उपन्यास >> दीक्षा दीक्षानरेन्द्र कोहली
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दीक्षा
"मैं इस विषय में भी काफी सोचती रही हूं स्वामि।'' अहल्या का स्वर स्थिर था "तब हम असावधान थे। इन्द्र अतिथि था। किंतु अब वह स्थिति नहीं है। सीरध्वज के राज में ऐसी दुर्घटना की संभावना नहीं है। फिर भी, आप जनकपुर जाकर, इस आश्रम की सुरक्षा को विषेश व्यवस्था करवा सकते हैं। मैं भरसक प्रयत्न करूंगी कि मैं जन-सामान्य के लिए अदृश्य बनी रहूं, सावधान रहूं, कुटिया के द्वार को मजबूत बनाऊं; और अंततः अपने पास कोई शस्त्र रखूं, ताकि यदि विपदा आ ही जाए तो कम-से-कम आत्मघात तो कर ही सकूं...।''
गौतम की आंखें, जैसे पत्नी की बुद्धि पर चमक उठीं, "तुमने तो सारी योजना बना रखी है प्रिये।''
"हां स्वामि! मैंने आपकी अनुमति के बिना ही सखी सदानीरा को यह वचन भी दिया है कि मैं आपको जनकपुर अवश्य भेजूंगी।''
''अहल्या! ''
"हां स्वामि, आपको मेरा वचन रखना होगा।''
गौतम मौन रहे।
बोलिए! मुझे वचन दीजिए कि आप मेरी बात पूरी करेंगे।''
"मुझे विचार करने का अवसर दो, प्रिये!''
गौतम मौन हो गए। अहल्या भी कुछ न बोली। दोनों जैसे अपने-अपने भीतर डूब गए। गौतम ने वचन नहीं दिया था, पर अहल्या यह मानकर चल रही थी कि गौतम अगली सुबह जनकपुर जाएंगे। उसने प्रायः सारी तैयारी कर दी थी। शत के लिए भी, आवश्यक वस्तुएं सहेज दी थी।
अहल्या का व्यवहार अत्यंत कोमल और स्नेहिल था। जैसे एक लंबी विदाई से पूर्व, सुखद व्यवहार की पूंजी एकत्रित कर लेना चाहती हो।
सारी व्यवस्था कर, वह गौतम के पास आई। पहले उसने, पालथी बांधे, बैठे गौतम की गोद में अपना सिर रखा, प्यार की तीव्रता से भरे नयनों से अपने पति को देखा, फिर अपनी भुजाएं उठाकर उनके गले में डाल दीं, "प्रातः चल पड़ेंगे न प्रिये?''
"शत मां के बिना कैसे रहेगा?''
"उसे सदानीरा रखेगी।''
गौतम फिर चुप हो गए।
"बोलो प्रिय?''
''मुझे सोचने दो अहल्या।''
''सोचो मत। मुझे वचन दो स्वामि। आप इन्द्र को दंडित करेंगे।...करोगे न गौतम।''
गौतम का तन-मन सब कुछ पिघल गया। उन्होंने आज तक केवल अपनी ही पीड़ा समझी थी, अपने अपमान को ही पहचाना था। अहल्या के मन की पीड़ा, आज पूरी तीव्रता से उनके सम्मुख प्रकट हो रही थी...।
''इन्द्र को मैं अवश्य दंडित करूंगा, प्रिये।''
''गौतम!''
अहल्या पति के कंठ से झूल गई।
प्रातः काफी जल्दी ही अहल्या ने गौतम को जगा दिया। गौतम को लगा कि अहल्या उनसे भी कई घंटे पूर्व जग गई थी, या वह रातभर सोई ही नहीं थी। किंतु अहल्या के मुख पर तनिक-सी भी थकान नहीं थी। एक हल्का-सा आवेश अवश्य था।
गौतम उठकर, असमंजस की स्थिति में बैठे रहे। क्या करें-वे समझ नहीं पा रहे थे।
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- प्रथम खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- द्वितीय खण्ड - एक
- दो
- तीन
- चार
- पांच
- छः
- सात
- आठ
- नौ
- दस
- ग्यारह
- बारह
- तेरह