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उपन्यास >> दीक्षा

दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 14995
आईएसबीएन :81-8143-190-1

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दीक्षा

लक्ष्मण बड़ी जिज्ञासा और श्रद्धा से इस नवीन प्रकार के धनुष को देख रहे थे। ऐसा कोई धनुष, ऐसा ही क्यों, किसी भी प्रकार का कोई यांत्रिक धनुष, न तो उन्होंने अयोध्या के राजसी-शस्त्रागार में देखा था, न प्रशिक्षण की अवधि में अपने गुरु के आश्रम में। अजगव के बिषय में, सारी सूचनाएं, गुरु विश्वामित्र ने उनकी उपस्थिति में ही भैया राम को दी थी; फिर भी लक्ष्मण ने यह कल्पना नहीं की थी कि यह धनुष ऐसा अद्भुत होगा।...लक्ष्मण के मन में कही यह विश्वास जमता जा रहा था कि आर्यावर्त के समस्त आर्य सम्राट् और उनके ये महान ज्ञानी गुरु लोग, अस्त्र-निर्माण विद्या में निश्चित् रुप से बहुत पिछड़े हुए थे। ऐसी असाधारण, चमत्कारिक कला-! लक्ष्मण का मन बरबस ही इस कला की ओर खिंचता चला जा रहा था। भैया राम जब अयोध्या के शासक होंगे, तो लक्ष्मण अवश्य ही उनसे अनुरोध करेंगे, कि अयोध्या में इस कला का विकास किया जाए। आर्यावर्त की रक्षा के लिए यह अनिवार्य है।

विश्वामित्र ने आज्ञा देने में अधिक विलंब नहीं किया, "उठो वत्स राम! महादेव शिव तुम्हारी सहायता करें।''

स्थिर, सहज मंथर गति से चलते हुए राम, आत्मविश्वास भरे हुए, शंकट तक पहुंचे। उन्होंने धनुष का पर्यवेक्षण किया। तनिकसी सावधानी से देखने पर, उस यंत्र की विभिन्न कलें ठीक उसी प्रकार दिखाई पड़ी, जिस प्रकार गुरु विश्वामित्र ने उन्हें बताया था।...राम को अपनी सफलता का विश्वास हो आया। उद्विग्नता निलंबित हो गई। सहज उल्लास से उन्होंने सीता की ओर देखा-सीता आतुरता, जिज्ञासा, मानसिक तनाव, आशा-निराशा के द्वन्द्व की कठिन घड़ी में से गुजरने की यातना सह रही थीं...।

सहसा राम के मन में विभिन्न प्रकार के विचारों की तरंगें उठने लगीं...'क्या वे शिव-धनुष का परिचालन करने के लिए, इसलिए प्रस्तुत हो गए हैं कि वे सीता से विवाह करना चाहते हैं...? सीता के प्रति उनके आकर्षण का कारण क्या है? सीता को रूप-संपदा...? क्या वे काम के प्रभाव के अधीन यह विकट कार्य करने को उद्यत हुए हैं?' राम का मन कहीं विद्रोह कर उठा...ऐसी बात कैसे सोची जा सकती है..। पर यदि ऐसा नहीं है, तो उन्हें समस्या के दूसरे पक्ष पर भी विचार कर लेना चाहिए। धनुष-परिचालन के साथ, सीता के पाणिग्रहण का संकल्प अनुबद्ध है। राम यदि धनुष-परिचालन, अपने शौर्य-प्रदर्शन के लिए कर रहे हैं, तो सीता के पाणिग्रहण का क्या होगा...? पर अब वे यह सब क्यों सोच रहे हैं? वे सीता से विवाह के प्रति सहमति, गुरु के सम्मुख प्रकट कर चुके हैं। उनका मन बार-बार सीता की आकांक्षा कर रहा है...। पर क्या उसके लिए की अनुमति आवश्यक नहीं है...? नहीं है। अयोध्या से चलते समय, पिता ने कहा था, गुरु विश्वामित्र की आज्ञा का पालन करना। और गुरु की इच्छा है कि राम सीता से विवाह करें...और राम की इच्छा...? राम पहले ही सोच-विचार कर चुके हैं। वचन दे चुके हैं...। पर केवल वचन के लिए ही? उनकी अपनी कामना कुछ नहीं है? हां, कामना तो है। कामना के पीछे तर्क भी है? तर्क! क्यों नहीं...गुरु विश्वामित्र की बात का विश्वास राम कर सकते हैं कि सीता उनकी उपयुक्त सहगामिनी पत्नी होगी...। सीरध्वज के कुल के प्रशिक्षण की शैली पर वे विश्वास कर सकते हैं...बात कुछ उलझती-सी लग रही थी। विवाह और धनुष-परिचालन...धनुष-परिचालन और विवाह...दोनों एक-दूसरे से जुड़े थे...राम किसके लिए, कौन-सा कार्य कर रहे थे...?

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    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

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