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उपन्यास >> अंधकार

अंधकार

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16148
आईएसबीएन :000000000

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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास

: 10 : 

 

मुन्शी कर्त्तानारायण को सूरदास के ढूंढने पर नियुक्त कर सेठजी ने अपना ध्यान विमला की समस्या पर केन्द्रित कर दिया। सबसे पहला प्रश्न था कि प्रकाश से उसका विवाह किया जाये अथवा नहीं? प्रकाश को बुलाने के लिये तार भेज दिया गया। उसने तार का उत्तर दे दिया कि उसे दो सप्ताह तक अवकाश नही, परन्तु तार पहुंचने के दिन ही उसका एक पत्र श्रीमती को आया था। पत्र का पता न चलता यदि श्रीमती का स्वभाव न होता कि वह किसी कार्य को तुरन्त करने के स्थान स्थगित न किया करती। साथ ही स्थगित कार्य भूल जाने का स्वभाव न रखती।

जब से विमला घर में आयी थी, चन्द्रावती श्रीमती की प्रतिक्रिया इस लड़की को घर पर रखने की जानने का यत्न कर रही थी। विमला के जन्म की कथा तो केवल तीन व्यक्तियों को विदित थी। एक पुरोहितायिन सुनन्दा को, दुसरे सेठ कौड़ियामल्ल को और तीसरे चन्द्रवती को।

लगभग बीस वर्ष पहले की बात थी। सुनन्दा का पति पण्डित चन्द्रशेखर मिध जीवित था डौर वह पूजा-पाठ में अधिक लीन रहने के कारण सेठजी के घर दान-दक्षिणा प्राप्त करने के लिए अपनी पत्नी को भेज दिया कर्ता था। सुनन्दा सेठजी की नजर चढ़ गयी और सेठजी से उसका सम्बंध बन गया।

सुनन्दा का विवाह हुए दस वर्ष हो चूउके थे और अब एकाएक उसके घर में लड़की का जन्म हो गया। विमला के उत्पन्न होने के उपरान्त मिश्रजी को पत्नी पर सन्देह हुआ तो उन्होंने उसको धर्म का भय दिखाया और वह बक गयी। इस पर चन्द्रशेखर ने अपनी पत्नी को क्षमा कर देने का वचन दिया और उससे यह वचन ले लिया कि वह सेठजी से सम्बंध नहीं रखेगी। यह वचन पांच वर्ष तक रहा। उस समय पण्डितजी का देहान्त हो गया और सुनन्दा का सम्बंध किसी पड़ोसी से हो गया। सेठजी ने उसे पुन: अपने सम्पर्क में लाने का यत्न नहीं किया। तब तक वह संत माधवदास के प्रभाव में आ चुके थे और कमला का जन्म हो चुका था। सेठ के मन में यह भी बात बैठ चुकी थी कि कदाचित् उसके पाप-कर्मों का ही फल है जो उसकी कोई भी सन्तान जीवित नहीं 'रहती। सेठजी और सुनन्दा के सम्बंध का ज्ञान चन्व्रावती को तो तब ही हो गया था जब वह उनके घर आया करती थी। वह तो तब भी अपने पति को सक ब्राह्मण की पत्नी को पतित करने से मना करती रहती थी, परन्तु सेठजी को यह पत्नी का ईर्ष्या वश उपदेश प्रतीत होता था। पीछे जब सुनन्दा ने सेठजी से सम्पर्क त्याग दिया और संत माधव ने उसे कहा, "सुन्दर, स्वस्थ बच्चे का एकाएक चल बसना माता-पिता के पाप-कर्मों का फल ही हो सकता है।" तो सेठजी ने सुनन्दा के प्रयत्न पर भी पुन: उससे सम्बंध नही बनाया।

इस पर भी सुनन्दा, सेठ और सेठानी यह जानते थे कि विमला का पिता कौन है और वह विमला तथा उसकी माता को घर पर हर्ष-शोक के समय बुलाते रहते थे। जबसे सूरदास घर पर आया था, विमला और सुनन्दा का घर में आना और भी कम हो गया था। अन्तिम बार मां-बेटी प्रकाशचन्द्र के विवाह पर आये थे और तदुपरांत विमत्ना ने अब ही इस हवेली में पांव रखा था।

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    अनुक्रम

  1. प्रथम परिच्छेद
  2. : 2 :
  3. : 3 :
  4. : 4 :
  5. : 5 :
  6. : 6 :
  7. : 7 :
  8. : 8 :
  9. : 9 :
  10. : 10 :
  11. : 11 :
  12. द्वितीय परिच्छेद
  13. : 2 :
  14. : 3 :
  15. : 4 :
  16. : 5 :
  17. : 6 :
  18. : 7 :
  19. : 8 :
  20. : 9 :
  21. : 10 :
  22. तृतीय परिच्छेद
  23. : 2 :
  24. : 3 :
  25. : 4 :
  26. : 5 :
  27. : 6 :
  28. : 7 :
  29. : 8 :
  30. : 9 :
  31. : 10 :
  32. चतुर्थ परिच्छेद
  33. : 2 :
  34. : 3 :
  35. : 4 :
  36. : 5 :
  37. : 6 :
  38. : 7 :
  39. : 8 :
  40. : 9 :
  41. : 10 :

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