उपन्यास >> अंधकार अंधकारगुरुदत्त
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गुरुदत्त का सामाजिक उपन्यास
: 5 :
सेठानी उठ चलने के लिये तैयार होने लगी। सेठजी ने घण्टी का बटन दबाया और जब नौकरानी भीतर आर्या तो उसे कहा, "महावीर से कहो कि हमारी मोटर तुरन्त निकाल हवेली के द्वार पर ले आये।"
बाहर हवेली के नौकरों में चर्चा होने लगी थी। चर्चा चौकीदार ने आरम्भ की थी। उसे सन्देह हुआ था कि सूरदास घर छोड़ गया है। उसे हवेली से गये एक घण्टे से ऊपर हो गयाथा, जब कमला ने उससे सूरदास के विषय में पूछा था?"
कमला को शीलवती से मुंशी और सूरदास की बात का पता चला गया था। इसी से उसे सन्देह हुआ था कि पिताजी ने ही उनको कहीं भेज दिया है। अत: वह पिताजी से पूछने गयी थी। उनके कमरे का द्वार बन्द देख उसने खटखटाया था और तदनन्तर भीतर जा पता किया था।
कमला के व्यवहार से सब इस बात को जान चुके थे कि वह सूरदास को अपना गुरु मानती है। नौकर यह जान चुके थे कि वह नित्य दो बार उनके चरणस्पर्श करने आती है। यह बात भी उनको पता चल चुकी थी कि एक बार कमला ने सूरदास को तिलक लगाया था तो सेठानीजी ने मना किया था। इतने आधार पर यह कथा प्रचारित होने लगी थी कि सेठजी की लडकी साधनी हो जायेगी। इस कथा के विपरीत दिशा भी दिखायी देने लगी थी। कमला अब सेठजी के कारोबार में काम करने लगी थी। उसके हस्ताक्षरों से लाखों का वारा-न्यारा हो रहा था।
अब नौकरानी मोटर निकलवाने गयी तो कहानी का रूप यह हो गया कि सूरदास नाराज़ हो गया है और सेठजी उसे मनाने के लिए गए हैं, परन्तु सुन्दरदास के साथ होने का अर्थ वे समझ नहीं पा रहे थे। उसी रात प्रकाशचन्द्र और उसकी पत्नी श्रीमती में भी लगभग इसी विषय पर बात हो गई। बात आरम्भ तो प्रकाश के दिल्ली जाने के विषय पर हुई थी।
श्रीमती ने पूछा,"कब जा रहे हैं दिल्ली?''
''संसद तो मार्च की पच्चीस को आरम्भ होगी परन्तु मैं वहां दो दिन पूर्व पहुंचूँगा। वहाँ ठहरने का प्रबन्ध भी तो करना है।"
"क्या प्रबन्ध हो सकेगा?"
"पहले तो किसी होटल में ठहरना होगा। वहाँ संसद सदस्यों के लिए क्वार्टर बने हैं। बाद में उनमें जाकर ठहरूंगा। अवसर मिलते ही मैं वहा कोई अच्छा और बड़ा सा मकान भाड़े पर ले लूँगा अथवा कही समीप भूमि मिल गयी तो वहाँ मकान बनवा लूँगा।"
"परन्तु यदि पाँच वर्ष के उपरान्त निर्वाचन जीत न सके तो?''
''मैं समझता हूं कि अगली बार इस बार से अच्छे परिणामों से सफल हूंगा। इस बार मैं इस कार्य में सर्वथा अनाड़ी था। बहुत कुछ मैं सीख चुका हूं। शेष इन पांच वर्षों में सीख लूँगा। तब तक निर्वाचन लड़ने में कुशल हो जाऊंगा।
"इस बार मैं सूरदास को साथ लिए घूमता रहा हूं। वह मेरे मार्ग मैं बाधक ही सिद्ध हुआ है। रही सही बात यह हुई कि ज्योति मेरे निर्वाचन पर पटीशन करने वाला है और हमारे वकील साहब कह रहे हैं कि उसके पटीशन करने में 'ग्राउण्ड' तो है। वह ग्राउण्ड सूरदास ही है।"
''आप इस अन्धे को धक्के दे-देकर निकाल क्यों नही देते?''
"पिताजी तथा माताजी दोनो उसको बहुत पसन्द करते हैं।"
''तो एक बात करिये। मुंशीजी से कहकर कुछ लोग सूरदास के पीछे लगवा दीनिए। वे सूरदास की हंसी उड़ाया करें। उसकी निन्दा करें और उसकी कथा में उससे प्रश्न पूछ-पूछकर उसका नाक में दम कर दें। वह यहां से भाग जायेगा।"
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- प्रथम परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- : 11 :
- द्वितीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- तृतीय परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :
- चतुर्थ परिच्छेद
- : 2 :
- : 3 :
- : 4 :
- : 5 :
- : 6 :
- : 7 :
- : 8 :
- : 9 :
- : 10 :