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उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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दीक्षा

''शासन-तंत्र के विभिन्न प्रतिनिधियों ने इस घटना की सूचना पाकर जब कुछ नहीं किया, तो गहन के पुत्र बहुलाश्व के पास भी गए थे। बहुलाश्व ने सारी घटना सुनकर कहा है कि वह शोध करके देखेगा कि इस घटना में तथ्य कितना है...''

''इतनी बर्बरता हो रही है...अमानवीय, पैशाचिक, राक्षसी। और शासन का प्रतिनिधि कहता है, वह शोध करेगा।'' विश्वामित्र असाधारण तेजपुंज हो रहे थे, ''उन आर्य युवकों की जीवित त्वचा खींच ली जानी चाहिए। मैं घोषणा करता हूं कि वे युवक आर्य नहीं हैं। वे लोग राक्षस हैं-पूर्ण राक्षस। रावण के वंशज।''

''आर्य कुलपति।'' मुनि बोले, ''गहन पुत्र उन स्त्रियों के साथ मुझे मिले थे। मैं उन्हें अपने साथ सिद्धाश्रम में लेता आया हूं। वे आश्रम के बाहर स्वयं को कहीं भी सुरक्षित नहीं पाते।''

''उन्हें बुलाओ।'' विश्वामित्र उतावली से बोले।

मुनि बाहर गए और क्षण-भर में ही लौट आए। उनके साथ एक भीड़ थी-चुपचाप, मौन। किंतु उनकी आकृतियों पर आक्रोश और विरोध चिपक-सा गया था। उन्होंने कंधों पर चारपाइयां उठा रखी थीं। चारपाइयां भूमि पर रखकर वे लोग हट गए। केवल दो पुरुष उन चारपाइयों के पास खड़े रह गए। कदाचित् ये दोनों ही गहन के पुत्र थे।

विश्वामित्र ने देखा-अत्यन्त पीड़ित चेहरे। त्रस्त एवं आतंकित! चारपाइयों पर एक वृद्धा स्त्री थी। कदाचित् यही गहन की पत्नी थी; दो युवतियां-असह्य पीड़ा में कराहती हुई; और एक निपट बालिका, जिसने अपनी पीड़ा को सहने के उपक्रम में दांतों से अपने होंठ काट लिए थे।

विश्वामित्र का दृढ़ व्यक्तित्व सर्वथा हिल गया, उनके जी में आया कि वह रो पड़ें-उन राक्षसों को इस बालिका पर भी दया न आई...और सहसा विश्वामित्र के भीतर घृणा पुंजीभूत होने लगी। इस घृणा को पोषित करना होगा-तभी राक्षसों का संहार होगा।...

'मुनिवर! इन देवियों को तुरन्त चिकित्सा-कुटीर में पहुंचाकर इनका उपचार करवाएं।'' उन्होंने आदेश दिया, ''गहन के पुत्रो! तुम दोनों यहीं ठहर जाओ।''

भीड़ चारपाइयों को लेकर चली गई, केवल गहन के दोनों पुत्र पीछे रह गए।

''बैठ जाओ पुत्रो!'' ऋषि ने कहा।

वे दोनों दंड के समान ऋषि के चरणों में टूटकर गिरे-जैसे अब तक का रोका हुआ बांध बह गया हो। वे देर तक उनके चरणों पर पड़े हुए, रोते रहे। विश्वामित्र की आंखों से भी निःशब्द अश्रु झरते रहे।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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