उपन्यास >> दीक्षा दीक्षानरेन्द्र कोहली
|
0 |
दीक्षा
रात गहराती गई और इंद्र मदिरा पीता चला गया...। साथ ही गौतम की कुटिया थी और कुटिया में अहल्या थी...। कितनी बार इंद्र का मन हुआ कि वह सीधा गौतम की कुटिया में घुस जाए...पर उस नशे की अवस्था में भी इतना चेत उसे था ही, कि कुटिया में गौतम भी थे। गौतम शारीरिक शक्ति में उससे हलके नहीं थे, और चाहे उनके पास वज्र न हो, खड्ग तथा धनुप-बाण जैसे साधारण शस्त्रों का वे पर्याप्त दक्षता से प्रयोग कर सकते थे...।
इंद्र मदिरा पीता रहा और अहल्या की अपने निकट, विभिन्न रूपों और मुद्राओं में कल्पना करता रहा...अहल्या... बड़ी रात गए, नशे में ढलक कर इंद्र अस्त-व्यस्त सो गया।
इंद्र की नींद बहुत जल्दी ही दूट गई। यह बहुत कम सो पाया था। उतना, जितना उसे नशे ने सुला रखा था। जागते ही उसने शरीर में नशा टूटने की थकान की पीड़ा का अनुभव किया...। पर बह पुनः मदिरा नहीं पी सकता था।...आश्रम में अभी चारों ओर अंधकार था, किंतु दैनिक-जीवन आरंभ होने की विभिन्न ध्वनियां आ रही थी। आज सम्मेलन का आरंभ था। प्रायः आश्रमवासी तथा अभ्यागत लोग जाग उठे थे और सम्मेलन में सम्मिलित होने की तैयारी कर रहे थे...
तभी इन्द्र ने अपने गवाक्ष में से देखा, गौतम अपनी कुटिया में से निकले और उन्होंने कुटिया का द्वार भिड़ा दिया।...इन्द्र के शरीर का सारा रक्त उसके मस्तिष्क की ओर दौड़ चला-अहल्या कुटिया में अकेली है...।
पर इंद्र इतना मूर्ख नहीं था कि यह न देख सकता कि कुटिया में प्रकाश था और कदाचित् अहल्या जाग रही थी। तभी कोई स्त्री कुटिया में आई; और बालक उसे सौंप कर, अहल्या कुछ अन्य आश्रमवासी स्त्रियों के साथ स्नान करने चली गई...
उस दिन इंद्र...सम्मेलन के आरंभ होने वाले यज्ञ में उपस्थित था। किंतु उसका ध्यान एक क्षण के लिए भी किसी अन्य दिशा में नहीं गया। सामने कुलपति के साथ अहल्या बैठी हुई थी। वह उसे आंखों के मार्ग से निगलता जा रहा था। जाने फिर वह इतने निकट से अहल्या को देख पाए, न पाए। जाने फिर अहल्या किसी समारोह में भाग ले, न ले... देख ले, इंद्र देख ले, आंखों से ही सही, उसके रूप का रसपान कर ले...
यज्ञशाला से उठकर इंद्र वापस अपने कुटीर में चला आया। फिर वह आश्रम के किसी समारोह में नहीं गया। उसका शरीर फुंक रहा था और मस्तिष्क में धुआं ही धुआं था। वह पुनः मदिरा का पात्र लेकर बैठ गया...उसे अपने चारों ओर अहल्या ही अहल्या दिखाई पड़ रही थी...पर अहल्या दिन-भर अपनी कुटिया में नहीं लौटी, वह बाहर ही कहीं व्यस्त रही। गौतम भी नहीं आए। शत को सवेरे ही एक स्त्री ले गई थी-यह इंद्र ने अपनी आंखों से देखा था।
|
- प्रथम खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- द्वितीय खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- बारह
- तेरह