लोगों की राय

उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

''प्रकाश पर भी ईश्वर की कृपा है। उसे भी इस अन्धकार में भटकने की आवश्यकता नहीं रहेगी और फिर तुम उसके साथ रहोगे। तुम उसका मार्ग प्रकाशित करते रहोगे।''

सूरदास ने कहा, "पिताजी! मुझे अभी ज्ञात नहीं कि लोक सभा में क्या कार्य होता है और किस प्रकार कार्य होता है? अत: मैं इसमें क्या पथ-प्रदर्शन कर सकूंगा, जानता नहीं। साथ ही मैं अंग्रेज़ी नहीं जानता और सुना है कि वहां लोग यह समझते हैं कि बिना अंग्रेज़ी बोले देश का कल्याण सम्भव नहीं। मैं नेत्र विहीन भला किस प्रकार भैया को मार्ग दिखा सकूंगा।"

इस समय सुन्दरदास हाथ में धोती, अंगोछा ले गुसलखाने में चला गया। इसका अर्थ यह था कि सूरदास के स्नान का समय हो गया है। सेठजी उठे और बोले, "अब तुम स्नान इत्यादि से निवृत्त हो जाओ। आज कथा होगी।"

सुन्दरदास आया और सूरदास से बोला, भैया! गरम जल तैयार है।''

सूरदास स्नान घर में चला गया।

पन्द्रह मिनट स्नानादि में लगे। सूरदास वस्त्र पहन ही बाहर निकला। वह कथा पर जाने के लिये रेशमी कुर्ता, धोती पहना करता था। गले में रूद्राक्ष की माला रहती थी। सिर से वह नंगा होता था। उसके सिर पर लम्बे धुंघराले बाल थे। इस प्रकार वस्त्र पहने हुए ही वह स्नानागार से निकला। कमरे में भूमि पर दरी बिछी थी। ऊपर कालीन और गद्दा तथा सफेद चादर थी। इस गद्दे के पीछे बड़ा सा तकिया ररवा था। सूरदास इस तकिये के आगे गद्दे पर बैठा तो एक लड़की, जो सूरदास के स्नानागार से निकलने के पहले ही कमरे के एक कोने में एक चांदी की कटोरी में घिसा चन्दन लिए खड़ी थी। आगे आई और उसने सूरदास को तिलक लगा दिया। सूरदास तिलक लगवाते हुए चौंका, परन्तु कुछ बोला नहीं। लड़की ने सूरदास के चरण छूकर अपने माथे को लगा लिए। इस पर वह चुप नहीं रह सका। उसने पूछा, "तुम कौन हो?"

''एक प्राणी।''

''पर तुम तो कमला बहन लगती हो?''

''यही समझ लीजिए।''

''आज तुमने तिलक लगाया है। सुन्दरदास कहां है?"

''वह खड़ा है। आज तिलक मैंने लगाया है।''

''किसलिये?"

''बहन से कुछ अधिक समीप का पद ग्रहण करने के लिए।''

"पर क्यों?"

''इस कारण कि यह जीव का धर्म है। वह आगे को बढ़ना चाहता है। जीव श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम होना चाहता है।"

''तो भाई-बहन के सम्बन्ध से भी कुछ अधिक श्रेष्ठ है?''

''हां प्रभु! भाई-बहन शरीर का सम्बन्ध है। यह एक ही माता पिता निर्माण करते हैं; परन्तु मनुष्य में जीव तो माना-पिता निर्माग नहीं करते। अत: जब जीव का जीव से मम्बन्ध बनता है तो वह शरीर के सम्बन्ध से अधिक घनिष्ठ होता है। बहन-भाई का सम्बन्ध हीन रह जाता।"

''परन्तु बहन!

जड़ चेतन जग जीव जत सकल रामका जानि

बंदउ सब के पद कमल सवा लोरि जुग पाति।।

''बबिन! चेतन तो राम हुाई है।"

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai