। यद्यपि शत की नींद के भंग हो जाने के भय से, वह इतनी जल्दी उठती नहीं है। स्वयं गौतम ने ही उसे मना कर रखा है। बालक के लिए आवश्यकता भर पूरी नींद लेना स्वास्थ्यकर है। वह जितना अधिक सोएगा, उतना ही अधिक विकसित होगा। अहल्या यदि, प्रातः अपने पति के साथ ही उठ बैठेगी, तो अपने समीप मां का आभास न पाकर, शत भी उठ जाएगा। बच्चा, बिना नींद पूरी किए, यदि इतनी सुबह उठ जाएगा, तो दिन-भर उनींदा-उनींदा-सा रहेगा; नींद, थकावट तथा चिड़चिड़ेपन के कारण मां को परेशान करता रहेगा।
और संभव है, अभी शत का ज्वर भी न उतरा हो। एक बार तो गौतम के मन में आया वे शत के माथे पर हाथ रखकर, उसके ज्वर की परख कर लें; किंतु फिर यह विचार छोड़ दिया। सोया है, सोया रहे। ज्वर देखने-देखने में यदि कहीं जाग गया, तो सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।, पता नहीं अहल्या बेचारी, रात को किस समय सोई है।
गौतम बहुत धीरे से बिस्तर में से निकले और उन्होंने निःशब्द कुटिया का द्वार खोला। एक बार कुटिया के भीतर दृष्टि डाल, उन्होंने अहल्या और शत को देखा, और स्नान करने के लिए नदी की ओर चल पड़े।
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- प्रथम खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- द्वितीय खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
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